रेखाचित्र का उद्भव और विकास | Rekhachitra ka Udbhav aur Vikas
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रेखाचित्र का उद्भव और विकास
Rekhachitra ka Udbhav aur Vikas
अंग्रेजी के ‘स्केच’ शब्द
का पर्यायवाची रेखाचित्र’ है। हिंदी में इसे ‘शब्दचित्र’ भी कहते हैं। व्यक्तिचरित्र, शब्दांकन, चरित्रलेख इत्यादि इसके अन्य नाम हैं।
शब्दों के द्वारा जब किसी घटना, वस्तु, स्थान, दृश्य अथवा व्यक्ति का इस प्रकार भावपूर्ण
वर्णन किया जाये कि पाठक के मन पर उसका यथार्थ चित्र खींच जाये तो उसे ‘रेखाचित्र’ कहते हैं।
‘रेखाचित्र’
का एक स्वतंत्र विधा के रूप में विकास द्विवेदी युग में हुआ। पद्मसिंह
शर्मा रेखाचित्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनकी रचना ‘पद्मपराग’ (1929 ई.) से हिंदी-रेखाचित्र
का जन्म माना जाता है। यह एक निबंध-संग्रह है किन्तु रेखाचित्र के अत्यन्त निकट है।
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विद्वानों ने 1937 ई. में रचित श्रीराम शर्मा की ‘बोलती प्रतिमा’ को हिंदी का प्रथम रेखाचित्र माना है। प्राणों का सौदा (1939 ई.), जंगल के जीव (1949 ई). वे जीते कैसे हैं (1957 ई.) श्रीराम शर्मा के अन्य प्रसिद्ध रेखाचित्र हैं।
रेखाचित्र-साहित्य में बनारसीदास चतुर्वेदी एक अविस्मरणीय हस्ताक्षर (लेखक) हैं। इन्होंने ‘मधुकर’ के रेखाचित्र विशेषांक (1946 ई.) का न सिर्फ संपादन किया बल्कि हमारे आराध्य (1952 ई.), रेखाचित्र (1952) और सेतुबंध (1952) शीर्षक से प्रेरणास्पद रेखाचित्रों का संग्रह भी किया। मधुकर के रेखाचित्र-विशेषांक (1946 ई.) से पूर्व ‘हंस’ का रेखाचित्र विशेषांक (मार्च 1939, संपादक-श्रीपतराय) भी रेखाचित्र - साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
हिंदी रेखाचित्र के संसार में रामवृक्ष बेनीपुरी का नाम अत्यन्त गौरवपूर्ण है। अद्भुत शब्द-शिल्पी रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाओं में लाल तारा (1938 ई.) माटी की मूरतें (1946 ई.), गेहूँ और गुलाब (1950 ई.), मील के पत्थर (1957 ई.) इत्यादि रचनाएँ रेखाचित्र - साहित्य की अक्षय निधियां हैं।
अतः स्पष्ट है कि :
1. रेखाचित्र के प्रवर्तक - पद्मसिंह शर्मा
2. हिंदी का प्रथम रेखाचित्र - बोलती प्रतिमा (1937, श्रीराम शर्मा)
हिंदी रेखाचित्र के इतिहास में प्रकाशचंद्र गुप्त एक महत्वपूर्ण रेखाचित्रकार हुए, जिनकी हंस, रूपाभ, नया साहित्य इत्यादि पत्रिकाओं में अनेक रेखाचित्र प्रकाशित है। पुरानी स्मृतियां (1947 ई.) इनकी स्मृतिचित्र से संबंधित बेजोड़ रचना है। निर्जीव वस्तुओं, स्थानों इत्यादि विषयों पर 1940 ई. में इनके द्वारा रचित ‘रेखाचित्र’ रेखाचित्र - साहित्य की एक महत्वपूर्ण कृति है।
राजा राधिकारमण सिंह की ‘सावनी समां’ (1938 ई.) एवं ‘टूटा तारा (1940) एवं 1949 ई. में रचित देवेन्द्र सत्यार्थी की ‘रेखाएँ बोल उठीं’ हिंदी के प्रसिद्ध रेखाचित्र हैं।
1959 ई. में सेठ गोविंद दास की ‘स्मृति कण’ रचना भी रेखाचित्र - साहित्य में काफी प्रसिद्ध हुआ ।
इसी क्रम में वृन्दावनलाल वर्मा विरचित ‘हलकू’, सत्यवती मल्लिक की ‘अमिट रेखाएँ’ प्रतापनारायण टंडन कृत ‘रेखाचित्र’ रचनाएँ भी काफी लोकप्रिय हुई।
छठे दशक में सत्यवती मल्लिक (अमिट रेखाएँ, 1951 ई.), विनय मोहन शर्मा (रेखा और रंग) और कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर (जिंदगी मुस्कुराई-1953 ई., माटी हो गयी सोना एवं दीप जले शंख बजे 1969 ई.) ने हिंदी रेखाचित्र - साहित्य में उल्लेखनीय - योगदान दिया।
हिंदी रेखाचित्र के इतिहास में उपेन्द्रनाथ अश्क का गौरवपूर्ण स्थान है। रेखाएँ और चित्र (1955 ई), मंटो मेरा दुश्मन (1956 ई.), ज्यादा अपनी कम परायी (1959 ई.) इनके लोकप्रिय रेखाचित्र हैं।
छठे दशक में ही राहुल सांकृत्यायन (बचपन की स्मृतियाँ 1955 ई., जिनका मैं कृतज्ञ था 1957 ई. मेरे असहयोग के साथी 1957 ई.) ने भी हिंदी - रेखाचित्र के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया।
सातवें दशक में एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘समय के पाँव (1962 ई.)’ शीर्षक से एक प्रसिद्ध भावपूर्ण रेखाचित्र हिंदी-संसार को दिया।
इसी कड़ी में शिवपूजन सहाय की ‘वे दिन वे लोग’ (1965 ई.) हिंदी रेखाचित्र-साहित्य की एक विशिष्ट उपलब्धि है, जिसकी शैली संस्मरणात्मक है।
बाबू गुलाबराय के ‘ठलुआ क्लब’ तथा ‘मेरे नापिताचार्य’ निबंधात्मक-शैली के प्रसिद्ध रेखाचित्र हैं।
जैनेन्द्र के रेखाचित्र हंस, प्रतीक, आजकल इत्यादि विविध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
1966 ई. में शांतिप्रिय द्विवेदी द्वारा रचित ‘स्मृतियाँ और कृतियाँ’ रेखाचित्र अपनी मार्मिकता के लिए हिंदी साहित्य में प्रसिद्ध है।
सातवें दशक में ही विष्णु प्रभाकर (कुछ शब्द कुछ रेखाएँ-1965 ई., जाने अनजाने-1964 ई. हँसते निर्झर दहकती भट्टी) एवं डॉ. नगेन्द्र ने रेखाचित्र के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया।
डॉ. नगेंद्र विरचित ‘चेतना के बिंब’ (1967 ई.) हिंदी का अत्यंत प्रसिद्ध स्मृति-चित्र है।
1966 ई. में सेठ गोविंददास के ‘चेहरे जाने-पहचाने’ रेखाचित्र में युग की विषमताओं, विडंबनाओं का सुंदर विश्लेषण प्रस्तुत हुआ है। राष्ट्रीय कवि दिनकर ने ‘लोकदेव नेहरू’ (1965 ई.) तथा ‘संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ’ (1969 ई.) शीर्षक से उत्कृष्ट रेखाचित्रों का सृजन किया। इनके ‘वट-पीपल’ रेखाचित्र - संग्रह में राहुल, मामा वरेरकर, पंत, पुन्यश्लोक जयसवाल सरीखे रेखाचित्र अत्यन्त उत्कृष्ट एवं उल्लेखनीय चित्र हैं ।
बीसवीं सदी के आठवें दशक में जगदीश चंद्र माथुर कृत ‘जिन्होंने जीना जाना’ (1971 ई.) हिंदी का एक प्रसिद्ध रेखाचित्र है। 1963 ई. में प्रकाशित ‘दस तस्वीरें’ इनकी एक अन्य ख्याति प्राप्त रचना है। हिंदी-रेखाचित्र के इतिहास में आगे चलकर रांगेय राघव (पाँच गधे), ओंकार शरद (खाँ साहब, देशकाल पात्र), डॉ. सरोजिनी महिषी (ये भी हमारे), उदयशंकर भट्ट (वह जो मैंने देखा), भदन्त आनंद कौसल्यायन (जो न भूल सका), पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (कुछ), डॉ. रामविलास शर्मा (पंचरत्न, विरामचिह्न) ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
कृष्णा सोबती की 1977 ई. में प्रकाशित ‘हम हशमत’ एवं भीमसेन त्यागी की ‘आदमी से आदमी तक’ (1982 ई.) हिंदी के मशहूर रेखाचित्र हैं।
हिंदी-रेखाचित्र को समृद्ध करने में हंस, नई धारा, मधुकर, धर्मयुग, नया पथ, कादंबिनी, रूपाभ इत्यादि पत्रिकाओं ने अविस्मरणीय योगदान दिया है।
निष्कर्ष
हिंदी के प्रसिद्ध रेखाचित्र : हिंदी के कुछ प्रसिद्ध रेखाचित्र निम्नानुसार हैं :
हमारे आराध्य (1952), रेखाचित्र (1952), सेतुबंध (1952) - बनारसीदास चतुर्वेदी
लाल तारा (1938), माटी की मूरतें ( 1946 ) - रामवृक्ष बेनीपुरी
एलबम (1949) - सत्यजीवन वर्मा भारतीय
रेखाएँ बोल उठीं (1949) - देवेन्द्र सत्यार्थी
लंका महाराजिन (1950) - ओंकार शरद
अमिट रेखाएँ (1951) - सत्यवती मल्लिक
रेखा और रंग (1955 ई.) - विनय मोहन शर्मा
बचपन की स्मृतियाँ (1955), जिनका मैं कृतज्ञ, मेरे असहयोग के साथी - राहुल सांकृत्यायन
मैं भूल नहीं सकता - कैलाशनाथ काटजू
नयी पीढ़ी नये विचार - (1950), जिंदगी मुस्कुरायी (1954 ई.), माटी हो गयी सोना (1957), दीप जले शंख बजे (1958), क्षण बोले कण मुस्काए, बाजे पायलिया के घुंघरू, भूले हुए चेहरे - कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
रेखाएँ और चित्र (1955), मंटो मेरा दुश्मन (1956), ज्यादा अपनी कम परायी (1959) - उपेन्द्रनाथ अश्क
मैं भूल नहीं सकता (1955) - कैलाशनाथ काटजू
स्मृति कण (1959) चेहरे जाने पहचाने ( 1966 ई.) - सेठ गोविंददास
रेखाचित्र (1959) - प्रेमनारायण टंडन
मैं इनका ऋणी हूँ (1959 ) - इंद्र विद्यावाचस्पति
समय के पाँव (1962 ई.) - माखनलाल
चतुर्वेदी
कुछ स्मृतियाँ और स्फुट विचार (1962) – सम्पूर्णानंद
नये पुराने झरोखे (1962) - हरिवंशराय बच्चन
दस तस्वीरें (1963 ई.), जिन्होंने जीना जाना (1971 ई.) - जगदीशचंद्र माथुर
कुछ शब्द : कुछ रेखाएँ (1965) - विष्णु प्रभाकर
वे दिन वे लोग (1965) - शिवपूजन सहाय
मेरे हृदयदेव (1965) - हरभाऊ उपाध्याय
जवाहर भाई : उनकी आत्मीयता और सहृदयता (1966) - रायकृष्णदास
लोकदेव नेहरू (1965), संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ (1969 ई.) - रामधारी सिंह ‘दिनकर’
चेहरे जाने पहचाने (1966) - सेठ गोविंददास
स्मृतियाँ और कृतियाँ (1966 ई.) - शांतिप्रिय द्विवेदी
विकृत रेखाएँ धुंधले चित्र (1966) - महेंद्र भटनागर
कुछ रेखाएँ कुछ चित्र (1967) - कुंतल गोयल
चेतना के बिंब (1967 ई.) - डॉ. नगेन्द्र
घेरे के भीतर और बाहर (1968), पद्मिनी मेनन की चाँद (1969) - डॉ. हरगुलाल
हम हशमत (1977 ई., भाग प्रथम ) - कृष्णा सोबती
लीक अलीक (1980) - भारतभूषण अग्रवाल
आदमी से आदमी तक (1982 ई.) - भीमसेन त्यागी
संस्मरणों के सुमन (1982) - डॉ. रामकुमार वर्मा
मेरे अग्रज मेरे मीत (1983) - विष्णु प्रभाकर
वन तुलसी की गंध (1984) - फणीश्वरनाथ रेणु
हम सफरनामा (2016) - स्वयं प्रकाश
हँसो न तारा (2017) - डॉ. पद्मजा शर्मा
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