अनुसंधान (Research) और आलोचना (Criticism)| Anusandhan aur Alochana
अनुसंधान (Research) और आलोचना (Criticism)
अनुसंधान
(शोध) और आलोचना (समालोचना, समीक्षा) को पर्यायवाची समझना सही
नहीं है, क्योंकि दोनों में आधारभूत अंतर है। शब्दकोशों में
दोनों की अलग-अलग परिभाषा दी गई है । वेब्स्टर की ‘न्यू
वर्ल्ड डिक्शनरी’ में ‘अनुसंधान’ को परिभाषित करते हुए ‘इसे व्यवस्थित, सावधानीपूर्वक और संतुलित अन्वेषण (खोज, ढूंढ़ना) कहा गया है, जिसमें ज्ञान के किसी विशेष क्षेत्र में स्थापित तथ्यों या सिद्धांतों की
खोज की जाती है ।’
आलोचना में विश्लेषण के आधार पर निर्णय करने की प्रक्रिया होती है । साहित्य या कला के संबंध में विश्लेषण की विभिन्न प्रणालियों का समालोचना में प्रयोग किया जाता है ।
समालोचना विश्लेषण के उपरांत मूल्यांकन भी करती है । ‘न्यू वर्ल्ड डिक्शनरी’ में ही निर्णय करने की प्रक्रिया को आलोचना कहा गया है ।
कलात्मक संसार का
समालोचनात्मक विश्लेषण और उसका मूल्यांकन आवश्यक है । समालोचक की कला यह है कि वह
साहित्य पर अपनी टिप्पणी दे। उसकी समीक्षा करे और साथ ही वैज्ञानिक विश्लेषण भी
उसमें उपलब्ध हो ।
अनुसंधानकर्त्ता
के लिए यह आवश्यक है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्वाह करे, जबकि आलोचना में समालोचक अपनी दृष्टि के अनुसार किसी भी कृति की समीक्षा
करता है। ‘समालोचना’ को रचना की ‘पुनर्रचना’ भी कहा गया है,
जबकि अनुसंधान में यह संभव नहीं है ।
1. अनुसंधान और आलोचना के मूल तत्व
विश्वविद्यालय के अनुसंधान
संबंधी नियमों के अंतर्गत चार बिन्दु आवश्यक हैं -
2. उपलब्ध तथ्यों अथवा सिद्धांतों
का नवीन आख्यान (वर्णन, विवरण देना) ।
3. ज्ञान क्षेत्र की सीमा का
विस्तार अर्थात मौलिकता ।
4. प्रतिपादन शैली में संघटन । (भलीभाँति
और व्यवस्थित रूप से समझाना)
आलोचना का शब्दार्थ सर्वांग (सम्पूर्ण, सभी अंगों का) निरीक्षण है । साहित्य के क्षेत्र में आलोचना से तात्पर्य किसी वस्तु या कृति की सम्यक व्याख्या अथवा उसका मूल्यांकन करना है । इसमें कृति का सांगोपांग (अच्छी तरह से) निरीक्षण होता है ।
समालोचना के अंतर्गत होने वाली प्रक्रिया के तीन भाग हैं –
1. प्रभाव ग्रहण ।
2. व्याख्या विश्लेषण ।
3. मूल्यांकन अथवा निर्णय ।
2. अनुसंधान और आलोचना का पारस्परिक संबंध
अनुसंधान और आलोचना में पारस्परिक संबंध है क्योंकि दोनों की पद्धति में बहुत कुछ समानता है, फिर भी दोनों एक-दूसरे के पर्याय नहीं हैं ।
अनुसंधान में तथ्य का आख्यान (वर्णन, विवरण देना) होता है और आलोचना में व्याख्या विश्लेषण, किन्तु बिना तथ्य के विश्लेषण का कोई अर्थ नहीं है और बिना विश्लेषण के तथ्य का आधार स्पष्ट नहीं किया जा सकता ।
अतएव किसी भी कृति
की विचार-प्रक्रिया की संपूर्णता के लिए अनुसंधान और आलोचना को एक-दूसरे का विरोधी
नहीं पूरक मानना चाहिए।
3. अनुसंधान और आलोचना में प्रमुख अंतर
यद्यपि अनुसंधान और आलोचना
एक-दूसरे के पूरक हैं, तथापि उनमें निम्नलिखित अंतर है –
1. अनुसंधान के लिए अनुपलब्ध तथ्यों
का अन्वेषण (खोज) प्रमुख है, किन्तु समालोचना प्रभावग्रहण को
महत्व देती है ।
2. अनुसंधान में उपलब्ध तथ्यों का
भी नए ढंग से विवेचन किया जाता है, किन्तु यह विवेचन
वस्तुपरक (वस्तु पर आधारित, वस्तुगत)) ही हो सकता है, जबकि आलोचना में व्याख्या और विश्लेषण में पर्याप्त स्वतन्त्रता रहती है
।
3. समालोचक वस्तुनिष्ठता (वस्तुपरक, ऑब्जेक्टिव) के नियमों से अधिक नहीं बंधता, जबकि
अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता को प्रमुख रूप से स्वीकार करना पड़ता है ।
4. अनुसंधान में किसी भी रचना के
संबंध में विचार करते हुए उसके ज्ञान-क्षेत्र के विस्तार के साथ ही मौलिकता को भी
महत्व देना पड़ता है । समालोचक मूल्यांकन या निर्णय प्रणाली को अपनाता है ।
5. समालोचना किसी भी विश्लेषण से
किसी भी निष्कर्ष पर पहुँच सकती है, पर अनुसंधान में
इसकी स्वतंत्रता नहीं होती ।
6. अनुसंधान और आलोचना के विषय में
यह भी स्पष्ट है कि अनुसंधान विज्ञान है, जबकि आलोचना में
विज्ञान और कला का समन्वय होता है ।
7. आलोचना एक ऐसा शास्त्र है, जिसमें कला अनिवार्य रूप से अपेक्षित है । अनुसंधान में इसकी आवश्यकता
नहीं होती ।
8. अनुसंधान में वस्तुनिष्ठ दृष्टि, वैज्ञानिक जैसी तटस्थता और तथ्यों की खोज प्रमुख है । इस वैज्ञानिक प्रक्रिया में संदर्भ के विवरण, अनुक्रमणिका, परिशिष्ट,
ग्रंथ-सूची और पाद-टिप्पणियों की व्यवस्था है । अनुसंधान का यह शिल्प-विधान आलोचना
में आवश्यक नहीं है।
9. अनुसंधान में ज्ञान का विस्तार
आवश्यक है, किन्तु आलोचना में काव्य की आत्मा का साक्षात्कार
और संप्रेषण अनिवार्य है ।
10. अनुसंधान विज्ञान ही है, किन्तु आलोचना में कला और विज्ञान का समन्वय होता है । इस कारण अनुसंधान
अन्वेषणात्मक और आलोचना रचनात्मक ।
11. आलोचना आत्मनिष्ठ (आत्मनिर्भर) हो सकती है, किन्तु अनुसंधान का वस्तुनिष्ठ (वस्तुपरक, ओब्जेक्टिव) होना आवश्यक है ।
12. अनुसंधान और आलोचना पर्याय नहीं
हैं, क्योंकि व्यापक संदर्भ में भी अनुसंधान में अन्वेषण और आलोचना में
निरीक्षण-परीक्षण की प्रधानता है ।
4. अनुसंधान और आलोचना में कुछ समानताएँ
अनुसंधान
और आलोचना में विषमताओं के साथ ही परस्पर संबंध है, क्योंकि
दोनों किसी धरातल पर पर्याप्त समानता से जुड़े हैं। अनुसंधान और आलोचना में मुख्य
रूप से निम्नलिखित समानताएँ हैं :
1. इनकी प्रणालियाँ समान हैं ।
2. व्याख्या विश्लेषण और निर्णय
अनुसंधान में भी है और आलोचना में भी ।
3. अनुसंधान में जो तथ्याख्यान
(तथ्यों का विवरण देना) है, वही आलोचना में व्याख्या विश्लेषण है
।
4. दोनों में विवेचन, कार्य-कारण-सूत्र का अन्वेषण, परस्पर संबंध तथा
अर्थ-व्यंजना आदि का उद्घाटन समान रूप से रहता है ।
5. पक्ष-विपक्ष के संतुलन के आधार
पर निष्कर्ष और निर्णय की पद्धति भी दोनों में प्रायः समान ही है ।
6. आलोचनात्मक प्रतिभा के बिना उत्कृष्ट
अनुसंधान संभव नहीं है।
7. अनुसंधान और आलोचना की प्रविधि
में यह समानता है कि दोनों में संकलन और विश्लेषण होता है ।
8. आलोचना अनुसंधान को और अनुसंधान
आलोचना को व्यापकता प्रदान करता है, अतएव वे समानार्थी
न होते हुए भी परस्पर पूरक हैं।
निष्कर्ष
अनुसंधान
और आलोचना के संबंध में यह निष्कर्ष उपयुक्त है कि वे दोनों पर्याय न होते हुए भी
उनमें अनेक समानताएँ हैं । अच्छी आलोचना वही है जिसमें अनुसंधान की संभावना हो और
अच्छा अनुसंधान वही है जिसमें आलोचनात्मक प्रतिभा का समावेश हो । अतएव अनुसंधान और आलोचना को समानार्थी पर्याय
तो नहीं माना जा सकता किन्तु उन्हें परस्पर विरोधी मानना भी तर्कसंगत नहीं है ।
अनुसंधान और आलोचना का परस्पर संबंध इस तथ्य में निहित है कि ये दोनों समानार्थी
नहीं हैं तो परस्पर विरोधी भी नहीं बल्कि परस्पर पूरक हैं ।
अतः
अंतर्संबंधों के इस युग में अनुसंधान और आलोचना पृथक्-पृथक् रहते हुए एक-दूसरे के
दृष्टिकोण का समन्वय कर अधिक अर्थवान और प्रासंगिक हो सकते हैं, क्योंकि अनुसंधान में आलोचना के समावेश से वह अधिक प्रासंगिक होती है और
समालोचना भी अनुसंधान का समावेश कर अधिक सार्थक बन जाती है ।
******
Post a Comment