शोध के लिए ‘सिनोप्सिस’ (रूपरेखा) कैसे तैयार करें | Shodh Ke Lie Synopsis Kaise taiyar Karen

 

शोध के लिए सिनोप्सिस (रूपरेखा) कैसे तैयार करें 
Shodh ke lie synopsis kaise taiyar karen


शोध के लिए ‘सिनोप्सिस’ (रूपरेखा) कैसे तैयार करें | Shodh Ke Lie Synopsis Kaise taiyar Karen


लेखक - भूपेन्द्र पाण्डेय


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    आज जो तथ्य, विषय अज्ञात है, उसे जानना ही अनुसंधान है। अनुसंधान कार्य करने से पहले सर्वप्रथम विषय का चुनाव करना होता है।


    अनुसंधान-प्रक्रिया का दूसरा सोपान निर्देशक का चुनाव है । उनके बिना अनुसंधान-कार्य की कल्पना करना असंभव है । अनुसंधान-प्रक्रिया में विषय का चुनाव कर लेने के बाद अगले पड़ाव अथवा लक्ष्य के रूप में रूपरेखा तैयार करने का कार्य करना होता है । इसे अँग्रेजी में सिनोप्सिस कहते हैं, जिसे तैयार करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य होता है । अनुसंधान की सफलता का पहला चरण है, रूपरेखा तैयार करना । रूपरेखा या प्रारूप शोधकार्य का बीज है, जिसका सम्पूर्ण विकास शोध-प्रबंध के विस्तृत वटवृक्ष के रूप में होता है । यह प्रबंध को मूर्त रूप देता है । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि शोध-विषय का क्रमिक अर्थात् अध्यायों, शीर्षकों, उप-शीर्षकों में व्यवस्थित विभाजन ही रूपरेखा है । सिनोप्सिस किसी भी शोध की जननी है । इसमें शोध-कार्य का सार, संक्षेप में प्रस्तुत करना होता है ।

 

     सिनोप्सिस तैयार करना synopsis  taiyar karna 


        रूपरेखा तैयार करने से पूर्व शोध-छात्र को कुछ तथ्य स्पष्ट करने होते हैं। उदाहरण के लिए शोध का क्या लक्षण होगा ? शोध की कौन सी प्रविधि होगी ? शोध-लेखन किस शैली में होगा ? शोध-प्रबंध में कितने अध्याय होंगे ? शोध के लिए सहायक सामग्री तथा अंगीय कार्य (field work) आदि का किस प्रकार प्रयोग किया जाएगा आदि ।

     

         अध्याय का विभाजन 

        

            सर्वप्रथम अनुसंधानकर्ता को अध्यायों का विभाजन करना होता है अर्थात् उसे यह निर्धारित करना होता है कि वह अपने शोध-कार्य को कितने अध्यायों में प्रस्तुत करेगा । साथ ही साथ उसे यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि अध्यायों की संख्या न तो बहुत अधिक हो और न बहुत कम । प्रायः यह माना जाता है कि शोध में सात से ग्यारह अध्याय तक होना आदर्श होता है । अध्याय विभाजन विषय की गहराई, लंबाई और चौड़ाई के अनुरूप ही होना आवश्यक है । 

     

    शोध-विषय का क्रमिक तथा व्यवस्थित विभाजन 


         शोध-विषय का क्रमिक तथा व्यवस्थित विभाजन ही रूपरेखा है । यह शोध-कार्य का कच्चा लेखा-जोखा है । शोध-कार्य में रूपरेखा प्रारंभिक तथा अस्थाई होती है, स्थायी तथा स्थिर नहीं । वस्तुतः रूपरेखा शोध-संरचना के विभिन्न संरेचक बिन्दु हैं।इसका निर्माण मानसिक संकल्पना पर आधारित रहता है । सामग्री-संग्रह, वर्गीकरण-विश्लेषण, विभाजन-संयोजन तथा विवेचन की प्रक्रिया से यह मानसिक संकल्पना संशोधित होकर प्रामाणिक तथा वैज्ञानिक बनती है। रूपरेखा निर्माण के समय ग्रंथ-सूची, तथ्य-प्राप्ति-स्त्रोत, तथ्य प्राप्ति स्थान तथा शोध-कार्य में सहायता पहुँचाने वाले विद्वानों की सारणी प्रस्तुत करना आदर्श पद्धति है ।


     

     रूपरेखा निर्माण में शोधार्थी को निर्देशक का सहयोग 


        रूपरेखा निर्माण synopsis taiyar karna का कार्य शोधार्थी तथा निर्देशक दोनों का है । दोनों के सहयोग से ही रूपरेखा बनती है । शोधार्थी को चाहिए कि वह निर्देशक पर ज़्यादा निर्भर न रहकर एक जैसी रूपरेखा देखकर स्वयं रूपरेखा तैयार करे । शोध-निर्देशक को उसमें अपेक्षित तथा आवश्यक संशोधन कर देना चाहिए । आदर्श-रूपरेखा निर्माण के लिए शोधार्थी तथा निर्देशक को उस विषय से मिलती-जुलती एकाधिक रूपरेखाओं को अवश्य देख लेना चाहिए । इससे रूपरेखा निर्माण करने में सुगमता होगी । रूपरेखा निर्माण करते समय उसमें नवीन तथा मौलिक अध्ययन बिन्दुओं का समावेश होना चाहिए । उदाहरण के लिए कामायनी में आधुनिकता : परंपरा और प्रयोग विषय की रूपरेखा बनानी है तो इसके लिए एकाधिक विश्वविद्यालयों की अन्य विषयों की समानधर्मी रूपरेखाओं को देख लेना चाहिए;  जैसे- रामचरित मानस में आधुनिकता : परंपरा और प्रयोग

     

    एक सुवस्थित रूपरेखा के प्रमुख चरण 


        (क)  प्रस्तावित अनुसंधान का शीर्षक ।

        (ख) उपाधि तथा संस्था का नाम जहाँ प्रस्तुत करना है ।

        (ग)  (1) निर्देशक का नाम

             (2) शोधार्थी का नाम

    (घ)  विषय की समस्या के अंतर्गत समस्या की उत्पत्ति का संक्षिप्त विवरण देते हुए उसे प्रस्तुत करना ।

    (ङ)  इस विषय में अब तक हो चुके कार्य का संक्षिप्त विवरण और    सीमाएं तथा प्रस्तुत अध्ययन-शोध की आवश्यकता, महत्व और   उपयोगिता पर प्रकाश डालना ।

    (च)  इस विषय में और क्या किया जा सकता है, जिससे नवीन तथ्य अनावृत्त हों।

    (छ)  इस शोध के लिए कौन-कौन से संदर्भ-ग्रन्थों की आवश्यकता होगी। इस विषय की संभावित सूची तैयार की जाएगी ।

     

     रूपरेखा का आकार 


            जिस प्रकार प्रत्येक शोध का विषय एक जैसा नहीं होता उसी प्रकार प्रत्येक शोध-विषय की रूपरेखा भी एक जैसी नहीं हो सकती। साहित्य की रूपरेखा तथा भाषा-शोध की रूपरेखा एक-दूसरे से भिन्न होगी । शिष्ट-साहित्य तथा लोक-साहित्य संबंधी विषयों की रूपरेखाएँ भी एक-दूसरे से भिन्न होंगी ।

        महाकाव्य तथा खंडकाव्य की रूपरेखाएँ पर्याप्त मात्रा में समान होंगी । कामायनी में नारी चित्रण तथा साकेत में नारी चित्रण शोध-विषयों की रूपरेखाएँ कुछ समान होंगी ।

        रूपरेखा निर्माण शोधार्थी की योग्यता तथा शोध-निर्देशक की विशेषज्ञता का मापक होता है । इससे शोध-परीक्षक को मूल्यांकन का आधार प्राप्त होता है । विषय की रूपरेखा, शोध-प्रक्रिया, शोध-प्रविधि तथा शोध-व्यवस्था को भी निर्धारित करती है।

    साधारणतः रूपरेखा दो प्रकार की होती है –

    (क) संक्षिप्त रूपरेखा या सीमित रूपरेखा

    (ख) विस्तृत रूपरेखा

     

    संक्षिप्त रूपरेखा या सीमित रूपरेखा 


        जहाँ शोध-अध्ययन खंडों में तथा अध्यायों में विभक्त रहता है, उसे संक्षिप्त रूपरेखा कहा जाता है; जैसे-भ्रमरगीत का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन शोध-विषय को लिया जा सकता है । इसकी रूपरेखा निम्न होगी :

    जैसे – प्रथम अध्याय - ध्वनि वैज्ञानिक अध्ययन

        द्वितीय अध्याय - शब्द वैज्ञानिक अध्ययन

        तृतीय अध्याय - पद वैज्ञानिक अध्ययन

        चतुर्थ अध्याय - वाक्य वैज्ञानिक अध्ययन

        पंचम अध्याय - अर्थ वैज्ञानिक अध्ययन

        षष्ठम अध्याय - शोध-निष्कर्ष

        यह रूपरेखा संक्षिप्त रूपरेखा कहलाएगी ।

     

    विस्तृत रूपरेखा 


        जहाँ शोध-अध्ययन अध्यायों, शीर्षकों, उप-शीर्षकों में विभाजित किया जाता है, उसे विस्तृत रूपरेखा कहा जाता है जो इस प्रकार होती है :

        शोध विषय – छायावादी कवियों के काव्य में व्यक्त प्रकृति

        सर्वप्रथम भूमिका

        पूर्व शोध-कार्य का परिचय

        प्रस्तुत शोध-कार्य की आवश्यकता

        प्रथम अध्याय – छायावादी शब्द की व्युत्पत्ति, स्वरूप

        द्वितीय अध्याय – छायावादी कवियों का परिचय

        तृतीय अध्याय – छायावादी कवियों के काव्य का परिचय

        चतुर्थ अध्याय – महादेवी वर्मा के काव्य में व्यक्त प्रकृति

        पंचम अध्याय – पंत के काव्य में व्यक्त प्रकृति 

        षष्ठम अध्याय – निराला के काव्य में व्यक्त प्रकृति 

        सप्तम अध्याय – प्रसाद के काव्य में व्यक्त प्रकृति

    अष्टम अध्याय – प्रकृति के विभिन्न रूप जैसे आलंबन रूप में     व्यक्त प्रकृति, उद्दीपन रूप में व्यक्त प्रकृति, मानवीकरण रूप में     व्यक्त प्रकृति, अलंकरण रूप में व्यक्त प्रकृति ।

        नवम अध्याय – काव्य की भाषा

        दशम अध्याय – शोध निष्कर्ष


             शोध कार्य में विस्तृत रूपरेखा synopsis अधिक उपयोगी रहती है । रूपरेखा देखने मात्र से ही शोध-ग्रंथ का आकार तथा महत्व ज्ञात हो जाता है । रूपरेखा न अतिसंक्षिप्त हो और न अतिविस्तृत । रूपरेखा के विस्तार को विषय-क्षेत्र में विस्तार तक सीमित रखना होगा । कोई भी महत्वपूर्ण अध्ययन बिन्दु छूट न जाए इस बात को ध्यान देना आवश्यक है । एक आदर्श रूपरेखा वह है जिससे शोध-कार्य में सरलता प्रतीत हो, यथाशीघ्र शोध-कार्य सम्पन्न हो ।


    निष्कर्ष


        शोध-कार्य में रूपरेखा प्रस्तुति अत्यंत आवश्यक आयाम है । जिस प्रकार शरीर में आत्मा का महत्व है, वैसे ही शोध-कार्य में रूपरेखा  synopsis प्रस्तुति का । किसी भी शोध-कार्य की रूपरेखा अंतिम नहीं होती । शोध-कार्य करते समय इसकी सीमाओं में परिवर्तन होता चलता है । कभी-कभी तो सामग्री-संकलन, वर्गीकरण तथा विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्ष सम्पूर्ण रूपरेखा को ही बदल देते हैं।

        अतः आवश्यक है कि शोध-विषय की रूपरेखा synopsis न अति संक्षिप्त हो और न अति विस्तृत । इतना आवश्यक है कि शोधार्थी अपने प्रबंध के माध्यम से लिए गए विषय को स्पष्ट कर सके । शोधार्थी का कर्तव्य है कि रूप-रेखा में संशोधन की सूचना समय-समय पर संबंधित विश्वविद्यालय को देता रहे । सम्पूर्ण शोध- प्रबंध पूर्ण हो जाने के बाद लेखन के समय जिस रूपरेखा synopsis को आधार बनाया जाता है वही अंतिम रूपरेखा होती है ।

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