कॉलरिज का काव्यचिंतन | Coleridge ka Kavyachintan
कॉलरिज का काव्यचिंतन | Coleridge ka Kavyachintan
शाब्दिक
अर्थ में काव्य चिंतन का संबंध कविता के विषय में चिंतन से है। कविता क्या है? रस, छंद अलंकार तथा काव्यभाषा का कविता की सृजन
प्रक्रिया में क्या योगदान है? काव्य चिंतन के केंद्र में
ऐसे ही बिंदु रहते हैं। एक दृष्टि से काव्य चिंतन वस्तुतः कविता संबंधित
सैद्धांतिक समीक्षा है। पश्चिम में काव्य चिंतन की एक समृद्ध परंपरा रही है।
कॉलरिज ऐसी समृद्ध काव्य चिंतन की परंपरा में सार्थक हस्तक्षेप करने वाले चिंतक के
रूप में ख्यात हैं।
कॉलरिज
का पूरा नाम सैमुअल टेलर कॉलरिज (Samuel Taylor Coleridge) है। इनका जन्म 21 अक्टूबर 1772 में इंग्लैंड के सेंट मेरी नामक स्थल
पर हुआ।
कॉलरिज अंग्रेजी के 'लेक कवियों' (Lake Poets) में से एक थे। उनकी कविताओं में ‘दि राइम ऑफ दि एंसीएंट मैरीनर’ तथा ‘कुबलाखान’ अत्यंत प्रसिद्ध है।
आलोचनात्मक कृतियों में 'बायोग्राफीया लिटरेरिया’, 'चर्च एण्ड स्टेट’ तथा 'कनफेशन्स ऑफ एन इनक्वाइरिंग स्प्रिट’ का उल्लेख किया जा सकता है। कॉलरिज का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य 'लिरिकल बैलड्स (1798 ई.) का संपादन है, जिसे उन्होंने विलियम वर्ड्सवर्थ के साथ मिलकर किया था।
कृपया इसे भी ज़रूर देखें : कॉलरिज का काव्यचिंतन | Coleridge ka Kavyachintan
कॉलरिज
के रचनाकार व्यक्तित्व के तीन पक्ष हैं। पहला आलोचक रूप, दूसरा कवि रूप तथा उनके
व्यक्तित्व का तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष है- - अंग्रेजी स्वच्छंदतावाद के
दर्शन को स्पष्ट करना एवं अपने समकालीन रचनाकारों के लिए प्रेरणास्रोत के रूप
कार्य करना।
'बायोग्राफिया लिटरेरिया’ (1817 ई.) वस्तुतः एक ऐसी महत्वपूर्ण कृति है जिसमें जीवनी, आलोचना और दर्शन का मेल देखा जा सकता हैं। ‘बायोग्राफिया लिटरेरिया’ एक
ऐसे आलोचक की कृति है जो बहुज्ञ तो है किंतु जिसमें दुरुहता भी कम नहीं है। कॉलरिज के आलोचनात्मक चिंतन के जितने भी पक्ष
हैं यथा- कल्पना, फैंसी, काव्यभाषा और कवि, काव्य और कविता सभी
उनकी इस आलोचनात्मक कृति में समग्रता के साथ व्याख्यायित हुए हैं।
कवि के रूप में भी कॉलरिज का महत्व कम नहीं है। ‘लिरिकल बैलड्स’ का एक तिहाई भाग उनकी कविताओं (Poetry) द्वारा पूरा होता है। कॉलरिज वस्तुत: लम्बी कविताओं के कवि हैं।
कॉलरिज़
ने अपने समय के अनेक रचनाकारों और आलोचकों को न केवल गहराई से प्रभावित किया वरन्
स्वच्छंदतावादी काव्यांदोलन को अग्रगामी बनाने में भी सार्थक भूमिका निभाई।
कॉलरिज और स्वच्छंदतावाद
रोमांटिक
युग या स्वच्छंदतावाद का समय अंग्रेजी साहित्य में प्रायः 1785 ई. (कुछ विद्वानों के अनुसार 1798 ई.) से माना जाता
है। कविता के क्षेत्र में यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण काव्यांदोलन था, जिसने वृहत्तर पाठक समाज तथा तत्कालीन लेखकों को गहराई से प्रभावित किया।
विलियम वर्ड्सवर्थ (1770-1850) और कॉलरिज (1772-1834) के साथ-साथ इस युग के अन्य कवियों में विलियम ब्लेक (1757-1827), लार्ड बायरन (1788-1824), पी.बी. शेली (1792-1822) तथा जॉन कीट्स (1795-1821) इस युग के महत्वपूर्ण कवि हैं।
स्वच्छंदतावादी कविता का स्वरूप,
उसके दर्शन तथा उसकी सैद्धांतिकी को स्पष्ट करने में वर्ड्सवर्थ और
कॉलरिज द्वारा सम्पादित ‘लिरिकल बैलड्स' की महत्वपूर्ण भूमिका है।
अंग्रेजी
स्वच्छंदतावादी काव्य आंदोलन का वैशिष्ट्य इस तथ्य में निहित है कि इस काव्य
आंदोलन ने सहज और सरल दैनंदिन जीवन तथा प्रकृति को सर्वाधिक महत्व दिया। अंग्रेजी
स्वच्छंदतावादी काव्यांदोलन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि उसने किसी भी
प्रकार के अनुशासन और परिपाटी का पूर्णरूप से अस्वीकार किया। एक दृष्टि से इस
आंदोलन ने क्लासिकल युग की शास्त्रीयता को तोड़ा।
स्वच्छंदतावादी काव्यांदोलन के सिद्धांतकारों का यह मानना है कि कविता का जन्म ही सहजता में होता है अत्यधिक अनुशासन या बंधन से काव्य की संवेदना क्षरित हो जाती है।
यहाँ विलियम
वर्ड्सवर्थ द्वारा दी गयी कविता की परिभाषा को ध्यान में रखा जा सकता है । वर्ड्सवर्थ के अनुसार- ‘कविता सशक्त भावनाओं का स्वैच्छिक प्रवाह है।‘
(Poetry is the spontaneous overflow of powerful
feelings)।
स्वच्छंदतावादी
काव्यांदोलन की एक दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसने प्रकृति को सर्वाधिक
महत्त्व दिया। इस युग के कवियों का नारा ही है - प्रकृति की ओर लौटो।
फ्रांस
की वह क्रांति जिसका आदर्श वाक्य था- समानता (Equality),
स्वतंत्रता (Livery) और बंधुत्व (Fraternity) था, इससे न केवल वर्ड्सवर्थ बल्कि रोमांटिक युग के
अन्य कवियों ने भी प्रेरणा ग्रहण की। लेक (Lake Poets) की एक
त्रयी ही बन गयी जिनमें विलियम वर्ड्सवर्थ, सॉदे और कॉलरिज
थे।
रोमांटिक युग के कवियों ने प्रकृति के छोटे से
छोटे उपादान से लेकर बड़ी सी बड़ी वस्तु को अपने काव्य का विषय बनाया। नदी, झील, झरने, पुष्प, हवा आदि को इन कवियों ने अपनी कविता का वर्ण्य विषय बनाया।
ग्राम्य जीवन की अनेक छवियाँ रोमांटिक युग के
कवियों के यहाँ देखी जा सकती हैं। इन कवियों ने अत्यंत सरल भाषा में प्रकृति और जन-जीवन
को उजागर किया।
कॉलरिज की कविता की अत्यंत प्रसिद्ध परिभाषा
ध्यान देने योग्य है- ‘कविता सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम क्रम है।‘ (Poetry is
the best words in their best orders) ।
आत्माभिव्यक्तियाँ,
वैयक्तिकता स्वच्छंदतावाद की अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता मानी जाती है। इस युग के
कवियों ने अपने वैयक्तिक जीवन प्रसंगों को बहुधा अपने काव्य का विषय बनाया है। यही
कारण है कि शिल्प के स्तर पर इन कवियों ने अधिकतर गीतात्मक शैली अपनाई है। एक
दृष्टि से अगर कहा जाए तो कह सकते हैं कि स्वच्छंदतावाद गीतों की वापसी का युग है।
संवेदना
के धरातल पर स्वच्छंदतावादी कविता किसी भी मनुष्य के दुःख-दर्द और पीड़ा से अपना
संबंध बनाती है। कहने का आशय यह है कि स्वच्छंदतावादी कविता का 'आत्म' अन्य की पीड़ा से जुड़ जाता है।
स्वच्छंदतावादी कवियों और आलोचकों में सैमुअल टेलर कॉलरिज (1772-1834 ई.) का अपना अलग महत्व है । कॉलरिज बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। जहाँ एक तरफ उन्होंने ‘लिरिकल बैलड्स’ का सह-संपादन किया वहीं दूसरी ओर ‘बायोग्राफिया लिटरेरिया’ आलोचनात्मक कृति भी उन्होंने लिखी।
कॉलरिज की कल्पना संबंधी अवधारणा और आयाम
पश्चिमी
साहित्यशास्त्र में ‘कल्पना’ संबंधी चिंतन प्लेटो और अरस्तू के समय से ही होता रहा है। अरस्तू ने अपने
अनुकरण सिद्धांत में ‘कल्पना’ की
भूमिका से इनकार नहीं किया है। फिर भी सच्चे अर्थों में कॉलरिज पहले ऐसे आलोचक हैं,
जिन्होंने कविता की रचना प्रक्रिया में ‘कल्पना’ की महत्वपूर्ण भूमिका को अपनी आलोचना के माध्यम से रेखांकित किया है।
कॉलरिज ने कल्पना के दो भेद किए हैं- प्राथमिक
कल्पना (Primary Imagination) और आनुषंगिक
कल्पना या द्वितीयक कल्पना (Secondary Imagination) | कॉलरिज
से पहले कल्पना के संबंध में ऐसा विवेचन किसी अन्य आलोचक के यहाँ नहीं मिलता हैं।
1. प्राथमिक कल्पना (Primary
Imagination)
कॉलरिज के अनुसार, दृश्यमान जगत की अनेक वस्तुएँ, पदार्थ, प्राणी एवं स्थान को ग्रहण (देखने और समझने) करने वाली शक्ति ही प्राथमिक कल्पना है।
कॉलरिज द्वारा प्रयुक्त इस प्राथमिक कल्पना के
महत्त्व को इस दृष्टि से समझा जा सकता है कि इस प्रकृति और संसार की अनेक वस्तुओं
और पदार्थों को हम देखते हैं, किन्तु प्राथमिक कल्पना ही वह
कारण है जिससे चीजें सुसंगत, व्यवस्थित और आवयविक (organic) रूप से
हमारे मस्तिष्क में जगह बना पाती हैं ।
हम अपने दैनंदिन जीवन में अनेक चीजों का साक्षात्कार करते रहते हैं। फूल, पेड़, पहाड़, नदी, झरने, मोटर गाड़ी इमारतें और इन सभी चीजों की एक छवि हमारे मस्तिष्क में बनती रहती है।
ये सारी चीजें एक निश्चित स्वरूप में हमारे मस्तिष्क में अपनी जगह बनाती जाती हैं। आपस में गड्ड-मड्ड नहीं होतीं, उलझती नहीं हैं।
वस्तुतः मानव मस्तिष्क की वह शक्ति जिसके कारण
हम चीजों को उनके नैसर्गिक (प्राकृतिक natural) रूप में देख पाते हैं, वहीं
कॉलरिज के अनुसार, प्राथमिक कल्पना है। यह प्राथमिक कल्पना
ही है जो चीजों को एक क्रम या व्यवस्था में हमारे मनोमस्तिष्क पर अंकित करती जाती है
।
2 द्वितीयक आनुषंगिक कल्पना (Secondary
Imagination)
आनुषंगिक कल्पना मनुष्य के मस्तिष्क की वह क्षमता है जिसके कारण वह विभिन्न वस्तुओं, प्राणियों और स्थानों को अपनी इच्छा के अनुसार निर्मित करता है।
दूसरे शब्दों में अगर कहें तो कह सकते हैं कि द्वितीयक या आनुषंगिक कल्पना सायास प्रयास (जानबूझकर विशेष प्रयास करना) और अंतःशक्ति है, जो वस्तुओं को अलग प्रकार से देखती है।
अतः यह स्पष्ट है कि आनुषंगिक कल्पना का कार्य किसी भी वस्तु का पुनःसृजन करना है।
प्राथमिक और आनुषंगिक कल्पना में भेद
1) प्राथमिक कल्पना सहज भाव से वस्तुओं का ग्रहण करती है, जबकि आनुषंगिक कल्पना में जानबूझकर सोद्देश्य ढंग से चीजों की ग्राह्यता होती है।
2) प्राथमिक कल्पना मुख्यतः दृश्यमान जगत पर आधारित होती
है, जबकि आनुषंगिक कल्पना में आत्मा,
बुद्धि, इंद्रिय संवेदन, भाव सभी का समावेश होता है।
3) प्राथमिक
कल्पना का क्षेत्र सीमित है, जबकि आनुषंगिक कल्पना
का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत होता है।
4) प्राथमिक
कल्पना अपनी प्रकृति में संरचनात्मक होती है अर्थात् यह केवल निर्माण या संगठन
करती है जबकि आनुषंगिक कल्पना सृजन और ध्वंस, विघटन और संघटन दोनों कार्य करती है।
5) प्राथमिक कल्पना स्वाभाविक रूप से हर
किसी में विद्यमान रहती है जबकि आनुषंगिक कल्पना की विद्यमानता विशेष रूप से
दार्शनिक, रचनाकार और कलाकार में होती है।
6) प्राथमिक
कल्पना का क्षेत्र भौतिक जगत का है, जबकि आनुषंगिक कल्पना भौतिक के साथ-साथ आध्यात्मिक और उच्चादर्शों वाली
होती है।
फैंसी : स्वरूप एवं आयाम
फैंसी
को हिंदी में रम्य कल्पना, ललित कल्पना तथा बिंब
निर्मात्री शक्ति अलग-अलग नामों से जाना जाता है। फैंसी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘फैन्टेसिया’
(Phantasia) से
मानी जाती है जिसका संबंध कल्पना से है।
वस्तुत:
कॉलरिज ऐसे आलोचक हैं जिन्होंने फैंसी के स्वरूप एवं आयाम पर गंभीरता से विचार
किया और उसे कल्पना से सर्वथा अलग किया। कॉलरिज ने 'बायोग्राफिया लिटरेरिया’ में
लिखा है कि फैंसी या रम्य कल्पना देश और काल के बंधन से मुक्त स्मृति का ही एक रूप
है और यह योजक के रूप में कार्य करती है।
दूसरे शब्दों में अगर कहें तो कहा जा सकता है कि
फैंसी या रम्य कल्पना का स्वरूप सर्जनात्मक न होकर रचनाकार द्वारा कभी किसी समय
में देखे हुए किसी दृश्य या चित्र को अनंतर किसी संदर्भ में प्रस्तुत कर देना होता
है। प्रायः फैंसी के अंतर्गत जिन दो भिन्न वस्तुओं का संयोजन किया जाता है वे अपने
वैशिष्ट्य के साथ उपस्थित रहती हैं।
कल्पना
और फैंसी में मुख्य अंतर ही यही है कि कल्पना में रचनाकार दो भिन्न वस्तुओं के
संयोजन से एक नयी वस्तु का निर्माण कर देता है, जबकि फैंसी में दोनों वस्तुएं
अलग-अलग प्रतीत होती हैं ।
कल्पना और फैंसी के अंतर को इस प्रकार से समझा जा सकता है-
1) कल्पना का स्वरूप सर्जनात्मक होता है जबकि फैंसी यांत्रिक होती है। कल्पना शक्ति के लिए नैसर्गिक प्रतिभा का होना आवश्यक है जबकि फैंसी को निपुणता के द्वारा भी सीखा जा सकता है।
2) कल्पना
यौगिक की तरह है और फैंसी मिश्रण। अर्थात् कल्पना शक्ति के प्रयोग से किसी नए
बिम्ब/दृश्य का सृजन होता है जबकि फैंसी के प्रत्येक तत्व अपनी विशेषता को
संरक्षित किए रहते हैं।
3) कल्पना
शक्ति सदैव उदात्त और गरिमामयी बिम्बों का निर्माण करती है जबकि फैंसी विश्रृंखल
और अगंभीर भी हो सकती है।
4) कल्पना
शक्ति सुसंबद्ध और सुगठित होती है जबकि फैंसी केवल असमान (Dissimilar)
वस्तुओं या बिम्बों को एकत्र रखना भर है। फैंसी सिनेमा के पर्दे पर
चार चित्रों को एक साथ रखने जैसा है।
अतः कॉलरिज ने अपने कल्पना विषयक चिंतन में
प्राथमिक कल्पना को प्रथम स्थान पर रखा है तो आनुषंगिक कल्पना को द्वितीय स्थान पर
और उनकी दृष्टि में फैंसी सबसे अंत में है।
काव्यभाषा की संकल्पना
कॉलरिज काव्यभाषा पर विचार करते हुए लिखते हैं - "किसी भी व्यक्ति की भाषा दूसरे व्यक्ति से उसके अपने ज्ञान, मेधा तथा संवेदना की गहराई के कारण अलग होती है। साथ ही किसी भी व्यक्ति की भाषा सर्वप्रथम तो अपने निजी वैशिष्ट्य को समाहित किये होती है, इसके बाद उसमें अपने जातीय समाज के गुण सन्निहित होते हैं और तीसरे स्तर पर उसकी भाषा सार्वजनिक वाक्यांशों और पदों से युक्त होती है।"
कॉलरिज का यह भी मानना है कि किसी एक ही
समुदाय के दो व्यक्तियों की भाषा भी एक दूसरे से सर्वथा अलग होती है।
कॉलरिज
ने अपने काव्यभाषा विषयक चिंतन में सार्वजनिक भाषा की संकल्पना पर जोर दिया है।
उनकी मान्यता है कि अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा से भी
पारिवारिक, जातीय और व्यावसायिक विशिष्टताओं को
अगर छोड़ दिया जाए तो सार्वजनिक भाषा का निर्माण हो सकता है।
कविता
को गद्य से अलग मानते हुए कॉलरिज लिखते हैं कि कविता छंद में लिखी जाती है, इसलिए उसका शब्द विन्यास अलग होता है। कॉलरिज की पंक्तियाँ हैं- "I
write in metre because I am about to use a language different from that of
prose.”
कॉलरिज और
वर्ड्सवर्थ का काव्यभाषा संबंधी चिंतन: तुलनात्मक विवेचन
कॉलरिज
और वर्ड्सवर्थ दोनों अंग्रेजी की रोमांटिक कविता के प्रसिद्ध कवि हैं। आलोचक और
चिंतक के रूप में भी दोनों रचनाकारों की ख्याति है। कॉलरिज और वर्ड्सवर्थ की
मैत्री भी साहित्य जगत में ख्यात है और इसी मैत्री का परिणाम था ‘लिरिकल बैलड्स’ का
प्रकाशन।
‘लिरिकल बैलड्स’ के चार संस्करण क्रमशः - 1798, 1800, 1802 और 1815 ई. में प्रकाशित हुए। इस संग्रह के संपादक कॉलरिज और वर्ड्सवर्थ थे और इसे स्वछंदतावादी काव्यांदोलन का घोषणापत्र भी कहा गया। विलियम वर्ड्सवर्थ ने इस संग्रह की भूमिका भी लिखी। पहले 1798 ई. में 'एडवर्टीजमेंट' शीर्षक से और अनंतर 1800 ई. में ‘प्रेफस टू लिरिकल बैलड्स' शीर्षक से ।
इन भूमिकाओं का दस्तावेजी महत्व इस दृष्टि से है कि वर्ड्सवर्थ ने अपनी भूमिका में इस बात की जोरदार ढंग से पैरवी की है कि कविता हमारी स्वैच्छिक भावनाओं का स्वतः प्रवाह है और किसी भी प्रकार का बंधन या रूढ़ियाँ कविता की रचना प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
वर्ड्सवर्थ
कविता की परिभाषा देते हुए लिखते हैं- "Poetry is
the spontaneous overflow of powerful feelings" (कविता हमारी
सशक्त भावनाओं का स्वतः स्फूर्त उच्छलन है।)
‘लिरिकल बैलड्स' की
अपनी भूमिकाओं में वर्ड्सवर्थ ने कविता की विषयवस्तु, काव्यभाषा तथा कवि के महत्व पर प्रकाश डाला है। यद्यपि यह सच है कि ‘लिरिकल बैलड्स’ का प्रकाशन कॉलरिज और वर्ड्सवर्थ
दोनों के विचार साम्य के कारण संभव हुआ, फिर भी बाद में
कॉलरिज ने वर्ड्सवर्थ के अनेक विचारों के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की विशेषकर
काव्यभाषा विषयक चिंतन के प्रति ।
कॉलरिज
और वर्ड्सवर्थ दोनों के काव्यभाषा विषयक चिंतन विपरीत ध्रुवांतों पर अवस्थित हैं ।
जहाँ वर्ड्सवर्थ की मान्यता थी कि काव्यभाषा आम बोलचाल की भाषा का ही एक प्रकार है
तथा कविता की भाषा और गद्य की भाषा में वस्तुतः कोई गुणात्मक भेद नहीं होता वहीं
दूसरी ओर कॉलरिज की मान्यता है कि कविता मूलतः एक छंदोबद्ध रचना है और काव्य और
गद्य की भाषा तो भिन्न-भिन्न होती ही है। यहाँ तक की तर्काश्रित और वैचारिक रचनाओं
का गद्य भी आम बोलचाल की भाषा से भिन्न होता है।
कॉलरिज के काव्यभाषा विषयक चिंतन के सूत्र वस्तुतः ज्ञान (Knowledge), बुद्धि (Intelligence) और संवेदना (Feelings/ Emotions) पदों में विन्यस्त है।
दूसरे शब्दों में अगर कहें तो कह सकते हैं कि कॉलरिज के अनुसार,
प्रत्येक व्यक्ति की भाषा उसके ज्ञान, विचार
और संवेदना पर आधारित होती है। इसलिए एक व्यक्ति की भाषा दूसरे से अलग होती है ।
साथ ही, कॉलरिज की मान्यता है कि भाषा और जातीयता (सामुदायिकता) का भी गहरा संबंध है। कोई भी मनुष्य जिस समुदाय में रहता है, उस समुदाय का भी उसकी भाषा पर गहरा असर होता है।
कॉलरिज कहते हैं कि
वर्ड्सवर्थ की यह मान्यता कि कविता की भाषा और गद्य की भाषा में कोई भेद नहीं इस
आधार पर खारिज हो जाती है कि कविता और गद्य दोनों के शब्द विन्यास में बहुत अंतर
होता है।
कॉलरिज और वर्ड्सवर्थ के काव्यभाषा विषयक चिंतन के तुलनात्मक विवेचन के आधार पर दोनों में निम्नलिखित अंतर देखे जा सकते हैं
1) वर्ड्सवर्थ
की मान्यता है कि काव्यभाषा आम बोलचाल की भाषा का ही एक रूप है, जबकि कॉलरिज का मानना है कि कविता की भाषा विशिष्ट और अर्थगर्भी होती है
2) वर्ड्सवर्थ
की मान्यता है कि काव्यभाषा और गद्यभाषा में कोई गुणात्मक अंतर नहीं है, इसके विपरीत कॉलरिज कहते हैं कि काव्य के लिए एक भिन्न और सुनिश्चित
शब्द-विन्यास अनिवार्य है।
3) वर्ड्सवर्थ
के अपने काव्यभाषा विषयक चिंतन में निजी व्यक्तित्व या वैयक्तिक पक्ष की अवहेलना
है, जबकि कॉलरिज की मान्यता है कि
प्रत्येक व्यक्ति की भाषा प्रथमतः उसके ज्ञान, बुद्धि और
संवेदना पर निर्भर करती है फिर उसके निजी व्यक्तित्व और जातीय गुणों पर।
कवि, काव्य और कविता विषयक चिंतन
कॉलरिज का स्वयं का व्यक्तित्व बहुआयामी था। धर्म, दर्शन, अध्यात्म, इतिहास, राजनीति तथा पत्रकारिता अनेक क्षेत्रों और विषयों का उन्हें ज्ञान था। यही कारण है कि वे एक कवि से बहुज्ञता की आशा रखते थे।
कवि के लिए उनकी कुछ अर्हताएँ थी । एक कवि से कॉलरिज गुणग्राहिता और
मासूमियत, सरलता और दृढ़ता, यथार्थ और
दार्शनिकता आदि की आशा रखते थे।
काव्य
(Poesy) और कविता (Poetry) कॉलरिज ने अलग-अलग संदर्भों में प्रयुक्त किया है। कॉलरिज के मतानुसार,
काव्य (Poesy) शब्द अत्यंत व्यापक अर्थ समाहित
किये हुए है। काव्य के अंतर्गत दर्शन, कला, चित्र आदि बहुत कुछ सम्मिलित है। काव्य उन व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है
जो छंदोबद्ध भाषा का प्रयोग करना जानते हैं।
इसके विपरीत कविता वह है, जिसका माध्यम शब्द हो। कॉलरिज ने ‘बायोग्राफिया लिटरेरिया’ में कविता की जो परिभाषा दी है वह ध्यान देने योग्य है- "कविता वह विशिष्ट संरचना हैं जो विज्ञान से इस अर्थ में अलग है कि जहाँ विज्ञान का प्रत्यक्ष प्रयोजन सत्य होता है वहीं कविता का आनंद"।
स्पष्ट
है कि कॉलरिज कविता का प्राथमिक उद्देश्य आनंद (Pleasure)
मानते हैं जबकि विज्ञान का आग्रह तथ्य और सत्य पर होता है।
विज्ञान और कविता में एक महत्वपूर्ण भेद यह है कि विज्ञान आनंदानुभव में उतना समर्थ नहीं है जबकि कविता की गति सत्य और आनंद दोनों में होती है।
कॉलरिज के कविता संबंधी दृष्टिकोण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है - छंद पर आग्रह। कॉलरिज छंदोबद्ध रचना को ही कविता मानते हैं अर्थात् छंदहीन कोई भी साहित्यिक रचना भले ही हमें आनंदित करे, कॉलरिज उसे कविता मानने से इनकार करते हैं।
इस प्रकार कॉलरिज ने कविता के रूप-पक्ष और अंतरंग-पक्ष दोनों पर अपने विचार प्रकट किये हैं।
कॉलरिज और छायावादी कवियों का काव्य चिंतन
कॉलरिज अंग्रेजी की रोमांटिक काव्य धारा के कवि आलोचक थे और अब यह एक स्वीकृत तथ्य है कि हिंदी की छायावादी कविता ने पर्याप्त प्रभाव अंग्रेजी के रोमांटिक काव्यांदोलन से ग्रहण किया है।
हिंदी के छायावादी काव्य आंदोलन पर यह प्रभाव विषयवस्तु तथा शिल्प दोनों स्तरों पर पड़ा है। अंग्रेजी के रोमांटिक कविता आंदोलन ने जिस प्रकार मुक्ति की कामना की, ‘प्रकृति की ओर लौटो’ का नारा दिया तथा एक विराट मानवता का स्वप्न देखा, उसी प्रकार हिंदी की छायावादी कविता में भी स्वातंत्र्य चेतना, प्रकृति चित्रण और मानवता की जय की उदघोषणा मिलती है।
हिंदी की छायावादी कविता में पाश्चात्य अलंकारों - मानवीकरण (Personification), विरोधाभास (Oxymoron) तथा विशेषण विपर्यय (Transferred Epithet) का जो प्रयोग दिखाई पड़ता है, वह भी अंग्रेजी की रोमांटिक कविता के प्रभाव के फलस्वरूप ही है।
‘लिरिकल बैलड्स’ की
भूमिका में जिस प्रकार रोमांटिक कवियों ने अपने ऊपर लगे आरोपों का उत्तर दिया और
रोमांटिक कविता को पाठक जगत के समक्ष उजागर करने की चेष्टा की लगभग उसी रूप में हिंदी के छायावादी कवियों ने छायावाद को स्पष्ट करने के लिए
आलोचना के मार्ग को चुना।
छायावादी
चतुष्टयी के चारों कवियों- जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तथा
महादेवी वर्मा ने स्वतंत्र पुस्तकें लिखकर तथा अपने काव्य- संकलनों की भूमिकाओं के
द्वारा छायावादी कविता के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालने की कोशिश की है।
इस दृष्टि से जयशंकर प्रसाद की कृति ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध’, निराला की ‘प्रबंध-प्रतिमा’ और ‘रवींद्र कविता
कानन’, पंत की ‘पल्लव’ की भूमिका और महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘यामा’ की भूमिका का उल्लेख किया जा सकता है।
निराला के लम्बे आलोचनात्मक निबंध ‘पंत और पल्लव’ की चर्चा की जा सकती है। कहना यह है
कि छायावाद के सभी कवियों ने छायावाद पर लगने वाले विभिन्न आरोपों के उत्तर देने
के लिए आलोचना कर्म को अपनाया और इस प्रकार हिंदी में कवि आलोचक की परंपरा की
शुरुआत हुई।
'कल्पना' छायावादी कविता की महत्त्वपूर्ण विशेषता रही
है। छायावादी कवियों ने कल्पना शक्ति के प्रयोग द्वारा नए-नए बिम्बों का अपने
काव्य में प्रयोग किया। प्रसाद जी द्वारा प्रयुक्त ‘खिला हो ज्यों बिजली का फूल’ बिम्ब अत्यंत चर्चित हुआ।
छायावादी
कवियों द्वारा कल्पना को इतना अधिक महत्व दिया जाना, निश्चय ही कॉलरिज का प्रभाव दर्शाता है। इसके साथ ही जिस प्रकार कॉलरिज ने
कविता में छंदों के महत्व को स्वीकारा उसी प्रकार छायावादी कवियों ने भी छंद को
यथेष्ट महत्व दिया। अपवादस्वरूप निराला जरूर मुक्त छंद की बात करते हैं।
निष्कर्ष
सैमुअल टेलर कॉलरिज अंग्रेजी के रोमांटिक काव्यांदोलन के प्रसिद्ध कवि आलोचक हैं। वर्ड्सवर्थ के साथ मिलकर उन्होंने ‘लिरिकल बैलड्स’ का संपादन किया, जिसे ‘रोमांटिक कविता का घोषणापत्र’ कहा जाता है।
'बायोग्राफिया लिटरेरिया’ कॉलरिज की अत्यंत चर्चित आलोचनात्मक
पुस्तक है जिसमें काव्य-संबंधी उनके चिंतन की जानकारी मिलती है।
कॉलरिज
के काव्य-चिंतन के अंतर्गत कल्पना, प्राथमिक कल्पना, ललित कल्पना, फैंसी, काव्यभाषा तथा कवि,
काव्य और कविता विषय समावेशित हैं।
इसके
साथ ही कॉलरिज ने रचना-प्रक्रिया के प्रश्न पर भी गंभीरता से विचार किया है। कॉलरिज
ने रचना-प्रक्रिया में कल्पना के महत्व को रेखांकित करते हुए इसके दो भेद किये
हैं- प्राथमिक कल्पना और आनुषंगिक कल्पना।
कॉलरिज की दृष्टि में दृश्यमान जगत की अनेक
वस्तुओं, पदार्थों, प्राणी
एवं स्थान को ग्रहण करने वाली शक्ति ही प्राथमिक कल्पना है। इसकी तुलना में
आनुषंगिक कल्पना मनुष्य के मस्तिष्क की वह क्षमता है, जिसके
कारण वह विभिन्न वस्तुओं, प्राणियों और स्थानों को अपनी
इच्छा के अनुसार निर्मित करता है। अर्थात आनुषंगिक कल्पना सायास प्रयत्न साध्य और
अन्तः शक्ति है जो वस्तुओं को अलग प्रकार से देखती है।
कॉलरिज के काव्य-चिंतन की सबसे बड़ी उपलब्धि फैंसी की अवधारणा है। फैंसी को हिंदी में रम्य कल्पना, ललित कल्पना तथा बिम्ब निर्मात्री शक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है। फैंसी वस्तुतः देश और काल के बंधन से निरपेक्ष स्मृति का ही रूप है जो योजक के रूप में कार्य करती है।
फैंसी के अंतर्गत
जिन दो बिम्बों का संयोजन किया जाता है वे प्रायः अपने स्वयं के वैशिष्ट्य के साथ
उपस्थित रहते हैं। कल्पना शक्ति और फैंसी में अंतर स्पष्ट करते हुए कॉलरिज का
मानना है कि कल्पना शक्ति सुसंबद्ध और सुगठित होती है जबकि फैंसी केवल असमान
वस्तुओं या बिम्बों को एकत्र कर देना है।
कॉलरिज
के काव्य-चिंतन का महत्वपूर्ण पक्ष है, काव्य भाषा विषयक चिंतन। कॉलरिज
का मानना है कि किसी भी व्यक्ति की भाषा दूसरे व्यक्ति से उसके अपने ज्ञान,
मेधा और संवेदना की गहराई के कारण अलग होती है इसके साथ ही
काव्यभाषा व्यक्ति के निज व्यक्तित्व को भी अपने अंदर समाहित किए हुए होती है।
कॉलरिज के काव्यभाषा चिंतन का महत्वपूर्ण पक्ष है, सार्वजनिक
भाषा की संकल्पना ।
कॉलरिज
ने काव्य (Poesy) और कविता (Poetry) में भी अंतर किया है। कॉलरिज की मान्यता है कि काव्य शब्द का अर्थ अत्यंत
व्यापक है और यह अपने अंतर्गत दर्शन, कला, चित्र आदि बहुत कुछ समेटे हुए है। जबकि कविता विशिष्ट प्रकार की छंदोबद्ध
रचना होती है, जिसका उद्देश्य आनंद प्रदान करना होता है।
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न :
प्रश्न : काव्य चिंतन का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर : काव्य-चिंतन कविता संबंधित सैद्धांतिक समीक्षा है, जिसके अंतर्गत कविता क्या है? रस, छंद, अलंकार तथा काव्यभाषा का रचना-प्रक्रिया में क्या योगदान है? इत्यादि विषय समाहित होते हैं।
प्रश्न 2 : स्वच्छंदतावादी काव्यांदोलन क्या है ?
उत्तर : अंग्रेजी साहित्य का वह काव्यांदोलन जिसकी शुरुआत 1785 ई. से मानी जाती है विलियम वर्ड्सवर्थ, पी.वी.शेली, सैमुअल टेलर कॉलरिज, विलियम ब्लेक, लार्ड बायरन इस काव्यांदोलन के कवि माने जाते हैं। इस काव्यांदोलन ने सहज-सरल दैनंदिन जीवन, प्रकृति और कल्पना को अपने काव्य का विषय बनाया।
प्रश्न 3: काव्यभाषा का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर : कविता की रचना-प्रक्रिया के दौरान सामान्य भाषा का आधार ग्रहण करते हुए और उसमें अपने अनुभव और व्यक्तित्व का समावेश करते हुए रचनाकार जिस भाषा का प्रयोग करता है, उसे काव्यभाषा कहते हैं।
प्रश्न 4: प्राथमिक कल्पना किसे कहते हैं ?
उत्तर : दृश्यमान जगत की विभिन्न वस्तुओं, पदार्थों, प्राणी एवं स्थान को देखने और उन्हें समझने में सक्षम बनाने वाली वाली शक्ति ही प्राथमिक कल्पना है।
प्रश्न 5: आनुषंगिक कल्पना का क्या अर्थ है ?
उत्तर : मानव मस्तिष्क की वह क्षमता है जिसके कारण वह विभिन्न वस्तुओं, प्राणियों एवं स्थानों को अपनी इच्छा के अनुसार निर्मित करता है।
प्रश्न : फैंसी का अर्थ क्या होता है ?
उत्तर : को फैंसी रम्य कल्पना, ललित कल्पना तथा बिम्ब निमांत्री शक्ति भी कहते हैं। फैंसी देश और काल के बंधन से मुक्त स्मृति का ही रूप होती है और यह योजक के रूप में कार्य करती है।
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