टी एस इलियट का वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धान्त | t s eliot ka vastunishtha samikaran ka siddhant | eliot ka vastunishtha samikaran ka siddhant
टी एस इलियट का वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धान्त | t s eliot ka vastunishtha samikaran ka siddhant
इलियट का वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धांत |
Objective Correlative Theory of T.S.Eliot
प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा आलोचक टॉमस स्टार्न्स इलियट
(Thomas Stearns Eliot) का जन्म 26 सितंबर, 1888 को सेंट लुई अमेरिका के एक प्रतिष्ठित
परिवार में हुआ। टी.एस.इलियट बीसवीं शताब्दी के सर्वाधिक प्रभावशाली समीक्षक हैं,
इन्होंने पाश्चात्य समीक्षा को अत्यधिक गहराई से प्रभावित किया।
उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से 1910 ई. में
एम.ए.किया । इसके बाद तर्कशास्त्र, तत्वज्ञान, संस्कृत और पालि चारों विषयों को मिलाकर दर्शनशास्त्र
में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की । सन् 1948 ई. में उन्हें नोबल पुरस्कार
प्राप्त हुआ और 1965 ई.में इनकी मृत्यु हो गई ।
इलियट के सिद्धांतों
(निर्वैयक्तिकता का सिद्धांत, परंपरा की परिकल्पना का सिद्धांत और वस्तुनिष्ठ समीकरण का
सिद्धांत) में उनका ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धांत’ (A theory of
objective correlative) पाश्चात्य समीक्षा के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण देन है। इसे ‘वस्तुनिष्ठ सहसंबंधिता’ या ‘वस्तुनिष्ठ पारस्परिकता’
अथवा ‘वस्तुमूलक प्रतिरूपता’ या ‘मूर्त विधान का सिद्धांत’ इत्यादि विविध नामों से भी
जाना जाता है। ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ इलियट के निर्वैयक्तिक काव्य-सिद्धांत के संदर्भ का ही एक परिणाम है,
जिसे इलियट ने काव्य के ‘मूर्त विधान’ का फार्मूला (Formula)
अर्थात् महत्त्वपूर्ण सूत्र कहा है।
इलियट ने शेक्सपीयर के
विश्वप्रसिद्ध नाटक हैमलेट’ (Hamlet) की समीक्षा के अंतर्गत ‘हैमलेट’ को एक असफल कृति करार दिया था। इलियट ने इसके कारणों का उल्लेख करते हुए
यह संकेत किया था कि शेक्सपीयर नाटक की प्राचीन वस्तु को उपयुक्त रूप प्रदान करने
में असफल रहे हैं क्योंकि कला में भाव-प्रदर्शन का एक ही मार्ग है, और वह है उसके लिए ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण (Objective
Correlative) को प्रस्तुत किया जाये। इस प्रकार, वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत ‘हैमलेट’ की एक असफल काव्यकृति के रूप में आलोचना के अंतर्गत तथा इसके फलस्वरूप एक
सफल काव्यकृति के लिए एक सूत्र के रूप में सामने आया।
इलियट
से पूर्व वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धांत:
प्रायः ऐसा माना जाता है कि ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ इलियट की देन है। इलियट ही इस सिद्धांत के प्रवर्तक है। किंतु इलियट से पूर्व भी ‘वस्तुनिष्ठ
समीकरण’ या ‘ऑब्जेक्टिव कोरिलेटिव’ का अस्तित्व था किन्तु इसे सिद्धांत के रूप में दुनिया के सामने लाने का
श्रेय निर्विवाद रूप से इलियट को है।
वस्तुनिष्ठ
समीकरण-सिद्धांत की समस्या और उद्देश्य :
इलियट ने अपने बहुचर्चित निबंध ‘हैमलेट एंड हिज प्रॉब्लम्स’
(हैमलेट और उसकी समस्याएँ) में मूर्त विधान’ या
‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ (Objective
Correlative) की व्याख्या एवं प्रतिपादन किया है। उनकी ‘ऑब्जेक्टिव कोरिलेटिव’ की अवधारणा को भारतीय
काव्यशास्त्र की ‘विभावन व्यापार’ से
संबंधित अवधारणा के एकदम निकट माना जाता है। मूलतः यह प्रक्रिया अमूर्त के मूर्त
अथवा वैयक्तिक के निर्वैयक्तिक में रूपांतरण की प्रक्रिया है।
डॉ. देवेन्द्रनाथ शर्मा ने ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ के संबंध में इसकी समस्या को उठाते हुए इसका समाधान प्रस्तुत करते हुए
लिखा है- “कवि जब काव्य-रचना में प्रवृत्त होता है, तो उसके
मूल में प्रेरक भाव कोई एक ही रहता है, परंतु बाद में अनेक
भाव, संवेदन तथा विचार परस्पर मिलने लगते है और काव्य की
परिणति या समाप्ति होते-होते तक न जाने उसमें कितने भावों, संवेदनों
तथा विचारों का सम्मिश्रण एवं विलयन (Fusion) हो चुका होता
है।
ये सभी भाव, संवेदन तथा विचार अमूर्त होते
हैं। अमूर्त का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता और भावक को अप्रत्यक्ष की अनुभूति नहीं हो
सकती। अतः प्रश्न है कि इन्हें अनुभूति के योग्य कैसे बनाया जाये अर्थात् कवि के
मन से भावक के मन तक इनका संप्रेषण कैसे हो? एक ओर कवि है,
दूसरी ओर भावक है, दोनों में कोई संबंध-सूत्र
नहीं, फिर भी कवि की भाव-संपदा को भावक के मन में यथावत्
उतारना है। कोई ठोस चीज होती तो यहाँ से उठाकर वहाँ रख देते किंतु चीज है बिल्कुल
अमूर्त। इस अमूर्त को भावक तक कैसे पहुँचाया जाये? अमूर्त का
संप्रेषण नहीं हो सकता, यह सिद्ध है। ऐसी स्थिति में एक ही
उपाय है कि किसी मूर्त वस्तु की सहायता से अमूर्त को संप्रेषित किया जाये ?
इसी प्रश्न का समाधान करने के लिए इलियट ने ‘मूर्त
विधान’ या ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ प्रस्तुत किया है।"
वस्तुनिष्ठ
समीकरण सिद्धांत का सूत्र :
इलियट के ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ से संबंधित सूत्र इस प्रकार है–
कला के रूप में भावाभिव्यक्ति
का एक मात्र मार्ग वस्तुनिष्ठ समीकरण को पाना है। दूसरे शब्दों में, ऐसी वस्तु-संघटना, स्थिति, घटना-श्रृंखला प्रस्तुत की जाये जो उस
नाटकीय भाव का सूत्र हो ताकि वे बाह्य वस्तुएँ, जिनका
पर्यवसान मूर्त मानस अनुभव में हो जब प्रस्तुत की जायें तो तुरंत भावोद्रेक हो
जाये।
इलियट
के सूत्र की व्याख्या:
इलियट के ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ का सूत्र स्पष्ट नहीं है और यह व्याख्या की अपेक्षा रखता है। निम्नलिखित बिंदुओं
में इसकी व्याख्या सरल सहज ढंग से की का सकती है :
1.
भाव मूलतः अमूर्त
होता है। इसलिए उसकी अभिव्यक्ति किसी मूर्त वस्तु या स्थिति की सहायता से ही संभव
है।
2.
जिस भाव की
अभिव्यक्ति की जानी है और जिस वस्तु/व्यापार के माध्यम से यह अभिव्यक्ति की जाती
है उनके बीच ऐसा संबंध होना चाहिए कि उस वस्तु के उपस्थित होने पर तत्काल वह भाव
अभिव्यक्त हो सके।
3.
भाव के
प्रकृत रूप से सम्बद्ध कोई वस्तु, समुदाय, कोई परिस्थिति या कोई घटना
श्रृंखला हो सकती है जिससे उस अमूर्त भाव को मूर्त रूप में अभिव्यक्त और
सम्प्रेषित किया जा सके।
4. वास्तव में बाह्य वस्तुएँ ही कवि और आस्वादक या
पाठक के बीच सूत्र -भाव-तादात्म्य स्थापित करने में माध्यम की भूमिका का निर्वाह
करती है, उन्हीं के द्वारा कवि और पाठक एक भावभूमि पर मिलते हैं।
5. एक बार भाव के उदबुद्ध होते ही, उससे
सम्बद्ध वस्तु-व्यापार की ऐन्द्रिय अनुभूति समाप्त हो जाती है।
इस प्रकार, ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ के अनुसार कविता आदि कलाकृतियाँ एक प्रकार की वाचिक संरचना होती हैं,
जिनके माध्यम से उन मनोभावों का संप्रेषण होता है, जिनका सम्प्रेषण करना कवि का मुख्य उद्देश्य है।
कवि अपने मनोभावों को सीधे पाठक
तक उसी तीव्रता के साथ संप्रेषित नहीं कर
सकता जैसा वह स्वयं महसूस करता है और इसके लिए वह किसी माध्यम का सहारा लेता है।
यही वस्तुओं, घटनाओं और घटना-श्रृंखला के रूप में आता है और इसी के माध्यम से कवि जो
कुछ कहना चाहता है, वह निजी न रहकर वस्तुनिष्ठ (objective) हो जाता है।
इस प्रकार कवि अपनी कविता के माध्यम से अपने
भावों को सीधे संप्रेषित नहीं करता बल्कि प्रतीकों के माध्यम से उन्हें जाग्रत करता
है। इलियट के इस ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ (Objective
correlative) को भारतीय रस सिद्धांत के ‘विभावन व्यापार’ की संज्ञा
दी गई है। इलियट की ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण’ या ‘ऑब्जेक्टिव कोरिलेटिव’ की अवधारणा को भारतीय
काव्यशास्त्र की ‘विभावन व्यापार’ से
संबंधित अवधारणा के एकदम निकट माना जाता है। मूलतः यह प्रक्रिया अमूर्त के मूर्त
अथवा वैयक्तिक के निर्वैयक्तिक में रूपांतरण की प्रक्रिया है।
निष्कर्ष
विद्वानों का यह मानना है कि ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ (Objective correlative) या ‘मूर्त विधान का
सिद्धांत’ इलिय की मौलिक उद्भावना का
प्रतिफल नहीं है। इसका सबसे पुराना संकेत प्रथम बार अरस्तू के चिंतन में मिलता है।
तत्पश्चात फ्रांस के प्रतीकवादी भी अपने काव्य में इसी पद्धति का सहारा लेते हैं।
यह भी संभव है कि प्रतीकवादियों से ही इलियट ने इस ‘मूर्त
विधान’ की अवधारणा को ग्रहण किया हो। क्योंकि दोनों में
थोड़ा ही अंतर है। इलियट वस्तु की व्यंजकता से ज्यादा भाव के साथ उसके सटीक संबंध
को महत्व देते हैं जबकि फ्रांस के प्रतीकवादी चिंतक प्रतीक की सटीकता से ज्यादा
उसकी व्यंजकता के कायल रहे हैं।
इलियट का ‘मूर्त विधान सिद्धांत’ या ‘वस्तुनिष्ठ समीकरण सिद्धांत’ भारतीय रस सिद्धांत का विभावन व्यापार ही प्रतीत होता है। विभावन व्यापार
में किसी भाव को उद्बुद्ध करने में आलम्बन और उद्दीपन विभावों की समान रूप से
सार्थकता है। इलियट ने इस अवधारणा के आधार पर शेक्सपियर के नाटक ‘हैमलेट’ को एक
असफल नाटक माना है। उनका तर्क है कि उसमें नियोजित बाह्य वस्तु व्यापार, भाव
संवेदन को जाग्रत करने के लिए अपर्याप्त है।
हिंदी में तुलसीदास का ‘रामचरितमानस’ और निराला की ‘राम की शक्ति पूजा’ ‘मूर्त विधान’ के आदर्श हैं जिनमें अमूर्त भावों को मूर्त करने में कवियों को अद्भुत
सफलता मिली है।
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