राम की शक्ति पूजा की व्याख्या | Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya | भाग-1| Part-1


राम की शक्ति पूजा की व्याख्या भाग-1
Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya | Part-1


‘राम की शक्ति पूजा’ निराला द्वारा 1936 में रचित एक लम्बी कविता है, जो उनके काव्य संकलन 'अनामिका' में संकलित है। 312 पंक्तियों की इस कविता की कथा पौराणिक है, परन्तु निराला ने उसे सर्वथा मौलिक रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रासंगिक बना दिया है।
ram ki shakti puja ki vyakhya


आज हम Ram ki Shakti Puja के प्रारम्भिक 10 पंक्तियों की व्याख्या को समझने का प्रयास करेंगे । संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में जब कविताओं की व्याख्या लिखनी होती है तो आपको कुल 150 शब्दों में इसका उत्तर लिखना होता है । इसमें आपको संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या और विशेष सब मिलाकर कुल 150 शब्दों में उत्तर लिखना होता है ।

लेकिन मैंने आपको इसमें विस्तार से सब कुछ बताने का प्रयास किया है ताकि इस कृति से संबंधित न केवल व्याख्या बल्कि किसी भी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर दे सकने में आप समर्थ और सक्षम हो पायेंगे । यह पहला भाग है । इसके सभी भाग धीरे-धीरे यहाँ पर आएंगे । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस लेख को पढ़कर आप इस कविता की मूल संवेदना को अत्यंत सरल शब्दों में बहुत आसानी से समझ पाएंगे।

‘राम की शक्ति पूजा’ को निराला के जीवन की महानतम उपलब्धि माना जाता है । यह कृति संस्कृत ग्रंथ - देवी भागवत और शिव महिमास्त्रोत तथा बांग्ला भाषा में रचित ‘कृत्तिवास रामायण’ पर आधारित है । इसमें कुल 312 पंक्तियाँ और 8 दृश्य हैं।

‘राम की शक्ति पूजा’ का सामान्य परिचय

राम-रावण का युद्ध चल रहा है। इस युद्ध में 'राम' प्रबल पराक्रम दिखाने के बाद भी रावण पर विजय प्राप्त नहीं कर पाते। उनके बाण लक्ष्य भ्रष्ट हो रहे हैं, अर्थात् अपने निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुँच रहे हैं । वानर सेना जिन वीरों को अपनी वीरता पर अभिमान था उनका अभिमान चूर-चूर हो गया है ।

रावण की सहायता 'शक्ति' कर रही है अतः वह किसी से भी परास्त नहीं हो पा रहा है। एकमात्र हनुमान ही जैसे-तैसे राम की पराजय को टालते हुए युद्धरत हैं।

राम निराश हैं, उन्हें लगता है कि अब रावण पर विजय प्राप्त कर पाना सम्भव नहीं है। जब उनसे उनकी निराशा के बारे में पूछा जाता है तो वे दुःखी होकर कहते हैं कि अब तो देवशक्तियां भी अन्यायी रावण का साथ दे रही हैं, अतः अब उस पर विजय पाना असम्भव है।
जामवंत बहुत ही विशवास से भरे हुए स्वर में राम को 'शक्ति पूजा' का सुझाव देते हैं। उनके सुझाव को मानते हुए राम ने शक्ति की साधना की। देवी ने उनकी परीक्षा भी ली जिसमें वे सफल हुए।

‘शक्ति’ हँसते हुए पूजा का एक नील कमल चुरा ले गई, राम ने जब उस फूल के स्थान पर अपना नेत्र चढ़ाने का संकल्प कर लिया तब देवी हँसते हुए प्रकट हो गई और उन्हें विजयश्री का वरदान देकर उनके शरीर में समा गई।

निराला ने इस पौराणिक कथानक के माध्यम से जीवन में व्याप्त सत्-असत् के संघर्ष को व्यक्त किया है। आज भी हमारे समाज में ऐसे 'रावण' विद्यमान हैं, जो दूसरे की पत्नी का अपहरण करने के बाद अट्टहास करते हैं और 'राम' (सामान्य व्यक्ति का प्रतीक) का उपहास करते हुए कहते हैं कि तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, क्योंकि 'शक्ति' को मैंने अपने वशीभूत कर लिया है।

ऐसे दुष्टों के पास धनबल, शारीरिक बल, अस्त्रबल हर प्रकार का बल (शक्ति) है, किन्तु उनकी यह शक्ति 'तामसी' है जिसका प्रतिरोध करने के लिए 'राम' को भी शक्ति (दुर्गा) की पूजा कर 'शक्ति संचय' करना पड़ता है।

युगीन आवश्यकताओं के अनुरूप 'शक्ति की मौलिक' कल्पना हर व्यक्ति को करनी पड़ती है। वर्तमान युग में यह 'संगठन शक्ति' हो सकती है शक्ति का यह स्वरूप 'सात्विक' होता है 'तामसिक' नहीं। इसके बल पर उस तामसी शक्ति सम्पन्न रावण को पराजित किया जा सकता है। यही 'राम की शक्ति पूजा' के माध्यम से निराला का संदेश है।

पौराणिक कथा पर आधारित होने के बावजूद भी यह कविता अपनी प्रतीकात्मकता के कारण सदैव प्रासंगिक है।

भाग - (1)

रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा अमर

रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।

आज का, तीक्ष्ण-शर-विधृत-क्षिप्र-कर, वेग-प्रखर,

शतशेल सम्बरणशील, नील नभ-गर्जित-स्वर।

प्रतिपल परिवर्तित व्यूह-भेद-कौशल-समूह-

राक्षस-विरुद्ध-प्रत्यूह, क्रुद्ध-कपि-विषम-हूह।

विच्छुरित-वह्नि-राजीवनयन-हत-लक्ष्य-बाण,

लोहित लोचन रावण मदमोचन-महीयान।

राघव-लाघव-रावण-वारण-गत-युग्म-प्रहर,

उद्धत लंकापति मर्दित कपिदल बल-विस्तर ।।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्तियां छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित 'राम की शक्ति पूजा' से ली गई हैं। मूल रूप से यह कविता उनके काव्य संग्रह 'अनामिका' में संकलित है।

प्रसंग - राम-रावण का युद्ध चल रहा था। सूर्यास्त हो जाने पर आज का युद्ध स्थगित हो गया, किन्तु आज के युद्ध में दोनों ओर के वीरों ने अभूतपूर्व वीरता और शौर्य का परिचय दिया। युद्ध में इतनी तेजी थी कि प्रतिपल नए-नए व्यूह (सैनिकों को विशेष क्रम में व्यवस्थित करना) बनाए जा रहे थे और प्रतिपक्षी (विरोधी पक्ष के वीर सैनिक) उस व्यूह रचना को भंग कर देते थे। आज राम के वाण लक्ष्य भ्रष्ट हो रहे थे अर्थात् अपने निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुँच रहे थे, जिससे उनकी आंखों में क्रोध की लालिमा साफ झलक रही थी। इन पंक्तियों में कवि ने इसी वृत्तान्त (घटना) का वर्णन किया है।

व्याख्या - सूर्य अस्त हो गया तथा राम-रावण का आज का युद्ध स्थगित कर दिया गया। आज का यह युद्ध अनिर्णीत रहा अर्थात् कोई भी पक्ष विजयी नहीं हुआ। न तो राम रावण को पराजित कर सके और न ही रावण राम को पराजित कर पाया।

आज का युद्ध भले ही अनिर्णीत रहा हो, किन्तु आज दोनों पक्षों के वीरों ने जो अभूतपूर्व वीरता दिखाई थी, वह उस दिन के इतिहास में लिखी जाकर सदैव के लिए अमर हो गई।

दोनों ओर के योद्धा अपने फुर्तीले हाथों में तीक्ष्ण बाण धारण किए हुए थे जिन्हें वे बड़ी फुर्ती से प्रतिपक्षियों पर चला रहे थे। वे योद्धा इतने वीर थे कि एक-एक योद्धा सैकड़ों भालाधारी सैनिकों को रोकने में समर्थ था।

नीला आकाश वीरों की गर्जना एवं सिंहनाद के स्वर से गुंजायमान हो रहा था। युद्ध में इतनी तेज़ी थी कि प्रतिपल व्यूह रचना (सैन्य विन्यास) परिवर्तित की जा रही थी।

एक ओर के सेनानायक जो व्यूह रचना करते थे, प्रतिपक्षी सैनिक उस व्यूह रचना को तुरन्त ही छिन्न-भिन्न कर देते थे। इस प्रकार नई-नई व्यूह रचना एवं उन व्यूहों को तोड़ने के कौशल दिखाए जा रहे थे।

राक्षसों के विरुद्ध अवरोध उपस्थित करने के लिए क्रोधित वानर सेना भयंकर हुंकार भर रही थी।

आज कमल जैसे नेत्रों वाले राम के बाण लक्ष्य भ्रष्ट हो रहे थे इसलिए उनकी आंखों से क्रोध की चिनगारियां फूट रही थीं।

महिमावान और अत्यंत शक्तिशाली रावण के मद (घमंड) को चूर-चूर करने में समर्थ होने के बावजूद राम रावण को पराजित नहीं कर पा रहे थे इसलिए राम के नेत्र क्रोध के कारण रक्तवर्ण (लाल) हो रहे थे।

आज रावण अभूतपूर्व युद्ध कौशल का परिचय दे रहा था। राम अत्यन्त लाघव (फुर्ती एवं चतुराई) से रावण पर बाणों का प्रहार करते थे, किन्तु रावण उतनी ही कुशलता से उनके बाणों का निवारण कर देता था। राम-रावण का युद्ध चलते हुए दो प्रहर का समय बीत गया, किन्तु कोई निर्णय नहीं हो सका। रावण ने अभूतपूर्व शौर्य का प्रदर्शन करते हुए विशाल वानर सेना को तहस-नहस कर दिया।

विशेष : 

(1) राम-रावण के युद्ध का ओजपूर्ण चित्रण इन पंक्तियों में किया गया है।

(2) वीररस की योजना की गई है। भाषा में ओज गुण की प्रधानता है।

(3) राम की शक्ति पूजा में प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है। वीर रस के अनुकूल भाषा प्रयुक्त है जिसमें संस्कृतनिष्ठ सामासिक पदावली प्रयुक्त है।

(4) ज्योति के पत्र का शाब्दिक अर्थ है- प्रकाश का पृष्ठ। अगर समय को पुस्तक मान लिया जाए तो प्रकाश के पृष्ठ अर्थात् दिन ही इसके पन्ने होंगे। इसका लाक्षणिक अर्थ है-उस दिन के इतिहास में।

(5) युद्ध की त्वरा (तेज़ी), वीरों का सिंहनाद, प्रतिक्षण बदलती व्यूह रचना (सैनिकों को विशेष क्रम में व्यवस्थित करना) दृश्य को साकार कर रहे हैं।

(6) राजीव नयन में उपमा अलंकार।

(7) राघव-लाघव में पदमैत्री।

(8) प्रत्यूह, हूह जैसे शब्दों में कठोर वर्णों की योजना से वीर रस के अनुकूल शब्दावली का प्रयोग है।

(9) राम की शक्ति पूजा 312 पंक्तियों की एक लम्बी कविता है जिसमें 'शक्ति पूजा' छन्द का प्रयोग है। यह निराला का मौलिक छन्द है।


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