मिथक क्या है | Mithak Kya Hai
मिथक का अर्थ अर्थ - अंग्रेजी के मिथ (Myth) का समानार्थी शब्द 'मिथक' है, जो यूनानी शब्द ‘माइथोस’ से निष्पन्न है। इसका अर्थ है- अतर्क्य आख्यान। हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि हिंदी साहित्य में मिथकों का प्रयोग किस प्रकार किया गया है ।
विको ने मिथक को एक प्रकार की काव्यभाषा कहा है।
लेवी स्ट्रॉक ने मिथक को विशुद्ध मानसिक रूपात्मक क्रिया कहा है।
मिथक की विशेषताएँ
(1) यह मनगढ़न्त या पौराणिक कथा है, जिसमें अतिमानवीय प्राणी या घटना का विवरण होता है।
(2) इसमें तार्किकता का निषेध होता है एवं इसका अस्तित्व भावजनित एवं कल्पनाजनित होता है।
(3) मिथक की कथा मानवेतर, विशेषकर देवताओं से संबंधित एवं लोकविश्वास पर आधारित होता है।
(4) मिथक में विस्मयपूर्ण एवं कौतूहलवर्द्धक घटनाओं का लेखा-जोखा होता है।
(5) मिथक में भावनाएँ सामूहिक अचेतन मन से जुड़े होते हैं।
मिथकों का महत्त्व
किसी संस्कृति को जानने- समझने में मिथक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं। मिथकों के माध्यम से आदिम समाज स्वयं को अभिव्यक्त करता था। आधुनिक काल में यह साहित्यकारों के भावों की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है।
हिन्दी साहित्य और मिथक
भारतीय मिथक-परंपरा का आरंभ ऋग्वेद से माना जाता है। हिंदी में ‘मिथक’ शब्द का प्रयोग आधुनिक काल में हुआ। मिथक शब्द आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की देन है।
प्रियप्रवास (हरिऔध), साकेत (मैथिलीशरण गुप्त), कामायनी (जयशंकर प्रसाद), कुरुक्षेत्र (दिनकर), उर्वशी (दिनकर), कनुप्रिया, अंधायुग (धर्मवीर भारती), एक कंठ विषपायी (दुष्यंत कुमार), संशय की एक रात (नरेश मेहता), शम्बूक, गोपा गौतम और बोधिवृक्ष (जगदीश गुप्त), आत्मदान (बलदेव वंशी), आत्मजयी (कुँवर नारायण) इत्यादि आधुनिक रचनाओं में मिथकों का सार्थक और सफल प्रयोग हुआ है।
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