काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | Kavya men Lokmangak ki Sadhnavastha – Acharya Ramchandra Shukla
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ऐसे काव्यों को, जिनमें मंगल का विधान (कल्याण करने का उद्देश्य) करने वाला भाव ‘करुणा’ बीज रूप में विद्यमान रहता है, श्रेष्ठ घोषित करके ‘लोक मंगल की साधना’ को काव्य-प्रतिमान के रूप में प्रतिष्ठित किया है । उनका तर्क है कि लोक में मंगल का विधान करने वाले दो भाव हैं- ‘करुणा’ और ‘प्रेम’। ‘करुणा’ की … Read more