मानवतावाद क्या है | manavatavad kya hai

हिंदी साहित्य में प्रचलित विभिन्न अवधारणाओं के अंतर्गत आज हम manavatavad kya hai को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे । इस लेख को पढ़ने के बाद आप manavatavad की अवधारणा को भली-भाँति समझ पाएंगे।

मानवतावाद के लिए अंग्रेजी में शब्द है ‘हयूमेनिटेरियनिज़्म’ (Humanitarianism) मानवतावाद, मानव यानी व्यष्टि को अपना प्रतिपाद्य बनाकर विश्व कल्याण एवं जीवमात्र की हित-कामना करता है तथा वह मानव को आदर्श बनाने और उसके मानवीय-गुणों के विकास पर बल देता है, क्योंकि वह मानव के समस्त आंतरिक संघर्ष समाप्त करना आवश्यक समझता है।

Manavatavad की सबसे बड़ी विशेषता है मानव का उत्थान करना तथा उसका आदर्श रूप समाज के सम्मुख प्रस्तुत कर उसे अनुकरणीय बनाना। समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले अवतार, संत महात्मा, योगी, समाज-सुधारक, श्रेष्ठ साहित्यकार सभी श्रेष्ठ आदर्श मानव थे और समाज के लिए अनुकरणीय भी थे। अतः मानवतावाद की विचारधारा मानवीय-गुण-संवर्द्धन की विचारधारा है।

वास्तव में मानव के भीतर रहनेवाले दया, करुणा, दान, शील, सौजन्य, क्षमा आदि के समन्वित लोकोपकारक स्वरूप को ‘मानवता’ कहा जाता है। मनुस्मृति में इन्हें धर्म के लक्षण के रूप में इनका उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि धृत्ति, क्षमा, दया, अचौर्य, शौच, इंद्रिय निग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध ये धर्म के दस लक्षण हैं। इसके विपरीत स्वभाव को पशुता कहा जाता है।

मानव में सत्वगुण की प्रधानता होने के कारण त्याग, तप, सत्य, सदाचार, परोपकार और अहिंसा आदि गुण स्वभावतः पाये जाते हैं। मानवता के गुण से सम्पन्न व्यक्ति सर्वथा, सिद्ध-संकल्प, सर्व-सुहृद, समदर्शी और सर्व-हितैषी होता है और ‘आत्मवत् सर्वभूतेष’ के अनुसार प्राणिमात्र को अपना समझकर उन पर दया और प्रेमभाव रखता है।

 मानवतावाद की सबसे बड़ी विशेषता आंतरिक अनुभूति है जो मानव विकास का एक अंग है। मानवतावादी से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसने अंतःस्थित उस चेतना का अनुभव कर लिया है जो प्राणिमात्र से हमारा संबंध स्थापित करती है।

मानव-कल्याण की पूर्णता के लिए डॉ. राधाकृष्णन सच्चे मानवतावाद का अंकन इन शब्दों में करते हैं, “सच्चा मानवतावाद हमें बताता है कि हमें मनुष्य में साधारण अवस्था में जो कुछ प्रत्यक्ष दिखायी देता है, उससे भी कुछ अधिक श्रेष्ठ तत्त्व उसमें है जो उसके विचार तथा आदर्श का निर्माण करता है। उसमें एक श्रेष्ठ आत्मा का निवास है जो उसे भौतिक वस्तुओं, जिनसे उसकी संतुष्टि नहीं होती, विमुख करता है। वास्तव में मानव कल्याण और सार्वभौमिक कल्याण के लिए आध्यात्मिक एकता की उपेक्षा और धार्मिक-अनुभूति को अस्वीकार करना दार्शनिक दृष्टि से अनुचित है, नैतिक विचार से असुरक्षित तथा सामाजिक दृष्टि से भयंकर है। जहां ईश्वरीय भावना है वहां एकता और समता है।”

मानवतावाद का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष है सभी प्राणियों में समानता की भावना। इस विचारधारा को मानवतावाद इसीलिए कहा गया कि समस्त प्राणियों में मानव ही सर्वाधिक समर्थ है, अतः सब प्राणियों की रक्षा का भार भी उसी पर है।

मानववाद और मानवतावाद दोनों ही विचारधाराएं मानव-कल्याण की इच्छुक हैं, वे स्वतंत्रता और समानता का प्रतिपादन करती हैं तथा एकता, एकसूत्रता, समन्वय, सामंजस्य और संतुलन को स्वीकार करती हैं।

दोनों ही विचारधाराएं सहानुभूति, सहिष्णुता एवं परमार्थ का महत्व मानती हैं, इसीलिए ये आशावादी हैं।

इन कुछ समानताओं के होते हुए भी मानवतावाद और मानववाद में विचार तथा प्रक्रिया संबंधी पर्याप्त अंतर हैं। मानवतावाद में भावुकता एवं सहज आर्द्रता है जबकि मानववाद में बुद्धि का प्राधान्य है।

इस प्रकार मानवतावाद एक ऐसी नैतिक भावना है जो मानवता और उसके विकास पर बल देती है। अनुकम्पा और करुणा मानव-स्वभाव के अभिन्न अंग हैं। प्राणिमात्र की रक्षा में समभाव, मानवतावाद की एक विशेषता है।

मानवतावाद दया, समता, ममता, न्याय, एकता, प्रीति, सत्य, अहिंसा, कल्याण-बुद्धि, भ्रातृत्व आदि पर बल देता है।

मानव-मूल्यों द्वारा मानवतावाद, संसार का सुधार ही नहीं करना चाहता, उसे आदर्श भी बनाना चाहता है।

विश्व-प्रेम और विश्व-मंगल की कामना भारतीय चिंतनधारा की मूल भावना है। आधुनिक काल में इसे manavatavad की संज्ञा प्रदान की गयी किंतु इससे पूर्व यह भावना आदर्श-मानव, विश्व कल्याण, लोक-कल्याण, लोक-हित, वसुधैव कुटुम्बकम्, सार्वभौमिक एकता, सर्वात्म ऐक्य, पंचशील पालन, लोकसंग्रह, सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय जैसी कल्याण-परक शब्दावलियों में अभिव्यक्त होती रही।

इस प्रकार manavatavad एक अत्यंत व्यापक भावना है जिसके लिए कोई लिखित-विधान नहीं है किंतु यह अनुभूति, व्यवहार के आधार पर मानव के आदशों-स्वतंत्रता, समता, गौरव, शांति, प्रेम, सहभाव, विश्वास के सहज गुणों द्वारा जीवन में व्याप्त है। इसमें कोई भी मत, संप्रदाय, धर्म, दर्शन बाधक नहीं हो सकता और उसका लक्ष्य एकमात्र यही है कि संसार के समस्त प्राणी सुखी रहें, सबका कल्याण हो, किसी को कोई कष्ट न हो और कोई भी दुःख का भागी न बने।

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