देवनागरी लिपि में समय-समय पर अनेक सुधार एवं संशोधन होते रहे हैं, जिन्हें देवनागरी लिपि का विकासात्मक इतिहास कहा जा सकता है। तो आइए अब Devnagari Lipi men Sudhar aur Sanshodhan पर विस्तार से विचार-विमर्श करते हैं । ये सुधार इसके दोषों का निराकरण करने हेतु तथा इसे लेखन एवं टंकण आदि की दृष्टि से अधिक उपयोगी बनाने हेतु किये जाते रहे हैं। इन सुधारों एवं संशोधनों का क्रमबद्ध विवेचन निम्न प्रकार किया जा सकता है:
1. सर्वप्रथम बम्बई के महादेव गोविन्द रानाडे ने एक लिपि सुधार समिति का गठन किया। तदनन्तर महाराष्ट्र साहित्यपरिषद्, पुणे ने लिपि-सुधार योजना तैयार की।
2. सन् 1904 में बाल गंगाधर तिलक ने ‘केसरी’ नामक समाचार पत्र में देवनागरी लिपि के सुधार की चर्चा की और 1926 तक देवनागरी के टाइपों की छँटाई करते-करते 190 टाइपों का एक फॉन्ट बना लिया, जिसे ‘तिलक फॉन्ट’ या ‘तिलक टाइप’ कहते हैं।
3. तत्पश्चात् सावरकर बंधुओं, महात्मा गाँधी, विनोबा भावे और काका कालेलकर ने इस लिपि में सुधार का प्रयास करते हुए इसे सरल एवं सुगम बनाने का प्रयास किया। महात्मा गाँधी के ‘हरिजन सेवक’ समाचार पत्र में काका कालेलकर द्वारा सुझायी हुई अ की बारहखड़ी का प्रयोग किया जाता था ।
काका कालेलकर की बहुत-सी पुस्तकों में इस लिपि का प्रयोग किया गया है। इस लिपि का एक उदाहरण दृष्टव्य है
प्रचलित देवनागरी काका कालेलकर की लिपि
उसके खेत में ईख अच्छी है। अुसके खेत में अीख अच्छी है।
4. डॉ. श्यामसुन्दर दास ने यह सुझाव दिया कि प्रत्येक वर्ग में पंचम वर्ण – ङ, ञ, ण, न, म के स्थान पर केवल अनुस्वार का प्रयोग किया जाये।
- ङ – क वर्ग का पंचम अक्षर
- ञ – च वर्ग का पंचम अक्षर
- ण – ट वर्ग का पंचम अक्षर
- न – त वर्ग का पंचम अक्षर
- म – प वर्ग का पंचम अक्षर
उदाहरण :
अङ्क – अंक, कन्धा – कंधा, पञ्च – पंच, कण्ठ – कंठ, कम्बल – कंबल
श्यामसुन्दर दास जी का यह सुझाव व्यावहारिक था, इसलिए आज लोग पंचमाक्षरों के स्थान पर केवल अनुस्वार का प्रयोग करते हैं।
5. सन् 1947 में उत्तर प्रदेश सरकार ने आचार्य नरेन्द्रदेव की अध्यक्षता में लिपि सुधार की एक ठोस योजना बनाई । नरेन्द्रदेव समिति ने पहले के सभी सुझावों का अध्ययन करने के बाद अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं, जो कि निम्नलिखित हैं :
(क) अ की बारहखड़ी भ्रामक है ।
(ख) मात्राएं यथास्थान बनी रहें, किन्तु उन्हें थोड़ा दाहिनी ओर हटा कर रखा जाए।
(ग) अनुस्वार और पंचमाक्षर की जगह शून्य (0) का प्रयोग किया जाए ।
(घ) शिरोरेखा लगाई जाए ।
(ङ) संयुक्त व्यंजनों में पहले व्यंजन की पाई हटाई जाए और शेष व्यंजन हलंत करके लिखे जाएं ।
(च) द्विविध लिखे जाने वाले वर्णों को इस प्रकार लिखा जाए – अ, झ, ध, भ, ल । श्र का प्रयोग होता रहे ।
(छ) ळ को वर्णमाला में स्थान दिया जाए ।
नोट : केन्द्रीय हिन्दी समिति ने हिंदी वर्णमाला में संशोधन करते हुए ळ को विशिष्ट व्यंजन के रूप में शामिल किया है। अब कुल वर्णों की संख्या 52 से बढ़कर 53 हो गई है।
इन सुझावों को लगभग स्वीकार करते हुए तदनुसार कार्य किया जाता रहा ।
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने वर्ष 2024 में देवनागरी लिपि एवं हिंदी वर्तनी का मानकीकरण किताब प्रकाशित की है । कृपया इसका भी अध्ययन करें ।
नागरी लिपि का प्रयोग हिंदी, मराठी, संस्कृत, नेपाली आदि भाषाओं के लिए होता है, अतः इन भाषाओं की कुछ ध्वनियों को अंकित करने के लिए देवनागरी में अतिरिक्त चिन्ह ग्रहण कर लिये जायें तो निश्चय ही सभी भाषाओं को पूरी तरह लिखने की सामर्थ्य इसमें आ जायेगी और तब यह और भी अधिक उपादेय हो जायेगी।
इस प्रकार देवनागरी लिपि में समय-समय पर अनेक सुधार एवं संशोधन होते रहे हैं। प्रयास यही रहा है कि इस लिपि को अधिकाधिक उपयोगी बनाया जाये।
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