शोध के लिए ‘सिनोप्सिस’ (रूपरेखा) कैसे तैयार करें | Shodh Ke Lie Synopsis Kaise taiyar Karen

शोध के लिए ‘सिनोप्सिस’ (रूपरेखा) कैसे तैयार करें | Shodh Ke Lie Synopsis Kaise taiyar Karen
shodh ke lie synopsis kaise taiyar karen

आज जो तथ्य, विषय अज्ञात है, उसे जानना ही अनुसंधान है। अनुसंधान कार्य करने से पहले सर्वप्रथम विषय का चुनाव करना होता है।अनुसंधान-प्रक्रिया का दूसरा सोपान निर्देशक का चुनाव है । उनके बिना अनुसंधान-कार्य की कल्पना करना असंभव है । अनुसंधान-प्रक्रिया में विषय का चुनाव कर लेने के बाद अगले पड़ाव अथवा लक्ष्य के रूप में रूपरेखा तैयार करने का कार्य करना होता है । इसे अँग्रेजी में सिनोप्सिस कहते हैं, जिसे तैयार करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य होता है । अनुसंधान की सफलता का पहला चरण है, रूपरेखा तैयार करना । आज हम shodh ke lie synopsis kaise taiyar karen विषय का विस्तृत विवेचन करेंगे और इसे विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे ।

रूपरेखा या प्रारूप शोधकार्य का बीज है, जिसका सम्पूर्ण विकास शोध-प्रबंध के विस्तृत वटवृक्ष के रूप में होता है । यह प्रबंध को मूर्त रूप देता है ।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि शोध-विषय का क्रमिक अर्थात् अध्यायों, शीर्षकों, उप-शीर्षकों में व्यवस्थित विभाजन ही रूपरेखा है । सिनोप्सिस किसी भी शोध की जननी है । इसमें शोध-कार्य का सार, संक्षेप में प्रस्तुत करना होता है।

सिनोप्सिस तैयार करना synopsis  taiyar karna

 रूपरेखा तैयार करने से पूर्व शोध-छात्र को कुछ तथ्य स्पष्ट करने होते हैं। उदाहरण के लिए शोध का क्या लक्षण होगा ? शोध की कौन सी प्रविधि होगी ? शोध-लेखन किस शैली में होगा ? शोध-प्रबंध में कितने अध्याय होंगे ? शोध के लिए सहायक सामग्री तथा अंगीय कार्य (field work) आदि का किस प्रकार प्रयोग किया जाएगा आदि । 

अध्याय का विभाजन

सर्वप्रथम अनुसंधानकर्ता को अध्यायों का विभाजन करना होता है अर्थात् उसे यह निर्धारित करना होता है कि वह अपने शोध-कार्य को कितने अध्यायों में प्रस्तुत करेगा । साथ ही साथ उसे यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि अध्यायों की संख्या न तो बहुत अधिक हो और न
बहुत कम । प्रायः यह माना जाता है कि शोध में सात से ग्यारह अध्याय तक होना आदर्श होता है । अध्याय विभाजन विषय की गहराई
, लंबाई और चौड़ाई के अनुरूप ही होना आवश्यक है । 

शोध-विषय का क्रमिक तथा व्यवस्थित विभाजन

शोध-विषय का क्रमिक तथा व्यवस्थित विभाजन ही रूपरेखा है । यह शोध-कार्य का कच्चा लेखा-जोखा है । शोध-कार्य में रूपरेखा प्रारंभिक तथा अस्थाई होती है, स्थायी तथा स्थिर नहीं ।

वस्तुतः रूपरेखा शोध-संरचना के विभिन्न संरेचक बिन्दु हैं।इसका निर्माण मानसिक संकल्पना पर आधारित रहता है । सामग्री-संग्रह, वर्गीकरण-विश्लेषण, विभाजन-संयोजन तथा विवेचन की प्रक्रिया से यह मानसिक संकल्पना संशोधित होकर प्रामाणिक तथा वैज्ञानिक बनती है। रूपरेखा निर्माण के समय ग्रंथ-सूची, तथ्य-प्राप्ति-स्त्रोत, तथ्य प्राप्ति स्थान तथा शोध-कार्य में सहायता पहुँचाने वाले विद्वानों की सारणी प्रस्तुत करना आदर्श पद्धति है । 


रूपरेखा निर्माण में शोधार्थी को निर्देशक का सहयोग

रूपरेखा निर्माण synopsis taiyar karna का कार्य शोधार्थी तथा निर्देशक दोनों का है । दोनों के सहयोग से ही रूपरेखा बनती है । शोधार्थी को चाहिए कि वह निर्देशक पर ज़्यादा निर्भर न रहकर एक जैसी रूपरेखा देखकर स्वयं रूपरेखा तैयार करे । शोध-निर्देशक को उसमें अपेक्षित तथा आवश्यक संशोधन कर देना चाहिए ।

आदर्श-रूपरेखा निर्माण के लिए शोधार्थी तथा निर्देशक को उस विषय से मिलती-जुलती एकाधिक रूपरेखाओं को अवश्य देख लेना चाहिए । इससे रूपरेखा निर्माण करने में सुगमता होगी ।

रूपरेखा निर्माण करते समय उसमें नवीन तथा मौलिक अध्ययन बिन्दुओं का समावेश होना चाहिए । उदाहरण के लिए कामायनी में आधुनिकता : परंपरा और प्रयोग विषय की रूपरेखा बनानी है तो इसके लिए एकाधिक विश्वविद्यालयों की अन्य विषयों की समानधर्मी
रूपरेखाओं को देख लेना चाहिए
;  जैसे- रामचरित मानस में आधुनिकता : परंपरा और प्रयोग

एक सुवस्थित रूपरेखा के प्रमुख चरण

 (क)  प्रस्तावित अनुसंधान का शीर्षक ।

(ख) उपाधि तथा संस्था का नाम जहाँ प्रस्तुत करना है ।

 (ग)  (1) निर्देशक का नाम

         (2) शोधार्थी का नाम

(घ)  विषय की समस्या के अंतर्गत समस्या की उत्पत्ति का संक्षिप्त विवरण देते हुए उसे प्रस्तुत करना ।

(ङ)  इस विषय में अब तक हो चुके कार्य का संक्षिप्त विवरण और  सीमाएं तथा प्रस्तुत अध्ययन-शोध की आवश्यकता, महत्व और   उपयोगिता पर प्रकाश डालना ।

(च)  इस विषय में और क्या किया जा सकता है, जिससे नवीन तथ्य अनावृत्त हों।

(छ)  इस शोध के लिए कौन-कौन से संदर्भ-ग्रन्थों की आवश्यकता होगी। इस विषय की संभावित सूची तैयार की जाएगी ।

 रूपरेखा का आकार

जिस प्रकार प्रत्येक शोध का विषय एक जैसा नहीं होता उसी प्रकार प्रत्येक शोध-विषय की रूपरेखा भी एक जैसी नहीं हो सकती। साहित्य की रूपरेखा तथा भाषा-शोध की रूपरेखा एक-दूसरे से भिन्न होगी । शिष्ट-साहित्य तथा लोक-साहित्य संबंधी विषयों की रूपरेखाएँ भी एक-दूसरे से भिन्न होंगी ।

महाकाव्य तथा खंडकाव्य की रूपरेखाएँ पर्याप्त मात्रा में समान होंगी । कामायनी में नारी चित्रण तथा साकेत में नारी चित्रण शोध-विषयों की रूपरेखाएँ कुछ समान होंगी ।

रूपरेखा निर्माण शोधार्थी की योग्यता तथा शोध-निर्देशक की विशेषज्ञता का मापक होता है । इससे शोध-परीक्षक को मूल्यांकन का आधार प्राप्त होता है । विषय की रूपरेखा, शोध-प्रक्रिया, शोध-प्रविधि तथा शोध-व्यवस्था को भी निर्धारित करती है।

साधारणतः रूपरेखा दो प्रकार की होती है –

(क) संक्षिप्त रूपरेखा या सीमित रूपरेखा

(ख) विस्तृत रूपरेखा 

संक्षिप्त रूपरेखा या सीमित रूपरेखा

 जहाँ शोध-अध्ययन खंडों में तथा अध्यायों में विभक्त रहता है, उसे संक्षिप्त रूपरेखा कहा जाता है; जैसे-भ्रमरगीत का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन शोध-विषय को लिया जा सकता है । इसकी रूपरेखा निम्न होगी : 

जैसे –

  •      प्रथम अध्याय – ध्वनि वैज्ञानिक अध्ययन 
  •      द्वितीय अध्याय – शब्द वैज्ञानिक अध्ययन
  •       तृतीय अध्याय – पद वैज्ञानिक अध्ययन
  •       चतुर्थ अध्याय – वाक्य वैज्ञानिक अध्ययन
  •       पंचम अध्याय – अर्थ वैज्ञानिक अध्ययन
  •       षष्ठम अध्याय – शोध-निष्कर्ष

         यह रूपरेखा संक्षिप्त रूपरेखा कहलाएगी ।

विस्तृत रूपरेखा

जहाँ शोध-अध्ययन अध्यायों, शीर्षकों, उप-शीर्षकों में विभाजित किया जाता है, उसे विस्तृत रूपरेखा कहा जाता है जो इस प्रकार होती है :

 

  •     शोध विषय – छायावादी कवियों के काव्य में व्यक्त प्रकृति
  •     सर्वप्रथम भूमिका
  •     पूर्व शोध-कार्य का परिचय
  •     प्रस्तुत शोध-कार्य की आवश्यकता
  •     प्रथम अध्याय – छायावादी शब्द की व्युत्पत्ति, स्वरूप
  •     द्वितीय अध्याय – छायावादी कवियों का परिचय
  •     तृतीय अध्याय – छायावादी कवियों के काव्य का
    परिचय
  •     चतुर्थ अध्याय – महादेवी वर्मा के काव्य में
    व्यक्त प्रकृति
  •     पंचम अध्याय – पंत के काव्य में व्यक्त
    प्रकृति 
  •     षष्ठम अध्याय – निराला के काव्य में व्यक्त
    प्रकृति 
  •     सप्तम अध्याय – प्रसाद के काव्य में व्यक्त
    प्रकृति
  •     अष्टम अध्याय – प्रकृति के विभिन्न रूप जैसे आलंबन रूप में व्यक्त     प्रकृति, उद्दीपन रूप में व्यक्त प्रकृति, मानवीकरण रूप में व्यक्त प्रकृति, अलंकरण रूप में व्यक्त प्रकृति ।
  •     नवम अध्याय – काव्य की भाषा
  •     दशम अध्याय – शोध निष्कर्ष


शोध कार्य में विस्तृत रूपरेखा synopsis अधिक उपयोगी रहती है । रूपरेखा देखने मात्र से ही शोध-ग्रंथ का आकार तथा महत्व ज्ञात हो
जाता है । रूपरेखा न अतिसंक्षिप्त हो और न अतिविस्तृत ।

रूपरेखा के विस्तार को विषय-क्षेत्र में विस्तार तक सीमित रखना होगा । कोई भी महत्वपूर्ण अध्ययन बिन्दु छूट न जाए इस बात को ध्यान देना आवश्यक है । एक आदर्श रूपरेखा वह है जिससे शोध-कार्य में सरलता प्रतीत हो, यथाशीघ्र शोध-कार्य सम्पन्न हो ।

निष्कर्ष

शोध-कार्य में रूपरेखा प्रस्तुति अत्यंत आवश्यक आयाम है । जिस प्रकार शरीर में आत्मा का महत्व है, वैसे ही शोध-कार्य में रूपरेखा  synopsis प्रस्तुति का ।

किसी भी शोध-कार्य की रूपरेखा अंतिम नहीं होती । शोध-कार्य करते समय इसकी सीमाओं में परिवर्तन होता चलता है । कभी-कभी तो सामग्री-संकलन, वर्गीकरण तथा विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्ष सम्पूर्ण रूपरेखा को ही बदल देते हैं।

 अतः आवश्यक है कि शोध-विषय की रूपरेखा synopsis न अति संक्षिप्त हो और न अति विस्तृत । इतना आवश्यक है कि शोधार्थी अपने प्रबंध के माध्यम से लिए गए विषय को स्पष्ट कर सके ।

शोधार्थी का कर्तव्य है कि रूप-रेखा में संशोधन की सूचना समय-समय पर संबंधित विश्वविद्यालय को देता रहे । सम्पूर्ण शोध- प्रबंध पूर्ण हो जाने के बाद लेखन के समय जिस रूपरेखा synopsis को आधार बनाया जाता है वही अंतिम रूपरेखा होती है । 

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