सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियां छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘राम की शक्ति पूजा’ से ली गई हैं। मूल रूप से यह कविता उनके काव्य संग्रह ‘अनामिका’ में संकलित है।
प्रसंग – आज के युद्ध का यद्यपि कोई निर्णय नहीं हो सका था, किन्तु राक्षसों का पलड़ा भारी रहा था। रावण ने प्रबल पराक्रम का परिचय दिया था। सूर्यास्त होने पर आज का युद्ध स्थगित कर दिया गया और दोनों सेनाएं अपने-अपने शिविर की ओर लौट पड़ीं। राम चिन्तित एवं निराश थे, रावण पर कैसे विजय प्राप्त होगी इस विषय में वे सोच रहे थे।
कल होने वाले युद्ध के लिए मंत्रणा करने हेतु सभी प्रमुख वानर वीर पर्वत की चोटी पर स्थित राम के शिविर में एकत्र हुए और मंत्रणा करने के लिए बैठ गए। इन पंक्तियों में कवि ने इसी वृत्तान्त का वर्णन किया है।
व्याख्या – सभी लोग पर्वत की चोटी पर स्थित शिविर में मंथर गति से चलते हुए एकत्र हुए। इन लोगों में थे सुग्रीव, विभीषण, जाम्बवान, अंगद, हनुमान, टुकड़ियों के सेनापति नल, नील, गवाक्ष आदि प्रमुख योद्धा। ये सब कल होने वाले युद्ध की योजना (रणनीति) बनाने के लिए शिविर में एकत्र हुए थे। वानर सेना को उनके शिविर स्थल में भेजकर ये लोग मंत्रणा के लिए बैठे।
श्रीराम पत्थर की एक श्वेत शिला पर बैठ गए तथा सेवा कार्य में पटु हनुमान उनके हाथ-पैर धोने के निमित्त जल ले आए। अन्य वानर वीर तालाब के किनारे संध्या वंदन करने के लिए चले गए और शीघ्र ही लौट आए। वे सब लोग राम को घेरकर उनकी आज्ञा का पालन करने हेतु तत्पर होकर बैठ गए।
राम के ठीक सामने विभीषण, भालुओं के राजा धैर्यवान् जामवंत, सुग्रीव थे। राम के पीछे लक्ष्मण खड़े थे, जबकि उनके चरण कमलों के पास महान बलशाली हनुमान बैठे हुए थे। अन्य लोग जो टुकड़ियों के सेनापति थे अपने-अपने पद की मर्यादा के अनुसार यथास्थल बैठे हुए राम के उस श्यामल मुख को एकटक दृष्टि से देख रहे थे जो अपनी सुन्दरता से कमल को भी पराजित कर रहा था।
विशेष –
(1) राम के शिविर में एकत्र रणनीति निर्धारकों का यह समूह युद्ध शिविर का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है।
(2) ‘पटु’ विशेषण हनुमान की इस विशेषता की ओर इंगित करता है कि वे सेवा कार्य में दक्ष हैं।
(3) ‘भल्ल धीर’ कहकर कवि ने जामवंत को धैर्यवान एवं विवेकवान निरूपित किया है। मंत्री का यही गुण होना चाहिए।
(4) पाद-पद्म में उपमा अलंकार।
(5) जित सरोज मुख स्याम देश में प्रतीप अलंकार।
(6) राम की शक्ति पूजा की एक विशेषता है भावानुकूल भाषा का प्रयोग। इस अवतरण में सरल, प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली का प्रयोग है।

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