ऐसे क्षण अन्धकार घन में जैसे विद्युत
जागी पृथ्वी-तनया-कुमारिका-छवि अच्युत
देखते हुए निष्पलक, याद आया उपवन
विदेह का, प्रथम स्नेह का लतान्तराल मिलन
नयनों का-नयनों से गोपन-प्रिय सम्भाषण
पलकों का नव पलकों पर प्रथमोत्थान-पतन,
कांपते हुए किसलय, झरते पराग-समुदाय-
गाते खग नव-जीवन-परिचय-तरु मलय-वलय-
ज्योतिःप्रपात स्वर्गीय-ज्ञात छवि प्रथम स्वीय-
जानकी-नयन-कमनीय प्रथम कम्पन तुरीय ।
सन्दर्भ
प्रस्तुत पंक्तियां छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘राम की शक्ति पूजा’ से ली गई हैं। मूल रूप से यह कविता उनके काव्य संग्रह ‘अनामिका’ में संकलित है।
प्रसंग
शक्ति रावण की सहायता कर रही थी, अतः राम रावण को परास्त नहीं कर पा रहे थे। परिणामतः वे अत्यन्त निराश एवं दुखी थे। रह-रहकर उनके मन में रावण की विजय की आशंका जाग उठती थी।
निराशा के इन क्षणों में राम के स्मृति पटल पर कुमारी सीता की वह छवि कौंध गई जो उन्होंने पहले-पहल जनकवाटिका में देखी थी। सीता की स्मृति मात्र ने उनकी निराशा को दूर कर दिया, हृदय में उत्साह की तरंगें लहराने लगीं। इन पंक्तियों में कवि ने इसी वृत्तान्त का वर्णन किया है।
व्याख्या
निराशा के इन क्षणों में राम के स्मृति पटल पर पृथ्वी की पुत्री कुमारी सीता की वह छवि इस प्रकार कौंध गई जैसे बादलों के घने अन्धकार में बिजली कौंधती है और उस अन्धकार में प्रकाश की एक रेखा सर्वत्र चमक जाती है। सीता की स्मृति मात्र से राम के निराश हृदय में आशा का संचार हो गया। राम अतीत स्मृतियों में खो गए।
उनके स्मृति पटल पर जनक वाटिका का वह दृश्य कौंध गया जहां लताओं के अन्तराल में सीता के साथ उनका प्रथम स्नेह मिलन हुआ था और उन्होंने पहली बार सीता को देखा था।
उन्हें याद हो आया कि किस प्रकार उन दोनों के नेत्रों ने परस्पर मिलकर प्रेम सम्बन्धी वह मधुर वार्तालाप मुख से बिना एक शब्द बोले ही कर लिया था।
सीता जी की पलकें किस प्रकार पहले राम के सौन्दर्य को देखने के लिए उठीं और फिर लज्जा से झुक गईं।
ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों उन दोनों का यह प्रणय प्रकृति में भी संक्रमित हो गया है। सीता के अधर कोंपलों की भांति थरथरा रहे थे, फूलों से पराग-सा झर रहा था अर्थात् सीता के हृदय में उत्पन्न रति भाव से अंगों से स्वेद बिन्दु झर रहे थे।
पक्षियों का कलरव ऐसा लग रहा था मानो ये नवजीवन का मधुर सन्देश दे रहे हैं। चन्दन के वृक्ष झूमते हुए से लग रहे थे। प्रकाश का एक अलौकिक झरना वातावरण को आप्लावित कर रहा था।
आज सीता जी के नेत्रों में अपने प्रति आकर्षण देखकर राम को पहली बार अपनी सम्मोहक छवि का बोध हुआ। सीता जी एकटक दृष्टि से राम को देख रही थीं ऐसा लग रहा था मानो उनके सुन्दर नेत्र तुरीयावस्था में पहुंचे हुए योगी हों, जिन्हें केवल साध्य का ज्ञान रहता है, वस्तु और अन्य सब बातें उनके ध्यान में नहीं रहतीं।
सीता की इस छवि की स्मृति मात्र से राम का हृदय उत्साह से भर उठा और उनके मन में फिर से वही उत्साह जाग्रत हो गया, जो शिव धनुष को तोड़ते समय उनके हृदय में भर गया था।
विशेष
(1) छायावादी कवियों ने निराशा के क्षणों में आशा का संचार करने की भूमिका नारी को दी है। यहां सीता की स्मृति मात्र से राम की निराशा दूर हो गई है।
(2) ध्यान रहे यह कुमारी सीता की स्मृति है, जो अत्यन्त सुखद है, वर्तमान सीता की स्मृति नहीं, क्योंकि वह तो रावण के यहां अशोक वाटिका में बन्दी हैं।
(3) अतीत की सुखद स्मृतियां निराशा को झटक पाने में सहायक होती हैं- यह तथ्य यहां प्रकट होता है।
(4) अच्युत का प्रयोग यहां राम के लिए हुआ है।
(5) नयनों का ….. सम्भाषण में विरोधाभास ।
(6) कांपते हुए किसलय- मानवीकरण।
(7) किसलय-सीता के कोमल अधरों का प्रतीक-प्रतीकात्मक शैली।
(8) तरु मलय वलय मानवीकरण, पदमैत्री अलंकार।
(9) जानकी नयन……. कम्पन तुरीय में उपमा अलंकार।
(10) छायावादी भाषा-शिल्प, प्रतीकात्मक शैली, लाक्षणिक भाषा।

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