आचार्य भरत मुनि का रस सिद्धान्त | Acharya Bharat Muni Ka Ras Siddhant

acharya bharat muni ka ras siddhant

रस सिद्धान्त ras siddhant यद्यपि भारतीय काव्यशास्त्र में प्राचीनतम सिद्धान्त है, तथापि इसे व्यापक प्रतिष्ठा बाद में प्राप्त हुई। यही कारण है कि अलंकार सिद्धान्त को रस सिद्धान्त से प्राचीन माना जाने लगा। रस सिद्धान्त के मूल प्रवर्तक आचार्य भरत मुनि (200 ई.पू.) माने जाते हैं। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘नाट्यशास्त्र’ में रस के विभिन्न अवयवों … Read more

रीति सम्प्रदाय | रीति सिद्धान्त | Riti Sampraday | Riti Siddhant | Acharya Vaman Ka Riti Sampraday | Bhartiya Kavyashastra

 रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन (8वीं शती) माने जाते हैं। यद्यपि रीति शब्द का काव्य-शास्त्र में प्रयोग आचार्य वामन से पहले भी प्राप्त होता है पर उसका व्यवस्थित स्वरूप और विस्तृत व्याख्या सर्वप्रथम आचार्य वामन ने ही प्रस्तुत की। ‘रीति’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘रीङ्’ धातु में ‘ऋन्’ प्रत्यय के योग से हुई है, जिसका … Read more

ध्वनि सम्प्रदाय | ध्वनि सिद्धांत Dhwani Sampraday| Dhwani Siddhant | Acharya Anandvardhan | Bhartiya Kavyashastra

भारतीय काव्यशास्त्र में ध्वनि सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण स्थान है। ध्वनि-सिद्धान्त को व्यवस्थित करने का श्रेय आचार्य आनन्दवर्धन को है जिन्होंने अपने ग्रन्थ ‘ध्वन्यालोक’ में ध्वनि सिद्धान्त की स्थापना की। ध्वनि सिद्धान्त से पहले काव्यशास्त्र में तीन महत्वपूर्ण सिद्धान्त अलंकार, रस और रीति का प्रवर्तन हो चुका था। अतः ध्वनि सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रबल एवं पुष्ट … Read more

औचित्य सिद्धान्त | औचित्य सम्प्रदाय | Auchitya Siddhant | Auchitya Sampraday | Bhartiya Kavyashastra

ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भ तक भारतीय काव्य-शास्त्र के क्षेत्र में पाँच प्रमुख सम्प्रदाय रस, अलंकार, रीति, ध्वनि और वक्रोक्ति प्रतिष्ठित हो चुके थे, किन्तु फिर भी काव्य के आधारभूत तत्व के सम्बन्ध में कोई एक सर्वमान्य निर्णय नहीं हो सका। इतना ही नहीं, अनेक सम्प्रदायों की स्थापना के कारण ‘काव्य की आत्मा’ सम्बन्धी। … Read more

वक्रोक्ति सिद्धान्त | vakrokti siddhant | acharya kuntak ka vakrokti siddhant

 वक्रोक्ति सम्प्रदाय के प्रवर्तन का श्रेय आचार्य कुन्तक को है। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘वक्रोक्ति जीवित‘ में वक्रोक्ति को काव्य का अनिवार्य तत्व स्वीकार करते हुए इसे काव्य की आत्मा कहा। काव्यशास्त्र में वक्रोक्ति शब्द का प्रयोग कुन्तक से पहले भी उपलब्ध होता है, पर यह उस अर्थ में नहीं मिलता, जिस अर्थ में कुन्तक ने … Read more

काव्य-प्रयोजन : भारतीय काव्यशास्त्र | Kavya Prayojan : Bhartiya Kavyashastra

kavya prayojan

संसार की प्रत्येक रचना उद्देश्यपूर्ण है। यहाँ कुछ भी प्रयोजन रहित नहीं होता। काव्य रचना का जीवन और जगत से घनिष्ठ संबंध है। अतः उसके भी कुछ प्रयोजन है। काव्य-रचना में कवि के उद्देश्य ही प्रयोजन के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। भारतीय और पाश्चात्य विद्वानों द्वारा काव्य प्रयोजनों पर गंभीरता से विचार किया गया … Read more

काव्य के लक्षण – भारतीय काव्यशास्त्र | Kavya Ke Lakshan – Bhartiya Kavyashastra

संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के स्वरूप पर पर्याप्त विचार-विमर्श हुआ है, जिससे विभिन्न काव्य सम्प्रदायों का विकास हुआ और काव्य के प्रमुख तत्वों की चर्चा करते हुए kavya ke lakshan निर्धारित करने का प्रयास किया गया। विद्वानों में मतभेद होने के कारण काव्य की कोई सर्वमान्य परिभाषा प्रस्तुत करने में वे सफल नहीं हो सके। आचार्यों … Read more

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