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गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म श्यौपुर, ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में 13 नवंबर, 1917 को हुआ । सन 1938 में इन्होंने होल्कर कॉलेज इंदौर से बी. ए. किया । सन 1954 में नागपुर विश्वविद्यालय एम.ए. से किया । उसके चार वर्ष बाद सन् 1958 में वे राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज में अध्यापक हो गए और अंत तक वहीं रहे । 11 सितंबर, 1964 को इनकी मृत्यु हुई । मुक्तिबोध हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, निबंधकार, कहानीकार तथा उपन्यासकार थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है ।
प्रमुख कृतियाँ
कामायनी : एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्म-संघर्ष तथा अन्य निबंध, नए साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ, चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल, एक साहित्यिक की डायरी, काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी, मेरे युवजन मेरे परिजन, भारत : इतिहास और संस्कृति, जब प्रश्नचिह्न बौखला उठे आदि है ।
कृपया इसे भी ज़रूर देखें : गजानन माधव मुक्तिबोध का जीवन दर्शन और उनकी काव्य दृष्टि | Gajanan Madhav Muktibodh ka Jivan Darshan aur Unki Kavya Drishti
मुक्तिबोध की जिज्ञासा
अत्यंत तीव्र और अध्ययन व्यापक था । भारतीय साहित्य के अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी, फ्रेंच और रूसी उपन्यास भी खूब पढ़े । जीवन के अंत में उनकी रुचि जासूसी और वैज्ञानिक उपन्यासों की ओर बढ़
गई थी । विभिन्न देशों का इतिहास और विज्ञान विषयक साहित्य भी इन्होंने खूब पढ़ा। सन 1962 में उनकी पुस्तक ‘भारत – इतिहास और
संस्कृति’ पर मध्यप्रदेश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया, जिससे योद्धा का व्यक्तित्व रखने वाले मुक्तिबोध को बड़ा आघात पहुँचा ।
व्यक्तित्व
मुक्तिबोध को क्रांतिकारी व्यक्तित्व वाला योद्धा कहा गया है । वे गहरे अर्थ में ‘रिबैल’ थे । इन्होंने जीवन के हर अपूर्ण पहलू के प्रति जोरदार
निषेध प्रकट किया। उनका दुर्धुर्ष व्यक्तित्व किसी प्रकार का अन्याय या शोषण नहीं सहन कर सकता था । उन्होंने अपनी निजता और विशिष्टता के लिए बंधी-बंधाई
सरहदों को तोड़ा । वे जीवन पर्यंत
एक ही समस्या को लेकर चिंतित रहे ,
निषेध प्रकट किया। उनका दुर्धुर्ष व्यक्तित्व किसी प्रकार का अन्याय या शोषण नहीं सहन कर सकता था । उन्होंने अपनी निजता और विशिष्टता के लिए बंधी-बंधाई
सरहदों को तोड़ा । वे जीवन पर्यंत
एक ही समस्या को लेकर चिंतित रहे ,
मेरे सभ्य नगरों और ग्रामों में
सभी मानव
सुखी सुंदर व शोषण मुक्त कब होंगे?
कविता का
सबसे बेचैन, सबसे तड़पता हुआ और सबसे ईमानदार स्वर मात्र अर्थग्रहण की मांग
नहीं करतीं, आचरण की भी मांग करती हैं। गजाजन माधव मुक्तिबोध की कविताएं सरस नहीं हैं, सुखद नहीं हैं। वे हमें
गुदगुदाती नहीं हैं बल्कि झकझोर देती हैं
।
सबसे बेचैन, सबसे तड़पता हुआ और सबसे ईमानदार स्वर मात्र अर्थग्रहण की मांग
नहीं करतीं, आचरण की भी मांग करती हैं। गजाजन माधव मुक्तिबोध की कविताएं सरस नहीं हैं, सुखद नहीं हैं। वे हमें
गुदगुदाती नहीं हैं बल्कि झकझोर देती हैं
।
‘तारसप्तक’ में मुक्तिबोध ने स्वयं कहा है, “मेरी कविताएं अपना पथ खोजते बेचैन
मन की अभिव्यक्ति हैं । उनका सत्य और मूल्य उसी जीव-स्थिति (life situation) में छिपा है ।”
मन की अभिव्यक्ति हैं । उनका सत्य और मूल्य उसी जीव-स्थिति (life situation) में छिपा है ।”
यायावरी प्रवृत्ति
मुक्तिबोध के
व्यक्तित्व के प्रमुख गुण रहे हैं : यायावरी
वृत्ति (घुमक्कड़ स्वभाव), विद्रोह (सब प्रकार के अन्याय, अत्याचार, शोषण के विरुद्ध), अपने स्वास्थ्य, सुख-सुविधाओं के प्रति उदासीनता, समझौता न करना (कुछ
हद तक अड़ियल, जिद्दी स्वभाव), प्रतिबद्धता और ईमानदारी, आत्मकेंद्रित वृत्ति, मानसिक द्वंद्व तथा अपने दोषों और दुर्बलताओं के
लिए आत्मलोचन करना, आत्म-भर्त्सना करना ।
व्यक्तित्व के प्रमुख गुण रहे हैं : यायावरी
वृत्ति (घुमक्कड़ स्वभाव), विद्रोह (सब प्रकार के अन्याय, अत्याचार, शोषण के विरुद्ध), अपने स्वास्थ्य, सुख-सुविधाओं के प्रति उदासीनता, समझौता न करना (कुछ
हद तक अड़ियल, जिद्दी स्वभाव), प्रतिबद्धता और ईमानदारी, आत्मकेंद्रित वृत्ति, मानसिक द्वंद्व तथा अपने दोषों और दुर्बलताओं के
लिए आत्मलोचन करना, आत्म-भर्त्सना करना ।
यायावरी वृत्ति के कारण वह मध्य प्रदेश के जंगलों , पठारों बावड़ियों, झाड़ियों से परिचित थे। जहाँ-जहाँ रहे वहाँ की गलियों, चौराहों, आसपास के खंडहरों को उन्होंने बड़े गौर से देखा
तथा उनका वर्णन-चित्रण अपनी कविताओं में किया और इनकी सहायता से कविता के वातावरण को गंभीर, आतंकपूर्ण तथा रहस्य पूर्ण बनाया है,
दिखता है सामने
अंधकार स्तूप सा
भयंकर बरगद
सभी उपेक्षितों, समस्त वंचितों
गरीबों का वही घर, वही छत
उसके ही
तल खोह अंधेरे में सो रहे
गृह–हीन
कई प्राणी
वह जन्म से स्वभाव से ‘रिबैल’ थे । पूंजीवाद, साम्राज्यवाद तथा अधिनायकवाद का
उन्होंने सदा तीव्र विरोध किया क्योंकि उनके तथा उनकी नीतियों के
कारण सामान्य जन्म दु:खी है कष्ट पीड़ित है, यातनाएँ भोग रहा है । वह चाहते थे कि पूंजीवाद शीघ्रातिशीघ्र समाप्त हो जाए।
उन्होंने सदा तीव्र विरोध किया क्योंकि उनके तथा उनकी नीतियों के
कारण सामान्य जन्म दु:खी है कष्ट पीड़ित है, यातनाएँ भोग रहा है । वह चाहते थे कि पूंजीवाद शीघ्रातिशीघ्र समाप्त हो जाए।
तेरे हाथ में भी रोग-कृमि हैं उग्र
तेरा नाश तुम पर क्रुद्ध, मुझ पर व्यग्र
मेरी ज्वाल, जन की ज्वाल होकर एक
अपनी उष्णता से धो चलें अविवेक
तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ
ये पंक्तियां मार्क्स के ही शब्दों का
रूपांतर प्रतीत होती हैं और कवि के आस्थापूर्ण दिल की गहराइयों से निकली हैं ।
मार्क्सवादी दर्शन में गहरी आस्था
मुक्तिबोध के जीवन-दर्शन
और उनमें कला तथा कविता संबंधी सोच के निर्णायक तत्व रहे
हैं – उनका अपना अभावग्रस्त जीवन और उनकी पीड़ा, जनसाधारण के प्रति संवेदनशीलता, सहानुभूति, उनको सुखी देखने की
चिंता, शोषण, अन्याय, भ्रष्टाचार विकृत स्वार्थवाद, अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह की भावना तथा मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव, जो मानती है कि समाज की सारी बुराइयों का कारण है पूंजीवादी
अर्थव्यवस्था तथा इस क्रूर व्यवस्था का अंत
करने के लिए क्रांति की आवश्यकता, सर्वहारा वर्ग में नई चेतना तथा संगठन-शक्ति ।
और उनमें कला तथा कविता संबंधी सोच के निर्णायक तत्व रहे
हैं – उनका अपना अभावग्रस्त जीवन और उनकी पीड़ा, जनसाधारण के प्रति संवेदनशीलता, सहानुभूति, उनको सुखी देखने की
चिंता, शोषण, अन्याय, भ्रष्टाचार विकृत स्वार्थवाद, अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह की भावना तथा मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव, जो मानती है कि समाज की सारी बुराइयों का कारण है पूंजीवादी
अर्थव्यवस्था तथा इस क्रूर व्यवस्था का अंत
करने के लिए क्रांति की आवश्यकता, सर्वहारा वर्ग में नई चेतना तथा संगठन-शक्ति ।
उनके निजी जीवन के कटु, तिक्त अनुभवों ने भी उनके जीवन दर्शन को प्रभावित किया था । वह समझौतापरस्ती के खिलाफ थे और भारतीय जनता के प्रति अनुराग होने के साथ-साथ उनकी शक्ति में
उनका अडिग विश्वास था।
उनका अडिग विश्वास था।
मार्क्सवादी चिंतन तथा मार्क्स के सिद्धांतों में अटूट आस्था के बावजूद वह हिंदी के अन्य प्रगतिशील लेखकों
से इस बात में भिन्न थे कि उन्होंने अपने
आत्मानुभवों की कसौटी पर कसने के बाद ही मार्क्स के सिद्धांतों को अपनी अंतरात्मा का अंग बनाया था ।
से इस बात में भिन्न थे कि उन्होंने अपने
आत्मानुभवों की कसौटी पर कसने के बाद ही मार्क्स के सिद्धांतों को अपनी अंतरात्मा का अंग बनाया था ।
सौंदर्यानुभूति और जीवनानुभूति
जिन दिनों मुक्तिबोध ने साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया, उन दिनों प्रगतिवादी विचारधारा
के विरुद्ध नई कविता और नई समीक्षा
ने मुहिम
छेड़ रखी थी। ये
लोग कला की स्वायत्तता के नाम पर
कविता को जीवन और समाज से काटकर कविता को कवि-केंद्रित करने के
पक्षधर थे।
के विरुद्ध नई कविता और नई समीक्षा
ने मुहिम
छेड़ रखी थी। ये
लोग कला की स्वायत्तता के नाम पर
कविता को जीवन और समाज से काटकर कविता को कवि-केंद्रित करने के
पक्षधर थे।
मुक्तिबोध को इनकी मान्यता के
पीछे पूंजीवादी व्यवस्था का एक गहरा षड्यंत्र
दिखाई दिया । उन्हें लगा कि ये कवि-समीक्षक
कलाकार-कवि को अपने व्यक्तित्व में ही नहीं वरन समाज से भी पूरी तरह
काटने की गहरी साजिश कर रहे हैं, क्योंकि वे कह रहे थे कि एक विशेष क्षण में कवि को जो अनुभूति हुई है, उसमें बंध कर ही उसे
कविता लिखनी चाहिए-वह केवल कवि है, रचनाकार है, समाज से उसका कोई संबंध नहीं,
समाज के प्रति कोई दायित्व नहीं । इनकी
मान्यता थी कि जीवनानुभूति, सौंदर्यानुभूति या कलात्मक अनुभूति दो अलग-अलग चीजें
पीछे पूंजीवादी व्यवस्था का एक गहरा षड्यंत्र
दिखाई दिया । उन्हें लगा कि ये कवि-समीक्षक
कलाकार-कवि को अपने व्यक्तित्व में ही नहीं वरन समाज से भी पूरी तरह
काटने की गहरी साजिश कर रहे हैं, क्योंकि वे कह रहे थे कि एक विशेष क्षण में कवि को जो अनुभूति हुई है, उसमें बंध कर ही उसे
कविता लिखनी चाहिए-वह केवल कवि है, रचनाकार है, समाज से उसका कोई संबंध नहीं,
समाज के प्रति कोई दायित्व नहीं । इनकी
मान्यता थी कि जीवनानुभूति, सौंदर्यानुभूति या कलात्मक अनुभूति दो अलग-अलग चीजें
हैं ।
मुक्तिबोध ने इस विचारधारा का विरोध किया। उन्होंने कविता का जीवन से अटूट संबंध बताया । उन्होंने कहा कि कला या कविता जीवन
की समस्याओं से अलग-अलग रहकर न अस्तित्व में आ सकती है और न ही जीवंत बन सकती हैं । कवि सामाजिक प्राणी है, समाज में रहता है, समाज की समस्याओं से प्रभावित
होता है, कवि-व्यक्तित्व सामाजिक होता
है । सौंदर्यानुभूति, जीवनानुभूति का ही परिवर्तित रूप
है । इन दोनों का सार रूप एक ही है ।
की समस्याओं से अलग-अलग रहकर न अस्तित्व में आ सकती है और न ही जीवंत बन सकती हैं । कवि सामाजिक प्राणी है, समाज में रहता है, समाज की समस्याओं से प्रभावित
होता है, कवि-व्यक्तित्व सामाजिक होता
है । सौंदर्यानुभूति, जीवनानुभूति का ही परिवर्तित रूप
है । इन दोनों का सार रूप एक ही है ।
फिर भी दोनों में
भेद है । सौंदर्यानुभूति आत्मबद्ध नहीं होती और वह सभी व्यक्तियों को आनंद प्रदान करती
है । जीवनानुभूति आत्मबद्ध होती है, इसमें व्यक्ति अपने वैयक्तिक राग-द्वेष
से बंधा रहता है । जीवनानुभूति जब
विशिष्ट ना होकर सामान्य बन जाती है, जब कवि अपनी
अनुभूति को सब की अनुभूति में बदल देता है, जब उसकी व्यक्तिगत पीड़ा सबकी पीड़ा बन जाती है, तभी वह कलानुभूति बनती है (साधारणीकरण) । कलाकार के अनुभव और संवेदन समाजीकृत होने के बाद ही कविता का विषय बन पाते हैं।
भेद है । सौंदर्यानुभूति आत्मबद्ध नहीं होती और वह सभी व्यक्तियों को आनंद प्रदान करती
है । जीवनानुभूति आत्मबद्ध होती है, इसमें व्यक्ति अपने वैयक्तिक राग-द्वेष
से बंधा रहता है । जीवनानुभूति जब
विशिष्ट ना होकर सामान्य बन जाती है, जब कवि अपनी
अनुभूति को सब की अनुभूति में बदल देता है, जब उसकी व्यक्तिगत पीड़ा सबकी पीड़ा बन जाती है, तभी वह कलानुभूति बनती है (साधारणीकरण) । कलाकार के अनुभव और संवेदन समाजीकृत होने के बाद ही कविता का विषय बन पाते हैं।
कवि की प्रतिबद्धता
मुक्तिबोध कलाकार या कवि के प्रतिबद्ध होने या पक्षधर होने का विरोध नहीं करते, पर यह प्रतिबद्धता शोषित-उत्पीड़ित विश्व जनता
के उद्धार के प्रति होनी चाहिए। उसे शोषकों का विरोध करना चाहिए तथा शोषितों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए ।
के उद्धार के प्रति होनी चाहिए। उसे शोषकों का विरोध करना चाहिए तथा शोषितों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए ।
उनके
अनुसार आत्ममुक्ति के लिए जनमुक्ति तथा आत्मविश्वास के लिए जीवन का विकास पहली
शर्त है। रचनाकार के लिए मानवतावादी होना
जरूरी है। वह लिखते हैं, “क्या लेखक के लिए यह
परम आवश्यक नहीं है कि वह विश्व जनता के अभ्युत्थान को देखे और आज की उत्पीड़न करने वाली
शक्तियों से सचेत हो और उसके प्रति विद्रोह करने वाली ताकतों से सहानुभूति रखे।”
अनुसार आत्ममुक्ति के लिए जनमुक्ति तथा आत्मविश्वास के लिए जीवन का विकास पहली
शर्त है। रचनाकार के लिए मानवतावादी होना
जरूरी है। वह लिखते हैं, “क्या लेखक के लिए यह
परम आवश्यक नहीं है कि वह विश्व जनता के अभ्युत्थान को देखे और आज की उत्पीड़न करने वाली
शक्तियों से सचेत हो और उसके प्रति विद्रोह करने वाली ताकतों से सहानुभूति रखे।”
कविता और राजनीति
यदि जीवन रथ है तो सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक गतिविधियां उस रथ के अश्व हैं और अश्वों को नियंत्रित करने वाली, उन्हें दिशा देने वाली वल्गा जिस सारथी के हाथ में है वह है राजनीति । आज के
संघर्षमय जीवन में राजनीतिक हलचल ही सब-कुछ
निर्धारित करती है ।
संघर्षमय जीवन में राजनीतिक हलचल ही सब-कुछ
निर्धारित करती है ।
मुक्तिबोध इस तथ्य से परिचित थे, अतः उन्होंने कला या कविता तथा राजनीति के संबंधों पर विचार किया है, “एक कला सिद्धान्त के पीछे एक जीवन-दृष्टि होती है, उस जीवन-दृष्टि के पीछे
एक जीवन-दर्शन होता है और उस जीवन-दर्शन के पीछे आजकल के जमाने में एक राजनीतिक
दृष्टि लगी रहती है।”
एक जीवन-दर्शन होता है और उस जीवन-दर्शन के पीछे आजकल के जमाने में एक राजनीतिक
दृष्टि लगी रहती है।”
वह जानते हैं कि विश्व दो परस्पर विरोधी शिविरों में विभक्त
है और वे संघर्षरत हैं । एक-दूसरे को चिढ़ाने के लिए
तत्पर और सक्रिय । एक शिविर है शोषकों का, दूसरा है शोषितों का, एक है पूंजीवाद का, दूसरा समाजवाद का । हिंदी
के प्रगतिवादी कवि समाजवाद के शिविर से जुड़े हैं, तो नई कविता के लेखक
पूंजीवादी शिविर से । कविता को राजनीति से नि:संग करना, अप्रभावित रखना कठिन है ।
है और वे संघर्षरत हैं । एक-दूसरे को चिढ़ाने के लिए
तत्पर और सक्रिय । एक शिविर है शोषकों का, दूसरा है शोषितों का, एक है पूंजीवाद का, दूसरा समाजवाद का । हिंदी
के प्रगतिवादी कवि समाजवाद के शिविर से जुड़े हैं, तो नई कविता के लेखक
पूंजीवादी शिविर से । कविता को राजनीति से नि:संग करना, अप्रभावित रखना कठिन है ।
नई कविता के पक्षधरों ने प्रगतिवादी कवियों
पर यह आरोप लगाया था कि वह समाजवादी विचारधारा के समर्थक हैं और कविता को राजनीति
के कीचड़ से मलिन कर रहे हैं जो अनुचित है। लेकिन मुक्तिबोध सर्वहारा का पक्ष लेकर
साहित्य सृजन करना और राजनीति को काव्य के लिए आवश्यक मानते हैं।
इसीलिए उन्होंने
अपने दृष्टिकोण का विवेक सम्मत प्रयोग कर राजनीतिक चेतना को अपनाने का आग्रह किया है और अपनी
कविताओं को अधिकाधिक राजनीतिक तेवर प्रदान किया है । उनकी अधिकांश महत्वपूर्ण
कविताओं में उनका राजनीतिक सामाजिक रुझान प्रतिबंधित होता है
अपने दृष्टिकोण का विवेक सम्मत प्रयोग कर राजनीतिक चेतना को अपनाने का आग्रह किया है और अपनी
कविताओं को अधिकाधिक राजनीतिक तेवर प्रदान किया है । उनकी अधिकांश महत्वपूर्ण
कविताओं में उनका राजनीतिक सामाजिक रुझान प्रतिबंधित होता है
नवीन जीवनानुभव और नवीन जीवन-दृष्टि
मुक्तिबोध का काव्य
नई कविता की अन्यतम उपलब्धि है । वह जीवन भर नई दृष्टि, नए युग के अनुभव और काव्य
की विलक्षण अनुभूतियां खोजते रहे। उनका काव्य उनके जीवन को प्रतिबिंबित करता है
और उसमें मध्य प्रदेश के पठारी जंगलों के कवि का शहर बोध है तो साथ ही ऐतिहासिक
खंडहरों के बियाबान में विचरण करने वाले कवि के संवेदनशील और रहस्यमयी मन का
प्रतिबिंब भी।
नई कविता की अन्यतम उपलब्धि है । वह जीवन भर नई दृष्टि, नए युग के अनुभव और काव्य
की विलक्षण अनुभूतियां खोजते रहे। उनका काव्य उनके जीवन को प्रतिबिंबित करता है
और उसमें मध्य प्रदेश के पठारी जंगलों के कवि का शहर बोध है तो साथ ही ऐतिहासिक
खंडहरों के बियाबान में विचरण करने वाले कवि के संवेदनशील और रहस्यमयी मन का
प्रतिबिंब भी।
निष्कर्ष
मुक्तिबोध का काव्य सत्, चित् और आनंद का काव्य न होकर सत्, चित और वेदना का काव्य है। उनकी वेदना बड़ी व्यापक और साथ ही गहरी है । व्यक्ति
और समाज के पारस्परिक संबंधों की वैज्ञानिक व्याख्या और उसकी काव्य में अभिव्यक्ति
ही उनकी कविताओं का अंतर्मन है। उन्होंने
अपनी कविताओं और लेखन में केवल अपने अनुभूत सत्य का चित्रण किया है, अतः वैयक्तिक अनुभव की प्रमाणिकता उनकी काव्य
संवेदना को अत्यंत प्रखर बना देती है ।
और समाज के पारस्परिक संबंधों की वैज्ञानिक व्याख्या और उसकी काव्य में अभिव्यक्ति
ही उनकी कविताओं का अंतर्मन है। उन्होंने
अपनी कविताओं और लेखन में केवल अपने अनुभूत सत्य का चित्रण किया है, अतः वैयक्तिक अनुभव की प्रमाणिकता उनकी काव्य
संवेदना को अत्यंत प्रखर बना देती है ।
मुक्तिबोध के काव्य को मानवता का इस्पाती
दहकता दस्तावेज कहा गया है। मानवता अमर है
और मानवता की धारा को आगे बढ़ाते रहना ही वह सृजनशीलता मानते हैं। जीर्ण-शीर्ण पुरातन सोच के स्थान पर नवीन
सामाजिक सरोकार से युक्त नवीन जीवंत चेतना का प्रादुर्भाव ही उनकी कविता का मुख्य
स्वर है जो उनकी सभी कविताओं में मुखरित हुआ है ।
दहकता दस्तावेज कहा गया है। मानवता अमर है
और मानवता की धारा को आगे बढ़ाते रहना ही वह सृजनशीलता मानते हैं। जीर्ण-शीर्ण पुरातन सोच के स्थान पर नवीन
सामाजिक सरोकार से युक्त नवीन जीवंत चेतना का प्रादुर्भाव ही उनकी कविता का मुख्य
स्वर है जो उनकी सभी कविताओं में मुखरित हुआ है ।

नमस्कार ! मेरा नाम भूपेन्द्र पाण्डेय है । मेरी यह वेबसाइट शिक्षा जगत के लिए समर्पित है । हिंदी भाषा, हिंदी साहित्य और अनुवाद विज्ञान से संबंधित उच्च स्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना मेरा मुख्य उद्देश्य है । मैं पिछले 20 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहा हूँ । मेरे लेक्चर्स हिंदी के छात्रों के द्वारा बहुत पसंद किए जाते हैं ।
मेरी शैक्षिक योग्यता इस प्रकार है : बीएससी, एमए (अंग्रेजी) , एमए (हिंदी) , एमफिल (हिंदी), बीएड, पीजीडिप्लोमा इन ट्रांसलेशन (गोल्ड मेडल), यूजीसी नेट (हिंदी), सेट (हिंदी)
मेरे यूट्यूब चैनल्स : Bhoopendra Pandey Hindi Channel, Hindi Channel UPSC