महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने देवनागरी लिपि के विषय में यह कहा है कि – “देवनागरी दुनिया की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है” । अब हम Devnagari Lipi Ki Vaigyanikta पर विस्तार से विचार करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या वास्तव में देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है ।
देवनागरी लिपि की विशेषताओं का उल्लेख करते समय भी प्रायः यह कहा जाता है कि यह वैज्ञानिक लिपि है। प्रश्न यह है कि किसी लिपि को वैज्ञानिकता प्रदान करने वाले कौन से तत्त्व होते हैं? किसी भी लिपि की वैज्ञानिकता के आधार तत्व बताते हुए भाषाविदों ने मान है कि वह लिपि वैज्ञानिक लिपि हो सकती है जिसमें –
• एक ध्वनि के लिए एक वर्ण हो।
• एक वर्ण एक ही ध्वनि को व्यक्त करें।
• मात्रा एवं वर्णचिह्नों में भिन्नता हो।
• लेखन और उच्चारण में एकरूपता हो।
• सरल एवं स्पष्ट हो ।
• उच्चारण एवं लेखन में व्यवस्थित हो।
• ध्वन्यात्मक दृष्टि से सन्तुलन स्थापित करती हो
उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर अब हम विचार करेंगे कि क्या वैज्ञानिकता के संदर्भ में ऊपर उल्लिखित सभी तत्व देवनागरी लिपि में पूर्णतः विद्यमान हैं अथवा नहीं ।
इसके लिए हमें सबसे पहले देवनागरी लिपि की विशेषताओं/गुणों पर विचार करना होगा । तो आइए हम देवनागरी लिपि को विशेषतओं का अध्ययन करें-
• देवनागरी लिपि अधिक-से-अधिक ध्वनि-चिह्नों से संपन्न है।
• देवनागरी लिपि में स्वर एवं व्यंजन का वर्गीकरण वैज्ञानिक पद्धति से उच्चारण स्थान एवं प्रयत्नों के आधार पर किया गया है।
• देवनागरी लिपि में प्रत्येक ध्वनि के लिए अलग-अलग स्वतंत्र वर्ण हैं।
• देवनागरी लिपि में वर्णमाला और वर्तनी में उस प्रकार का विभेद नहीं जैसा कि अन्य लिपियों में है। केवल शब्दों का शुद्ध उच्चारण जानने से ही उन्हें शुद्ध रूप से लिखा जा सकता है।
• देवनागरी लिपि की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि जो लिखा जाता है, वही पढ़ा जाता है और जो पढ़ा जाता है, वही लिखा जाता है।
• देवनागरी लिपि, भारत की प्राचीन लिपि है। भारत की कई अन्य भाषाओं (गुजराती. पंजाबी, उर्दू……..आदि) का साहित्य देवनागरी में ही मिलता है। अतः राष्ट्र की सम्वेदना इस लिपि से सहज ही जुड़ जाती है।
• देवनागरी लिपि में प्रत्येक स्वर वर्ण के लिए अलग से स्वतंत्र मात्रा चिह्न निश्चित किये गये हैं। इस कारण स्वरयुक्त व्यंजनों को उच्चारण के अनुरूप ही स्वतंत्र अक्षरों में लिपिबद्ध किया जाता है।
• यह सरल एवं सहज लिपि है।
• इस लिपि में यह व्यवस्था है कि जब किसी व्यंजन को स्वर रहित करके दिखाना हो तो उसके नीचे हलन्त का चिह्न लगा दिया जाता है।
• यह किसी एक भाषा का लिपि नहीं है। यह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, महाराष्ट्री, नेपाली आदि भाषाओं की लिपि है।
• देवनागरी लिपि में प्रत्येक वर्ण का एक ही और स्पष्ट उच्चारण होता है।
• देवनागरी लिपि में रोमन वर्णों के समान छोटे-बड़े वर्णों के अलग-अलग रूप की समस्या नहीं है। इस कारण देवनागरी लिपि के लेखन, मुद्रण एवं टंकण की समस्या नहीं होती है।
• देवनागरी लिपि में स्थानीय अनुनासिक ध्वनियों के लिए अलग-अलग स्वतंत्र वर्ण ( ण्, न्, म्) है, जो संसार की किसी भी लिपि में नहीं पाये जाते।
निष्कर्ष
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि किसी लिपि को वैज्ञानिक लिपि मानने के लिए जिन तत्वों की आवश्यकता होती है वे सभी तत्व देवनागरी लिपि में विद्यमान हैं । अतः देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है ।

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