भाग – (2)
विद्धांग-बद्ध-कोदण्ड-मुष्टि खर रुधिर स्राव।
रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दल-बल,
मूर्च्छित सुग्रीवांगद-भीषण गवाक्ष गय-नल।
वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल-रोध,
गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध ।
उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुः प्रहर,
जानकी भीरु उर आशा भर रावण-सम्बर।।
प्रसंग – राम-रावण युद्ध चल रहा है। आज के युद्ध में यद्यपि कोई निर्णय नहीं हो सका, किन्तु रावण ने आज प्रबल पराक्रम का परिचय देकर सभी वानर वीरों को व्याकुल कर दिया। केवल हनुमान ही एक ऐसे वीर थे जो रावण का प्रतिरोध करते हुए राम के हृदय में क्षीण आशा का संचार कर रहे थे। इन पंक्तियों में कवि ने इसी वृत्तान्त का वर्णन किया है।
व्याख्या – राम ने रावण पर जो बाण चलाए, वे उस पर कोई प्रभाव नहीं डाल पा रहे थे। उनमें से अधिकांश लक्ष्यभ्रष्ट हो रहे थे। अपने बाणों को लक्ष्यभ्रष्ट होता देखकर राम आश्चर्य चकित थे और सोच रहे थे कि क्या ये वही बाण हैं जो दिव्य शक्ति से सम्पन्न हैं तथा सम्पूर्ण विश्व को जीत सकने में समर्थ हैं।
दूसरी ओर रावण के द्वारा छोड़े गए बाणों से राम का अंग-अंग बिंधा हुआ था। क्रोध के कारण राम की मुट्ठी धनुष पर कसी हुई थी तथा उनके अंग प्रत्यंग से रक्त की तीव्र धारा बह रही थी। आज रावण के प्रहारों को रोक पाना अत्यन्त कठिन था। उसने प्रबल पराक्रम का परिचय देते हुए समग्र वानर सेना को
व्याकुल कर तितर-बितर कर दिया। सुग्रीव और अंगद जैसे प्रबल पराक्रमी वानर योद्धा मूर्च्छित पड़े थे। यही नहीं अपितु विभीषण, गवाक्ष, गय, नल भी उसने मूर्च्छित कर दिए थे। प्रबल पराक्रमी लक्ष्मण एवं जामवंत जो अकेले ही अनेक योद्धाओं को रोकने की सामर्थ्य रखते थे, आज रावण के द्वारा रोक दिए गए और उनकी एक भी न चली।
केवल हनुमान ही चैतन्य थे जो प्रलयकालीन सागर की भांति भयंकर गर्जना कर रहे थे और चार प्रहर तक अकेले ही पर्वत के समान भीमकाय हनुमान
रावण की सेना पर अग्नि सी बरसाते हुए उसे नष्ट करते रहे। इस प्रकार हनुमान ने अपने पराक्रम से राम के उस हृदय में आशा का क्षीण संचार कर दिया जो रावण के पराक्रम को देखकर उसकी कैद में रह रही सीताजी की दशा के प्रति अत्यन्त चिन्तित था।
विशेष : (1) इस अवतरण में कवि ने एक ओर रावण के पराक्रम का तो दूसरी ओर हनुमान के द्वारा किए गए प्रबल प्रतिरोध का वर्णन किया है।
(2) हनुमान का प्रतिरोध राम के निराश हृदय में क्षीण आशा का संचार कर रहा था। यदि आज हनुमान न होते तो रावण की विजय हो जाती, क्योंकि अन्य सभी वीर रावण के प्रहारों के समक्ष हतप्रभ होकर मूर्च्छित हो चुके थे।
(3) निराशा के क्षणों में आशा की एक किरण का होना ‘राम की शक्ति पूजा’ की प्रमुख विशेषता है। हनुमान के रूप में आशा की वही एक किरण यहाँ विद्यमान है।
(4) संस्कृतनिष्ठ सामासिक पदावली का प्रयोग है।
(5) ‘भीम पर्वत’ में उपमा, ‘गर्जित प्रलयाब्धि’ में उपमा अलंकार का प्रयोग है।
(6) युद्ध के वातावरण का सजीव चित्र अंकित किया गया है।
(7) रौद्र एवं वीर रसों की योजना है।

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