राम की शक्ति पूजा की व्याख्या भाग-5 | Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya Part-5

आज हम ram ki shaktipuja ki vyakhya भाग-5 का अध्ययन करेंगे । आशा करता हूँ कि आप पिछले चार भागों का अब तक अध्ययन कर चुके होंगे ।

है अमा-निशा, उगलता गगन घन-अन्धकार, खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन-चार,

अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल, भूधर ज्यों ध्यान-मग्न, केवल जलती मशाल।

स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय, रह-रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय,

जो नहीं हुआ आज तक हृदय रपुदम्य-श्रान्त, एक भी, अयुत-लक्ष में रहा जो दुराक्रान्त,

कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार-बार, असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार।

सन्दर्भ

प्रस्तुत पंक्तियां छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘राम की शक्ति पूजा’ से ली गई हैं। मूल रूप से यह कविता उनके काव्य संग्रह ‘अनामिका’ में संकलित है।

प्रसंग

रावण को परास्त न कर पा सकने के कारण राम अत्यन्त निराश हैं। अमावस्या का अंधेरा वातावरण में छाया हुआ है। राम के हृदय में भी निराशा घर करती जा रही है। वे राम जो कभी अस्थिर नहीं हुए आज रावण की विजय के भय से आशंकित हैं।

अकेले होने पर भी उनके हृदय ने हजारों शत्रुओं से लोहा लिया और कभी हार नहीं मानी, किन्तु कल होने वाले युद्ध के लिए वह अपने को असमर्थ मान रहा था।

इन पंक्तियों में कवि ने राम की इसी निराशा का चित्रण करते हुए अन्तः एवं बाह्य प्रकृति का सामंजस्य प्रस्तुत किया है।

व्याख्या

 अमावस्या की अंधेरी रात है। आकाश घने अन्धकार को निरन्तर उगलता-सा प्रतीत हो रहा है। प्रतिक्षण अन्धकार सघन होता जा रहा है अन्धकार की परत पर परत चढ़ती जा रही है। इतना घना अंधेरा चारों ओर छाया हुआ है कि दिशाबोध नहीं हो रहा, वायु का संचरण भी जैसे रुक गया है।

राम जहां बैठे हुए हैं, उसके ठीक पीछे समुद्र लगातार भयंकर गर्जना कर रहा है। पर्वत के समान ही राम ध्यान मग्न होकर कुछ चिन्तन कर रहे हैं। अन्धकार से परिपूर्ण वातावरण में केवल एक मशाल जलती हुई क्षीण प्रकाश विकीर्ण करती हुई जैसे अन्धकार की सघनता को व्यंजित कर रही है।

कवि ने यहां प्रतीकों के माध्यम से राम की हृदयगत निराशा का चित्रण किया है। वातावरण में जैसा घना अंधेरा छाया है, ठीक वैसा ही निराशा का अन्धकार राम के हृदय में व्याप्त है। निराशा की परत पर परत राम के हृदय में जमती जा रही है। निराशा की इस अधिकता ने राम को किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया है, उन्हें दिशाबोध नहीं हो रहा अर्थात् रावण पर विजय पाने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए यह समझ में नहीं आ रहा। उनकी सांस भी जैसे अवरुद्ध हई जा रही है, क्योंकि रावण उनकी चेतना पर पूरी तरह छा गया है।

 पीछे गर्जना करता हुआ समुद्र ही मानो रावण है जिसकी गर्जना को रोक पाने का कोई उपाय राम के पास नहीं है। राम सामने स्थित इस पर्वत की भांति ध्यान मग्न हैं, किन्तु कोई रास्ता उन्हें नहीं मिल पा रहा है।

वे राम जो हर स्थिति में स्थिर रहते थे, कभी विचलित नहीं होते थे, उन्हें रावण की विजय की आशंका अस्थिर कर रही थी। रह-रहकर उनके मन में यह आशंका जाग उठती थी कि अगर रावण विजयी हो गया तो इस संसार का क्या होगा यहां अधर्म, अत्याचार एवं अन्याय का बोलबाला हो जाएगा। राम का आत्मविश्वास डगमगा रहा था।

 राम का वह हृदय जो आज तक कभी शत्रु के द्वारा दमित नहीं किया जा सका तथा अकेले होने पर भी जो हजारों-लाखों योद्धाओं के समक्ष दुर्दमनीय बना रहा, कल रावण से लड़ने में अपने को असमर्थ मान रहा था।

 उनका मन तो युद्ध के लिए उद्यत था, किन्तु हृदय मन का साथ न देकर अपने को युद्ध के लिए असमर्थ मान रहा था।

विशेष

(1) राम के अन्तर्द्वन्द्व एवं निराशा की सफल अभिव्यक्ति इस अवतरण में की गई है।

(2) प्रतीकों के माध्यम से राम की हृदयगत निराशा का सफल चित्र अंकित किया गया है।

(3) अन्धकार निराशा का प्रतीक है, गगन – हृदय का प्रतीक है, सागर- रावण का प्रतीक है।

(4) निराला के राम तुलसी के राम से भिन्न हैं, क्योंकि तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, अवतारी ईश्वर हैं। वे यहां मानवीय लीलाएं कर रहे हैं, किन्तु निराला के राम एक साधारण मानव हैं अतः उनका आत्मविश्वास प्रबल शत्रु एवं उसकी आसुरी शक्तियों के आगे डगमगा जाता है। वे सामान्य मानव की भांति आशा-निराशा के झूले में झूलते दिखाए गए हैं।

(5) इस अवतरण में अन्तःप्रकृति एवं बाह्य प्रकृति का सामंजस्य दिखाया गया है।

(6) अयुत का अर्थ ‘दस हजार’ है। राम ने खरदूषण के चौदह हजार सैनिकों का अकेले ही सामना किया था। उसी ओर यहां संकेत किया गया है।

(7) स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा- में विरोधाभास है ।

(8) भूधर ज्यों ध्यान मग्न में उपमा अलंकार।

(9) हार-हार में पुनरुक्ति, जय-भय में पदमैत्री।

(10) भावानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है।

 (11) प्रतीकात्मक शैली, लाक्षणिक भाषा, छायावादी भाव शिल्प।

(12) केवल जलती मशाल से अमावस्या के अन्धकार की भयावहता एवं कालिमा द्विगुणित हो गई है। यह निराशा में क्षीण आशा का संचार कर रही है जो राम की शक्तिपूजा की प्रमुख विशेषता है।

(13) इस सम्पूर्ण अवतरण में संश्लिष्ट बिम्ब योजना की गई है ।

(14) राम की निराशा को प्रतिबिम्बित करने में कवि को पूर्ण सफलता मिली है।

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