नाटक के तत्व | Natak Ke Tatva

हिंदी नाटक के स्वरूप निर्माण में भारतीय और  पाश्चात्य दोनों ही नाट्य दृष्टियों का योगदान रहा है। अतः भारतीय और पाश्चात्य नाट्य तत्वों की संक्षिप्त जानकारी आवश्यक है। भारतीय नाट्य सिद्धांत संस्कृत के नाटकों के आधार पर निर्मित हुए थे तथा पश्चिमी नाट्य सिद्धांतों का आधार यूनानी नाटक थे। भारतीय आचार्यों ने नाटक के तीन अनिवार्य … Read more

हिंदी के लोकनाट्य | Hindi Ke Loknatya

लोकनाट्य वे नाट्य हैं जो आम जनता द्वारा किसी मिथक रचित एवं प्रदर्शित होते हैं। लोकनाट्यों के कथानक प्रायः लोक प्रचलित होते हैं, जिनमें पौराणिक और ऐतिहासिक और लोक-वार्तागत प्रसंगों का समावेश होता है । लौकिक एवं किवदंतियाँ और काल्पनिक प्रेमकथाएँ भी इन नाट्यों का विषय बनाई जाती हैं । इनका कथानक प्रायः ढीला-ढाला होता … Read more

‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक की तात्त्विक समीक्षा | Dhruwswamini Natak ki Tatvik Samiksha

बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार माने जाते हैं। ‘ध्रुवस्वामिनी’ (1933 ई.) उनकी बहुचर्चित नाट्यकृति है, जिसकी कथावस्तु गुप्त वंश के यशस्वी सम्राट समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य के काल से सम्बन्धित है।   Contents          नाटक की ‘भूमिका‘ में प्रसादजी ने इसकी ऐतिहासिकता के प्रमाण दिए हैं। उनके … Read more

‘अंधेर नगरी’ का नाट्यशिल्प | Andher Nagari Ka Natya Shilp

नाट्य शिल्प से तात्पर्य है किसी नाटक की कथावस्तु, पात्र एवं चरित्र चित्रण, संवाद, भाषाशैली, गीत या संगीत, बिम्ब एवं प्रतीक योजना तथा शीर्षक का सम्मिलित प्रभाव।          ‘अंधेर नगरी’ भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा लिखित एक प्रहसन है । यह सन् 1881 ई. में किसी जमींदार को लक्षित करके नेशनल-थिएटर के लिए एक ही … Read more

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