देवनागरी लिपि की विशेषताएँ | Devnagari Lipi Ki Visheshtaen

देवनागरी (नागरी) लिपि में असंख्य विशेषताएं विद्यमान हैं। वस्तुतः यह विश्व की समस्त वर्तमान लिपियों से श्रेष्ठ एवं वैज्ञानिक है।आइजक पिटमैन के अनुसार – “संसार की यदि कोई लिपि सर्वाधिक पूर्ण है तो वह एकमात्र देवनागरी ही है।”

मोनियर विलियम्स के अनुसार, “देवनागरी में यद्यपि Z और F (ज़ और फ़) के लिए वर्ण नहीं है फिर भी यह सभी ज्ञात लिपियों से अधिक पूर्ण एवं संतुलित है।”

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विलियम्स द्वारा बताए गए इस अभाव को भी देवनागरी ने दूर कर लिया है।

देवनागरी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 

Devnagari Lipi Ki Visheshtaen 

1. यह भाषा के अंतर्गत आने वाले अधिक-से-अधिक ध्वनि-चिह्नों से संपन्न है। इसमें परंपरागत रूप से 11 स्वर तथा 33 व्यंजन हैं। इसके अतिरिक्त ड़, ढ़, क़, ख़, ग़, ज़, फ़, ध्वनियों के लिए भी चिह्न बने हैं। क्ष, त्र, ज्ञ, श्र संयुक्त व्यंजनों के लिए भी अलग चिह हैं। संस्कृत भाषा के लिए लृ तथा ॡ का प्रयोग भी होता है।

2. इसकी वर्णमाला में पहले स्वर उसके बाद व्यंजन और संयुक्त व्यंजन आते हैं। स्वरों में भी हस्व-दीर्घ के युग्म साथ-साथ हैं (अ-आ, इ-ई, उ-ऊ)। व्यंजनों की दृष्टि से भी देवनागरी का क्रम पूर्णतः वैज्ञानिक है।

उच्चारण की दृष्टि से  वर्ग कण्ठ्य है तो च वर्ग तालव्य है। ट वर्ग मूर्धन्य, त वर्ग दन्त्य और प वर्ग ओष्ठ्य है।

‘क’ से ‘म’ तक सभी वर्ण स्पर्श कहलाते हैं। इसमें प्रत्येक वर्ग का पहला-दूसरा वर्ण अघोष और तीसरा-चौथा तथा पाँचवाँ सघोष होता है।

पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्प्राण है तो दूसरा और चौथा महाप्राण। प्रत्येक वर्ग का पाँचवाँ वर्ण नासिक्य है। य, र, ल, व, ह सघोष हैं और श, स अघोष

3. जो लिपि चिन्ह जिस ध्वनि का द्योतक है उसका नाम भी वही है जैसे-अ, इ, क, ख, ज, म।

4. हिंदी में ऋ-रि तथा श-ष को छोड़कर शेष सभी ध्वनियों में से प्रत्येक के लिए एक लिपि-चिह है।

5. हिंदी की देवनागरी लिपि में एक चिन्ह से एक ही ध्वनि व्यक्त होती है।

6. देवनागरी में उच्चारण की दृष्टि से समान लिपि-चिहों में आकृति में भी समानता देखने को मिलती है जैसे-ट-ठ, ड-ढ, ड़-ढ़, प-फ आदि।

7. देवनागरी आक्षरिक लिपि (आक्षरिक लिपि में, हर वर्ण के लिए एक ध्वनि होती है और हर अक्षर का उच्चारण किया जाता है) है। इसमें प्रत्येक व्यंजन में ‘अ’ स्वर का योग रहता है। कुछ विद्वान इसे लिपि का गुण मानते हैं तो कुछ दोष। परंतु यह निश्चित है कि इससे रोमन आदि अनाक्षरिक लिपियों की तुलना में कम स्थान घिरता है।

8. देवनागरी लिपि में स्वर यदि स्वतंत्र रूप से आते हैं तो पूरे वर्ण-चिन्ह का प्रयोग होता है परंतु व्यंजन के साथ आने पर पूरे वर्ण के स्थान पर मात्रा का प्रयोग किया जाता है। इससे भी स्थान की बचत होती है।

9. रोमन लिपि में कई बार वर्ण ‘मूक’ रहते हैं। उनका उच्चारण नहीं किया जाता जैसे-know (k और w), Bridge (D), Colour (O)। देवनागरी में यह दोष नहीं है। यहाँ प्रत्येक वर्ण का उच्चारण किया जाता है।

10. कुछ अपवाद को छोड़कर देवनागरी में अल्पप्राण और महाप्राण ध्वनियों के लिए स्वतंत्र चिह हैं ।

11. देवनागरी में रोमन लिपि के समान Capital letter और Small letter लिखने की समस्या नहीं है। इस प्रकार का वर्गीकरण अवैज्ञानिक भी है और अनावश्यक भी।

12. देवनागरी में व्यंजन-संयोग की पद्धति सर्वथा उपयुक्त है। संयुक्त व्यंजन तभी बनता है जब दो व्यंजनों के बीच में कोई स्वन (शब्द, ध्वनि, आवाज़) न हो। इनकी लिपि और वर्तनी में कोई अन्तर नहीं होता, जैसे-राज्य, मान्य, व्यवहार, अनुष्ठान आदि।

13. दो ह्रस्व अथवा ह्रस्व-दीर्घ स्वर मिलकर दीर्घ स्वर में परिवर्तित हो जाते हैं जिसे दीर्घ संधि कहते हैं जैसे-हिम+ आलय-हिमालय, दीक्षा + अन्त = दीक्षान्त आदि।
14. सभी नासिक्य ध्वनियों के लिए अलग-अलग चिन्ह हैं। रोमन में ङ, ञ, ण सभी को N से लिखते हैं। भारतीय भाषाओं के तृष्णा, विष्णु, प्राणायाम जैसे शब्दों को रोमन में लिख पाना असंभव है।

15. नागरी में विभिन्न मात्रा में स्वरों के नासिक्यीकरण के लिए अनुस्वार और चंद्रबिंदु जैसे अयोगवाहों की उपस्थिति इसकी ध्वनिवैज्ञानिक पूर्णता को पराकाष्ठा पर पहुंचा देती है।

16. इस लिपि में अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता है। जैसे-अंग्रेजी से ‘ऑ’ तथा फारसी से क़, ख़, ग़, ज़, फ़ ध्वनियों ग्रहण की गई हैं।

17. उत्तर भारत की सभी लिपियाँ देवनागरी के ही रूप-भेद हैं। उनमें अत्यधिक साम्य है, अतः एक लिपि को जाननेवाला दूसरी लिपि को आसानी से समझ सकता है।

18. इस पर किसी भाषा विशेष का आधिपत्य नहीं है। यह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, मराठी, नेपाली आदि अनेक भाषाओं की लिपि तो है ही, अन्य किसी भी भाषा की लिपि होने की सामर्थ्य भी इसमें विद्यमान है।

19. देवनागरी लिपि सुपाठ्य एवं सुस्पष्ट है।

20. आधुनिक वैज्ञानिक युग में मुद्रण एवं टंकण की सुविधा भी लिपि की महत्त्वपूर्ण विशेषता मानी जाती है। यह सुविधा भी देवनागरी में विद्यमान है।

21. आधुनिक युग वेग और गति का युग है। लेखन में शीघ्रता आवश्यक है। आशुलेखन की सुविधा सरकारी कार्यालयों की आवश्यकता बन गई है, जो देवनागरी में उपलब्ध है।

22. देवनागरी लिपि की एक विशेषता यह भी है कि यह भारत के बड़े भूभाग में प्रयोग में आती है। उत्तरी हिमालय से लेकर महाराष्ट्र और हरियाणा से लेकर बिहार, झारखण्ड तक इसका क्षेत्र फैला हुआ है; जिसके अन्तर्गत उत्तराखण्ड, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं।

23. भारत का विपुल साहित्य भण्डार इसी लिपि में लिखित है। संस्कृत, पालि, प्राकृत तथा अपभ्रंश साहित्य इसी लिपि में हैं।

24. देवनागरी लिपि का प्रयोग दक्षिण भारत में पहले से होने लगा था। दक्षिण की देवनागरी लिपि ‘नंदिदेवनागरी’ के नाम से प्रसिद्ध है और अब तक दक्षिण में संस्कृत पुस्तकों को लिखने में इसी लिपि का प्रयोग होता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और मध्य भारत में समस्त शिलालेख और ताम्रपत्र देवनागरी लिपि में ही हैं।

25. इसका वर्तमान रूप अत्यंत नेत्राकर्षक है।

26. यह ध्वन्यात्मक और स्वनिमात्मक प्रतिलेखन एवं लिप्यन्तरण (फोनेटिक एण्ड फोनेमिक ट्रांसक्रिप्शन और ट्रांसलिट्रेशन) के पर्याप्त अनुकूल है।

27. वैज्ञानिक एवं प्राविधिक उपयोग की दृष्टि से भी देवनागरी सर्वथा उपयुक्त है। कम्प्यूटर आदि में लगातार बढ़ रहा इसका प्रयोग इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है।

निष्कर्ष 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि रोमन, उर्दू-फारसी आदि लिपियों की तुलना में देवनागरी अधिक सुपाठ्य सुस्पष्ट एवं वैज्ञानिक है। विश्व का श्रेष्ठतम ज्ञान और विश्व का आदि ज्ञान इसी लिपि में उपलब्ध है।

 

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