Table of Contents
- 1
- 1.1 प्रशासनिक हिंदी का स्वरूप
- 1.2 द्विभाषिक नीति के कारण अनुवाद anuvad का बढ़ता प्रभुत्व
- 1.3 प्रशासनिक साहित्य का अँग्रेजी से हिंदी अनुवाद anuvad
- 1.4 प्रशासनिक हिंदी की शैली एवं वाक्य विन्यास
- 1.5 प्रशासनिक भाषा के रूप में नई अभिव्यक्ति शैली का विकास
- 1.6 प्रशासनिक हिंदी का अनुवाद के माध्यम से विकास
- 1.7 प्रशासनिक शब्दावली
- 1.8 कार्यालय में प्रयुक्त अभिव्यक्तियाँ
- 1.9 अनुवाद anuvad के माध्यम से विकसित भाषा की उपलब्धियाँ
- 1.10 संक्षिप्तता
- 1.11 औपचारिकता
- 1.12 नवीन अभिव्यक्ति शैली का विकास
- 1.13 सरलता का आग्रह
- 1.14 संख्या के अंतरराष्ट्रीय रूप का प्रयोग
- 1.15 अँग्रेजी शब्दों का प्रयोग
- 1.16 कृत्रिम भाषा का प्रयोग
- 1.17 प्रशासनिक भाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग की सीमाएँ और संभावनाएँ
- 1.18 सीमाएँ
- 1.19 कार्यालय की भाषा के रूप में हिंदी की संभावनाएँ
- 1.20 निष्कर्ष
राजभाषा अधिनियम, 1963 (यथा संशोधित, 1967) के प्रावधानों के
अनुसार संघ सरकार के राजकाज में द्विभाषिकता की स्थिति आ गई जिसके अनुसार सरकारी
अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने शासकीय कार्य हिंदी अथवा अँग्रेजी में करने की
छूट दी गई तथा उक्त अधिनियम की धारा 3(3) के अंतर्गत
आने वाले सभी कागजात हिंदी और अँग्रेजी में द्विभाषी रूप में प्रस्तुत करने की
सांविधिक व्यवस्था की गई । राजभाषा नियम 1976 (यथा संशोधित 1987) के अंतर्गत
विभिन्न राज्यों के साथ केंद्र सरकार द्वारा किए जाने वाले पत्राचार की भाषा
निर्धारित की गई है जिसके अनुसार ‘क’ क्षेत्र तथा ‘ख’ क्षेत्र
में स्थित राज्यों में हिंदी तथा ‘ग’ क्षेत्र में स्थित राज्यों में अँग्रेजी में पत्राचार करने का प्रावधान
किया गया है ।
प्रशासनिक हिंदी के विकास में अनुवाद की भूमिका अहम रही है तथा कार्यालय के कामकाज
में अनुवाद के आधार पर एक नई भाषा शैली का विकास हुआ है । अनुवाद पर आधारित
प्रशासनिक भाषा के रूप में हिंदी में एक नई अभिव्यक्ति शैली का विकास हुआ है । इसी
के साथ-साथ उर्दू और अँग्रेजी के शब्द और कहीं-कहीं उर्दू, अँग्रेजी के साथ हिंदी शब्दों के मिश्रित रूप भी विकसित हुए हैं। आज
प्रशासनिक कार्यों में जिस हिंदी का प्रयोग हो रहा है वह काफी हद तक अनुवाद पर
आधारित भाषा है क्योंकि सरकारी कार्यालय में मूल टिप्पण और प्रारूपण अक्सर
अँग्रेजी में होते हैं जिनका हिंदी अनुवाद किया जाता है ।
प्रशासनिक हिंदी का स्वरूप
भारत की संविधान सभा में राजभाषा
के सवाल पर काफी लंबी बहस हुई लेकिन अन्ततः संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को यह निर्णय लिया कि संघ की राजभाषा हिंदी होगी और
उसकी लिपि देवनागरी । इसके साथ यह भी निर्णय लिया गया कि संविधान लागू होने के बाद
15 वर्ष तक अँग्रेजी का प्रयोग जारी रहेगा । प्रशासनिक क्षेत्रों में हिंदी के
प्रयोग का सबसे सशक्त आधार यही है कि इसे संविधान ने संघ की राजभाषा के रूप में
स्वीकार किया है । आज़ादी से पहले इसे राष्ट्रभाषा का गौरव प्रदान किया गया था, अतः राष्ट्रभाषा से राजभाषा बनने की प्रक्रिया में
जिस भाषा का विकास हुआ उसे हम प्रशासनिक हिंदी कहते हैं।
इन दोनों में मूल अंतर यह
है कि राष्ट्रभाषा आम जनता के प्रयोग से स्वतः विकसित होती है जबकि राजभाषा
मुख्यतः सरकारी व्यवस्था और प्रयास पर निर्भर करती है और इसका प्रयोग आम जनता की अपेक्षा
सरकारी कर्मचारी अधिक करते हैं । सरकारी कर्मचारी चूँकि शासकीय कार्यों के लिए इस
भाषा का प्रयोग करते हैं, अतः इसमें शासकीय कार्यों से
संबंधित विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग किया जाता है तथा अर्थ की स्पष्टता पर विशेष
बल दिया जाता है । प्रशासनिक कामकाज के लिए तकनीकी, कानूनी
और प्रशासनिक शब्दावली में एकरूपता आवश्यक होती है क्योंकि इसके अधिकांश शब्द
पारिभाषिक होते हैं तथा इसके माध्यम से सरकार अथवा प्रशासन के आदेश, अनुदेश आदि ज़ारी किए जाते हैं । प्रशासनिक हिंदी में
संविधान द्वारा दिए गए निदेश के अनुसार अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप यानी 1,2,3,4…………….. लिखना होता है जबकि आम जनता अपने
पत्र-व्यवहार में अपनी इच्छा के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय या देवनागरी अंक यानी १,२,३,४……………. लिख सकती है ।
द्विभाषिक नीति के कारण अनुवाद anuvad का
बढ़ता प्रभुत्व
राजभाषा अधिनियम, 1963 में संशोधन होने के बाद यह निश्चय ही हो गया कि
द्विभाषिकता की स्थिति देश में अनंतकाल तक जारी रहेगी । हरेक कर्मचारी को अपनी
इच्छानुसार अँग्रेजी या हिंदी में काम करने की छूट दे दी गई है । राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3(3) के अंतर्गत अनेक कागजात अनिवार्य
रूप से हिंदी और अँग्रेजी दोनों में ज़ारी करने के प्रावधान किए गए ।
इसके फलस्वरूप
यह आवश्यक हो गया कि ऐसे प्रलेखों का अनुवाद किया जाए । सभी अधिसूचनाएं, विज्ञप्तियाँ, सार्वजनिक
नोटिस, निविदा, संसद
में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रश्नोत्तर आदि अनुवाद के आधार पर ही हिंदी में
प्रस्तुत किए जा रहे हैं जो समाचार-पत्रों के माध्यम से जन-साधारण तक पहुँचते हैं
। इनके आधार पर प्रशासनिक हिंदी के एक नए स्वरूप का विकास हो रहा है जिसे
धीरे-धीरे लोग स्वीकार कर रहे हैं ।
प्रशासनिक साहित्य का अँग्रेजी से
हिंदी अनुवाद anuvad
राजभाषा के रूप में हिंदी के
प्रगामी प्रयोग के लिए यह आवश्यक समझा गया कि सभी प्रशासनिक साहित्य अर्थात्
प्रक्रिया साहित्य, कोड, मैनुअल आदि हिंदी में भी तैयार कराए जाएँ । इसके लिए
प्रारम्भ में ऐसे साहित्य के अनुवाद का दायित्व केंद्रीय हिंदी निदेशालय को दिया
गया था । बाद में यह काम केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो को सौंपा गया जिसकी स्थापना विशेष
रूप से प्रशासनिक साहित्य के अनुवाद के लिए की गई थी । गैर विधिक प्रशासनिक
साहित्य का अनुवाद केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो द्वारा किया जाता है जबकि विधि से
संबंधित अंशों का अनुवाद विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग के राजभाषा खंड
द्वारा किया जाता है।
विधायी विभाग का राजभाषा खंड केवल सरकारी मंत्रालयों, विभागों और कार्यालयों के विधिक अनुवाद करता है जबकि
सार्वजनिक उद्यमों आदि को इसके लिए स्वतः व्यवस्था करनी होती है । इस प्रक्रिया के
परिणामस्वरूप सरकारी कामकाज की हिंदी का विकास ‘अनुवाद
की भाषा’ के रूप में हुआ, स्वतंत्र
भाषा के रूप में नहीं। उसके शब्द-भंडार, व्याकरणिक
रूप और वाक्य विन्यास सभी पर अँग्रेजी का प्रभाव पड़ा है और यह सामान्य व्यवहार की
भाषा से कुछ भिन्न दिखाई देती है।
प्रशासनिक हिंदी की शैली एवं
वाक्य विन्यास
आज़ादी के बाद प्रशासनिक भाषा के
रूप में हिंदी के प्रयोग से एक नई शैली का अभ्युदय हुआ । मुख्य रूप से इसके दो
कारण थे, एक तो यह कि स्वतंत्रता संग्राम में यह भाषा कमोबेश
देश के हर हिस्से में पहुँच चुकी थी, अतः
देश की संपर्क भाषा बन गई थी तथा दूसरा यह कि वर्षों से कार्यालयों में अँग्रेजी
के प्रयोग के कारण अँग्रेजों की शासन पध्दति, कार्यालय
की प्रक्रिया, उनकी अभिव्यक्ति की शैली, यहाँ तक कि अँग्रेजी के वाक्य विन्यास को हिंदी में
रूपांतरित किया गया । प्रशासनिक हिंदी की शैली और वाक्य
विन्यास की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है:
प्रशासनिक भाषा के रूप में नई
अभिव्यक्ति शैली का विकास
राजभाषा अधिनियम बनाने के बाद
प्रशासनिक हिंदी की जिन अभिव्यक्तियों का विकास हुआ है वे साहित्यिक और सांस्कृतिक
अभिव्यक्तियों से हटकर अधिक औपचारिक, संक्षिप्त, सटीक हैं तथा उनका उद्देश्य कथ्य को शत-प्रतिशत सही
ढंग से संप्रेषित करना है । उदाहरण के लिए ‘the undersigned is directed to say’ के लिए प्रशासनिक हिंदी में यह
लिखा जाता है कि ‘अधोहस्ताक्षरी को यह कहने का
निदेश हुआ है’ ।
प्रशासनिक हिंदी का अनुवाद के
माध्यम से विकास
अधिकारियों और कर्मचारियों की अभिव्यक्ति शैली तो प्रशासनिक हिंदी है पर वह मूल
कार्य के लिए विकसित अँग्रेजी पर आधारित भाषा है । अनुवाद के माध्यम से प्रशासनिक
हिंदी का भंडार समृद्ध भी हुआ है । अनुवाद के माध्यम से विकसित प्रशासनिक हिंदी
में औपचारिकता और निश्चयात्मकता अधिक है ।
प्रशासनिक शब्दावली
किसी भी भाषा प्रयुक्ति का मूल
आधार उसकी शब्दावली और कथन का ढंग ही होता है । प्रशासनिक हिंदी को उर्दू और
अँग्रेजी दो भाषाओं की विरासत मिली है। अतः प्रशासनिक क्षेत्र की हिंदी में उर्दू
की प्रचलित शब्दावली भी आई है जैसे ‘मुअत्तली’, ‘बहाली’, ‘मिसिल’, ‘दस्ती’, ‘मार्फ़त’ और अँग्रेजी शब्दों का भी पर्याप्त ग्रहण और अनुकूलन
हुआ है, जैसे ‘रजिस्टर’, ‘बैंक’, ‘बैंकिंग’, ‘फाईल’, ‘बोर्ड’, ‘पेंशन’ ।
कार्यालय में प्रयुक्त
अभिव्यक्तियाँ
कार्यालय की भाषा की औपचारिकता
तथा एकार्थता के लिए यह ज़रूरी समझा गया कि कार्यालय में बहु-प्रयुक्त
अभिव्यक्तियों और वाक्यांशों का हिन्दी रूप भी सुनिश्चित होना चाहिए अन्यथा किसी
विषय पर उचित कार्रवाई करना संभव न होगा । उदाहरणार्थ ऐसी कुछ अभिव्यक्तियाँ और
उनके हिंदी पर्याय नीचे दिए गए हैं :
action may be taken as
proposed : यथा
प्रस्तावित कार्रवाई की जाए
approved as
proposed : यथा प्रस्ताव अनुमोदित
as a matter of
fact : यथार्थतः, वस्तुतः
do the
needful : आवश्यक कार्रवाई करें
अनुवाद anuvad के माध्यम से विकसित भाषा
की उपलब्धियाँ
प्रशासनिक कामकाज में अनुवाद के
माध्यम से जिस हिंदी भाषा का विकास हुआ है उसकी सबसे पहली विशेषता है संक्षिप्तता
। संक्षिप्तता के अतिरिक्त, नए शब्दों के प्रयोग, नई भाषा शैली, अँग्रेजी
पर आधारित वाक्य संरचना आदि का विकास हुआ है । अनुवाद के माध्यम से विकसित भाषा की
विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
संक्षिप्तता
अँग्रेजी में please discuss, approved,
kept in abeyance जैसे
वाक्यांशों का प्रयोग किया जाता है । प्रशासनिक कामकाज से पहले हिंदी में इस तरह
के वाक्यांशों को लिखने की परंपरा नहीं थी जबकि अब ‘कृपया
चर्चा करें’, ‘अनुमोदित’, ‘मुल्तवी रखा जाए’ आदि
वाक्यांश लिखे जाते हैं ।
औपचारिकता
इस संबंध में यह भी उल्लेखनीय है
कि ‘कृपया’ शब्द
का प्रयोग भी प्रशासनिक हिंदी की विशेषता है क्योंकि पहले हम कुछ आदर सहित बोलते
थे तो ‘आइए’,
‘बैठिए’ कहते थे । लेकिन प्रशासनिक हिंदी के विकास के बाद ‘कृपया आइए’, ‘कृपया
बैठिए’ कहने का प्रचलन हुआ है ।
नवीन अभिव्यक्ति शैली का विकास
कार्यालयों के कामकाज में अलग-अलग
ढंग से पत्राचार किए जाते हैं तदनुसार उसकी भाषा शैली और सम्बोधन आदि भी बदलते हैं
। अब सरकारी पत्र में हम लिखते हैं कि कृपया पावती भेजें तो अर्द्धसरकारी पत्र में a line of reply will be
appreciated यानी उत्तर
भिजवाने की कृपा करें या आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी लिखा जाता है । इसी तरह yours sincerely के लिए ‘आपका’ और yours
faithfully के
लिए ‘भवदीय’ लिखा
जाता है।
सरलता का आग्रह
यद्यपि अभी तक सरकारी कामकाज में
अनुवाद की भाषा बहुत सरल नहीं होती है लेकिन इस बात के लिए निरंतर प्रयास किया जा
रहा है कि प्रशासनिक हिंदी भाषा सरल और स्वाभाविक हो और उसमें विचारों की स्पष्टता
हो ताकि जिनके लिए यह अनुवाद किया जा रहा है वे इसे समझ सकें ।
संख्या के अंतरराष्ट्रीय रूप का
प्रयोग
राजभाषा अधिनियम में इस बात का
प्रावधान है कि राजभाषा हिंदी की लिपि तो देवनागरी होगी लेकिन अंतरराष्ट्रीय
संख्या का प्रयोग किया जाएगा यानी प्रशासनिक प्रयोग में १,२,३,४,५,६,७,८,९,०, के स्थान पर 1,2,3,4,5,6,7,8,9,0 लिखना आवश्यक है ।
अँग्रेजी शब्दों का प्रयोग
प्रशासनिक कार्यों में अँग्रेजी
शब्दों को हिंदी की प्रशासनिक एवं तकनीकी शब्दावली के रूप में स्वीकार कर लिया गया
है । जैसे कि ऑक्सीज़न, अपील, कैंसर, रॉडार
आदि अनेक शब्द है जिनका प्रयोग हम हिंदी में करते हैं लेकिन ये शब्द अंग्रेजी के
हैं ।
कृत्रिम भाषा का प्रयोग
अनुवाद anuvad के माध्यम से विकसित
प्रशासनिक हिंदी में एक नई भाषा शैली का विकास हुआ है जो गठन और संरचना की दृष्टि
से हिंदी के सामान्य मुहावरे से बिलकुल भिन्न है जैसे कि ‘अधोहस्ताक्षरी को यह कहने का निदेश हुआ है’ । इन वाक्यों की भाषा बहुत ही बनावटी लगती है लेकिन
प्रशासनिक दृष्टि से यह सही और सटीक
भाषा है क्योंकि इसके निर्वचन में कोई अस्पष्टता नहीं हो सकती ।
प्रशासनिक भाषा के रूप में हिंदी
के प्रयोग की सीमाएँ और संभावनाएँ
यद्यपि कतिपय राजनैतिक एवं
प्रशासनिक कारणों से सरकारी कार्यालयों में अब भी बड़े पैमाने पर अँग्रेजी का ही
प्रयोग हो रहा है परंतु कार्यालयी भाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग की व्यापक
संभावनाएँ हैं ।
सीमाएँ
कार्यालयी हिंदी की
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि वह ‘अँग्रेजी
की पिछलग्गू भाषा’ या ‘अनुवाद
की भाषा’ बनकर रह गई है । यही कारण है कि आमतौर पर जो प्रलेख
या दस्तावेज़ द्विभाषिक रूप से जारी किए जाते हैं उनके हिंदी पाठ की अपेक्षा
अँग्रेजी पाठ को ही लोग पढ़ते हैं । यहाँ तक की अर्थ के निर्वचन में विवाद या संदेह
की स्थिति में अँग्रेजी पाठ को ही प्रामाणिक माना जाता है जो कार्यालयी हिंदी की
दयनीयता को दर्शाता है ।
सरकारी कार्यालयों में अक्सर सभी
कागजात मूल रूप से अँग्रेजी में ही तैयार किए जाते हैं, अतः शासकीय कामकाज के लिए हिंदी में प्रस्तुत
दस्तावेज़ों एवं प्रलेखों की अपेक्षा लोग अँग्रेजी के मूल पाठ को ही ज़्यादा महत्व
देते हैं । यदि मूल रूप से हिंदी में ही प्रारूप तैयार किए जाएँ तो इसमें संदेह
नहीं कि कार्यालयी भाषा के रूप में हिंदी का व्यापक प्रचार-प्रसार होगा।
कार्यालय की भाषा के रूप में
हिंदी की संभावनाएँ
प्रशासनिक हिंदी एक नई शैली, नई संरचना, नए
अंदाज़ और नवीन प्रभाव के साथ विकसित हो रही है तथा विकास की असीम संभावनाएँ हैं ।
संघ सरकार की राजभाषा हिंदी होने के कारण इनके विभाग, मंत्रालयों एवं सभी सरकारी कार्यालयों, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीयकृत बैंक, सरकारी उपक्रम, सरकार
के स्वशासी निकाय भी आते हैं, की शासकीय भाषा हिंदी ही है ।
संसद में द्विभाषिकता की स्थिति के कारण हिंदी के प्रयोग की अनिवार्यता बनी हुई है। अनेक उच्च न्यायालयों ने भी अपने कामकाज में हिंदी को मान्यता प्रदान की है । इन
बातों को ध्यान में रखकर अगर हम कार्यालयी भाषा के रूप में हिंदी की संभावनाओं पर
विचार करें तो निश्चय ही व्यापक और अपार संभावनाएँ नज़र आएंगी ।
निष्कर्ष
राजभाषा अधिनियम पारित होने के
बाद द्विभाषिकता की स्थिति कायम होने पर अनुवाद anuvad के आधार पर प्रशासनिक हिंदी का
विकास हुआ । अनुवाद पर आश्रित भाषा पहले बहुत कृत्रिम लगती थी । प्रशासनिक हिंदी
में नई भाषा शैली और शब्दावली विकसित हुई। अनुवाद में सरलता का आग्रह बढ़ा तथा
प्रचलित शब्दों के प्रयोग के लिए प्रयास किए गए । साहित्यिक भाषा के रूप में
विकसित हिंदी तथा व्यावसायिक भाषा के रूप में अनुवाद के आधार पर विकसित हिंदी की
अभिव्यंजना में अंतर का शुरू में आम जनता ने स्वागत नहीं किया तथा इसे हिंदी भाषा
की सहज स्वाभाविक प्रकृति के प्रतिकूल माना । लेकिन बाद में इसे स्वीकार किया जाने
लगा ।
वस्तुपरक और संदर्भमूलक होती है अतः अनुवाद की भाषा में निर्णय संप्रेषित करने की
क्षमता होनी चाहिए। अतः अंत में यह कहना उचित होगा कि प्रशासनिक कार्यों तथा
अनुवाद का भाषिक सरोकार घनिष्ठ हो रहा है ।

नमस्कार ! मेरा नाम भूपेन्द्र पाण्डेय है । मेरी यह वेबसाइट शिक्षा जगत के लिए समर्पित है । हिंदी भाषा, हिंदी साहित्य और अनुवाद विज्ञान से संबंधित उच्च स्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना मेरा मुख्य उद्देश्य है । मैं पिछले 20 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहा हूँ । मेरे लेक्चर्स हिंदी के छात्रों के द्वारा बहुत पसंद किए जाते हैं ।
मेरी शैक्षिक योग्यता इस प्रकार है : बीएससी, एमए (अंग्रेजी) , एमए (हिंदी) , एमफिल (हिंदी), बीएड, पीजीडिप्लोमा इन ट्रांसलेशन (गोल्ड मेडल), यूजीसी नेट (हिंदी), सेट (हिंदी)
मेरे यूट्यूब चैनल्स : Bhoopendra Pandey Hindi Channel, Hindi Channel UPSC
Very useful information
Thank you so much.
Thanks a lot for your kind appreciation.