Table of Contents
- 1
- 1.1 1. प्रशासनिक कार्यों में अनुवाद की आवश्यकता
- 1.2 2. भारत में केंद्रीय सरकार में अनुवाद की बढ़ती आवश्यकता क्यों ?
- 1.3 2.1 अनुवाद कार्य की शुरुआत
- 1.4 2.2 संसद में अनुवादकों की आवश्यकता
- 1.5 2.3 अनुवाद कार्य का दायित्व वहन करने वाला अभिकरण
- 1.6 2.4 अनुवाद कार्य का विस्तार
- 1.7 3. द्विभाषिकता के क्षेत्र
- 1.8 3.1 राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 (3) के प्रावधान
- 1.9 3.2 राजभाषा नियम, 1976 के प्रावधान
- 1.10 4. अनुवाद संबंधी व्यवस्था
- 1.11 4.1 हिंदी कक्ष/राजभाषा कक्ष
- 1.12 4.2 केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो तथा राजभाषा विधायी खंड
- 1.13 4.3 अनुवाद कार्य का विभाजन
- 1.14 4.3.1 विधिक दस्तावेज़ों के अनुवाद
- 1.15 4.3.2 अन्य प्रशासनिक कागजात का अनुवाद
- 1.16 4.4 अनुवाद प्रशिक्षण की व्यवस्था
- 1.17 5. प्रशासनिक अनुवाद की सामग्री का स्तर एवं स्वरूप
- 1.18 निष्कर्ष
जब भारत स्वाधीन हुआ तथा प्रशासनिक आदि कार्यों में भारतीय भाषाओं के प्रयोग की बात सोची जाने लगी तब आरंभ में अनुवाद का सहारा लिया जाना अस्वाभाविक नहीं था। भारत के संविधान के अनुसार जहाँ अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी को अपनाया गया वहीं अनुच्छेद 345 में राज्यों की राजभाषा के रूप में उन प्रदेशों में प्रयुक्त हो रही भाषाओं को या हिंदी को अपनाए जाने का उपबंध किया गया ।
इससे पूर्व प्रशासनिक
कार्यों में अधिकांशतः अँग्रेजी का प्रयोग हो रहा था,
अतः भाषा परिवर्तन के लिए संक्रमण काल में अनुवाद की भूमिका स्पष्ट थी । भारत के
विभिन्न भागों में अभी भी कहीं-कहीं बहुभाषिक स्थिति है तथा वह स्थिति काफी देर तक
बनी रहेगी, उसके अनुसार अनुवाद का महत्व भी
बना रहेगा । यहाँ यह भली-भाँति समझ लेना चाहिए कि समस्त प्रशासनिक कामकाज अनुवाद
के माध्यम से ही सम्पन्न किया जाना अपेक्षित नहीं है । अपेक्षा यह है कि अधिकांश
कामकाज मूल रूप से हिंदी में या संबंधित राज्य/संघ राज्यक्षेत्र की राजभाषा में
किया जाए। फिर भी अनुवाद की आवश्यकता काफी परिमाण में रही है और वह आवश्यकता आगे
भी काफी समय तक विद्यमान रहने की संभावना है।
1. प्रशासनिक कार्यों में अनुवाद की आवश्यकता
प्रशासनिक कार्यों में अनुवाद की आवश्यकता तब
होती है जब विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त होने वाले पत्र या प्रलेख ऐसी भाषा में
हों जिसका ज्ञान सरकारी अधिकारियों या कर्मचारियों को नहीं है या वह ज्ञान
अपर्याप्त है । अनुवाद कराने की आवश्यकता तब भी होती है जब किसी आदेश,
परिपत्र, अधिसूचना आदि को एक से अधिक भाषा
में ज़ारी करना अनिवार्य होता है अथवा वांछनीय समझा जाता है ।
2. भारत में केंद्रीय सरकार में अनुवाद की बढ़ती
आवश्यकता क्यों ?
संघ की राजभाषा स्वीकार किया गया, जिस समय
संघ के सरकारी कामकाज के लिए हिंदी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया गया तब सरकार
के सभी फ़ार्म, कोड,
मैनुअल, अन्य प्रक्रिया साहित्य,
अधिनियम, नियम,
विनियम आदि अँग्रेजी में ही थे । प्रशासनिक कामों में इन सबकी आवश्यकता पड़ती है ।
इन सबका हिंदी रूपांतर कराना ज़रूरी था । फिर भी इनके हिंदी अनुवाद का काम
स्वाधीनता प्राप्ति के तत्काल बाद नहीं, कई वर्षों
के बाद आरंभ किया गया ।
2.1
अनुवाद कार्य की शुरुआत
उन पत्रों से जो सरकारी कार्यालयों में जनता से यदा-कदा हिंदी में आ जाते थे । उन
पर उस समय कार्रवाई हिंदी में होने का प्रश्न ही नहीं था । इनका अनुवाद किसी हिंदी
जानने वाले कर्मचारी से अँग्रेजी में करवा लिया जाता था । कभी-कभी वह पूरा अनुवाद
भी नहीं होता था, पत्र का सारांश अँग्रेजी में दे
दिया जाना ही पर्याप्त माना जाता था । उससे संबंधित आगे की कार्रवाई अँग्रेजी में
होती थी, अर्थात् टिप्पणियाँ भी अँग्रेजी
में लिखी जाती थीं और हिंदी में प्राप्त पत्र का उत्तर अंग्रेजी में ही भेजा जाता
था । यह स्थिति दिसंबर, 1955 तक
रही । संविधान के अनुच्छेद 343(2) के द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए
राष्ट्रपति ने जो आदेश 3 दिसंबर, 1955 को
दिया उसमें जनता के साथ पत्र-व्यवहार में अँग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा के
प्रयोग का भी प्रावधान किया गया । उसी आदेश में ऐसा ही प्रावधान निम्नलिखित
कार्यों के लिए भी हुआ है –
1. प्रशासनिक रिपोर्टें,
राजकीय पत्रिकाएँ और संसद को दी जाने वाली रिपोर्टें ।
2. सरकारी संकल्प और विधायी अधिनियमितियाँ ।
3. जिन राज्य सरकारों ने अपनी राजभाषा के रूप में
हिंदी को अपना लिया है उनसे पत्र-व्यवहार
।
4. संधियाँ और करार ।
5. अन्य देशों की सरकारों और उनके दूतों तथा
अंतरराष्ट्रीय संगठनों से पत्र- व्यवहार ।
6. राजनयिक और कौंसलीय पदाधिकारियों और
अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारतीय
प्रतिनिधियों के नाम जारी किए जाने वाले औपचारिक दस्तावेज़ ।
इन आदेशों के फलस्वरूप केन्द्रीय
सचिवालय के मंत्रालयों में हिंदी का सीमित प्रयोग आरंभ हुआ और उसके लिए ‘हिंदी
सहायकों’ के पदों का सृजन हुआ। कुछ
मंत्रालयों/विभागों में हिंदी अधिकारियों के पद बने ।
2.2 संसद में अनुवादकों की आवश्यकता
हिंदी में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर हिंदी में देने का निश्चय हुआ । ये उत्तर
मूलतः अँग्रेजी में तैयार किए जाते थे । मंत्री स्तर पर उनका अनुमोदन हो जाने के
पश्चात् हिंदी अनुवाद होता था । संसद सदस्यों से प्राप्त होने वाले हिंदी पत्रों
की संख्या भी धीरे-धीरे बढ़ने लगी है । हिंदी अनुभाग/प्रकोष्ठ द्वारा पहले इनका
अनुवाद हिंदी से अँग्रेजी में होता था और उत्तर के अँग्रेजी प्रारूप का अनुमोदन हो
जाने पर उनका हिंदी अनुवाद । इस प्रकार अनुवाद कार्य पर लगे कर्मचारियों को हिंदी
से अँग्रेजी में और अँग्रेजी से हिंदी में,
दोनों ही प्रकार का अनुवाद करना होता था । ज्यों-ज्यों अनुवाद के काम की मात्रा
बढ़ती गई, अनुवाद संबंधी पदों की संख्या भी
बढ़ने लगी तथा ‘हिंदी अधिकारियों’
के पदनाम वाले राजपत्रित पदों का भी सृजन होने लगा । फिर भी,
अनुवाद की नियमित व्यवस्था मुख्यतः मंत्रालयों तक ही सीमित थी,
संबद्ध तथा अधीनस्थ कार्यालयों में जब कभी अनुवाद की आवश्यकता पड़ती तो वे हिंदी
जानने वाले कर्मचारियों की ही सहायता लेकर काम चलाते थे,
इसके लिए अलग से कोई पद नहीं थे ।
2.3 अनुवाद कार्य का दायित्व वहन करने वाला अभिकरण
राष्ट्रपति का जो आदेश 27 अप्रैल, 1960 को
अधिसूचित हुआ उसका पैराग्राफ 4 प्रशासनिक संहिताओं तथा अन्य कार्यविधि साहित्य के
अनुवाद की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । इस संबंध में राजभाषा आयोग ने सिफ़ारिश की थी
कि अनुवाद में प्रयुक्त होने वाली भाषा में किसी हद तक एकरूपता रहना आवश्यक है
इसलिए इस प्रकार के अनुवाद का सारा काम एक अभिकरण को सौंप देना उचित होगा । इस
सिफ़ारिश को स्वीकार करते हुए उपर्युक्त आदेश में कहा गया कि “शिक्षा
मंत्रालय सांविधिक नियमों, विनियमों
और आदेशों के अलावा बाकी सब संहिताओं और अन्य कार्य विधि-साहित्य का अनुवाद करें,
सांविधिक नियमों, विनियमों और आदेशों का अनुवाद
संविधियों के अनुवाद के साथ घनिष्ठ रूप से संबद्ध है,
इसलिए यह काम विधि मंत्रालय करे ।” (संदर्भ-
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय मानविकी विद्यापीठ,
पीजीडीटी-02, अनुवाद का भाषिक और सामाजिक पक्ष,
पृष्ठ संख्या 40, अप्रैल,
2008) शिक्षा मंत्रालय को सौंपा गया वह
काम केन्द्रीय हिंदी निदेशालय में होना आरंभ हुआ,
कई वर्ष वहाँ होता रहा, बाद में
जब गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के अंतर्गत केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो की स्थापना
हुई तब यह उत्तरदायित्व उस ब्यूरो को दे दिया गया । लेकिन सांविधिक नियमों,
विनियमों और आदेशों आदि का अनुवाद अभी भी विधि एवं न्याय मंत्रालय के अंतर्गत होता
है ।
2.4 अनुवाद कार्य का विस्तार
केंद्रीय मंत्रिमंडल के
निर्णय के आधार पर मार्च 1961 में जारी हुए गृह मंत्रालय के आदेश ने अनुवाद के
क्षेत्र को बहुत विस्तृत कर दिया । इस आदेश में सभी सरकारी फ़ार्मों के शीर्षक
द्विभाषिक रखने तथा राजपत्र के कुछ भागों में छपने वाली अधिसूचनाओं को द्विभाषिक
रूप में (हिंदी-अँग्रेजी में) प्रकाशित किए जाने का प्रावधान था ।
संविधान के अनुच्छेद 343(2) में केंद्रीय
सरकार के कामों में अँग्रेजी के प्रयोग की अपेक्षा समान्यतः संविधान के प्रारम्भ
होने से पंद्रह वर्ष की अवधि तक के लिए थी । यदि अनुच्छेद 343(3) के तहत संसद ने
कोई अधिनियम बनाकर कुछ बातों के लिए
अँग्रेजी का प्रयोग उस अवधि के बाद किए जा सकने का कोई प्रावधान न किया होता तो 26
जनवरी, 1965 के बाद संघ का कामकाज केवल
हिंदी में ही होता ।
परंतु संसद ने सन 1963 में जो राजभाषा अधिनियम पारित किया
जिसमें संशोधन 1967 में हुआ, उसके
अनुसार 26.01.1965 के पश्चात् संघ के कामकाज में तथा संसद में हिंदी के अतिरिक्त
अँग्रेजी का प्रयोग ज़ारी है । इस प्रकार केंद्रीय सरकार में द्विभाषिक स्थिति है
तथा यह स्थिति अनिश्चित काल तक रहने वाली
है ।
3. द्विभाषिकता के क्षेत्र
धारा 3(3) के अंतर्गत आने वाले कागजातों को
अनिवार्य रूप से द्विभाषिक रूप में ज़ारी किए जाने का प्रावधान किया गया है।
3.1 राजभाषा अधिनियम,
1963 की धारा 3 (3) के प्रावधान
राजभाषा अधिनियम,
1963 की धारा 3(3) के अंतर्गत आने वाले निम्नलिखित प्रलेखों के लिए हिंदी और
अँग्रेजी दोनों ही भाषाओं का प्रयोग अनिवार्य है :
1. संकल्पों,
सामान्य आदेशों (general orders), नियमों,
अधिसूचनाओं, प्रशासनिक
या अन्य प्रतिवेदनों (reports) या प्रेस
विज्ञप्तियों के लिए, जो केंद्रीय सरकार या उसके किसी
मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में या नियंत्रण
में के किसी निगम या कंपनी द्वारा या ऐसे
निगम या कंपनी के किसी कार्यालय द्वारा निकाले जाते हैं ।
2. उपर्युक्त द्वारा या उनकी ओर से निष्पादित
संविदाओं और करारों (contracts
and agreements) के लिए
तथा लाइसेंसों, परमिटों,
सूचनाओं और निविदा (tender)
फ़ार्मों के लिए तथा
3. संसद के किसी सदन या सदनों के समक्ष रखी गई
प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्टों और राजकीय कागज-पत्रों के लिए ।
अतः उपर्युक्त प्रावधान के अंतर्गत आने वाले
समस्त कागजात का अनुवाद अपेक्षित होता है ।
3.2 राजभाषा नियम,
1976 के प्रावधान
राजभाषा अधिनियम,
1963 के अंतर्गत जो राजभाषा नियम, 1976
अधिसूचित हुए उनके अनुसार भी अनेक कामों में हिंदी तथा अँग्रेजी दोनों ही भाषाओं
का प्रयोग आवश्यक है। इनके अनुसार केंद्रीय सरकार के कार्यालयों से संबंधित सभी
मैनुअल, संहिताएँ (codes),
प्रक्रिया संबंधी साहित्य (procedural literature),
फ़ार्म, रजिस्टरों के शीर्षक,
नाम-पट्ट, सूचना पट्ट,
पत्रशीर्ष तथा लेखन सामग्री की अन्य मदें द्विभाषी (हिंदी-अँग्रेजी में) होनी
अपेक्षित है ।
इन नियमों में स्पष्ट कर दिया गया है कि ‘केंद्रीय
सरकार की कार्यालय’ की परिभाषा में केंद्रीय सरकार के
मंत्रालय, विभाग उनके अधीनस्थ कार्यालय,
केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त आयोग/समिति/अधिकरण के कार्यालय,
केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में या नियंत्रण के अधीन निगम/कंपनियाँ तथा उनके
कार्यालय सभी आते हैं । इन कार्यालयों की संख्या हज़ारों में है और उनमें उपयुक्त
प्रकार की सामग्री विपुल मात्रा में है । अतः इसके अनुवाद का क्षेत्र भी बहुत
विस्तृत है ।
4. अनुवाद संबंधी व्यवस्था
कार्यालयों में अनुवाद की व्यवस्था इस तरह रखी गई है कि बहुत सारा अनुवाद कार्य
संबंधित कार्यालय में ही हो जाए, विशिष्ट
प्रकार का अनुवाद केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो तथा विधायी विभाग के राजभाषा खंड में
होना अपेक्षित है । किस-किस प्रकार का अनुवाद कार्य कहाँ-कहाँ होता है,
इसकी जानकारी निम्नानुसार है :
4.1 हिंदी कक्ष/राजभाषा कक्ष
अब सभी मंत्रालयों तथा
विभागों में हिंदी कक्ष है जिनके प्रभारी हिंदी अधिकारी अथवा सहायक निदेशक
(राजभाषा) हैं । बड़े मंत्रालयों/विभागों में हिंदी कक्ष के प्रभारी इससे उच्चतर पद
के हैं अर्थात् वरिष्ठ हिंदी अधिकारी अथवा उप निदेशक (राजभाषा)। कुछ मंत्रालयों
में निदेशक (राजभाषा) जैसे उच्च स्तरीय पद हैं। इनकी सहायता के लिए कनिष्ठ अनुवादक,
वरिष्ठ अनुवादक आदि भी होते हैं। उनकी संख्या काम की मात्रा पर निर्भर होती है ।
केंद्रीय सरकार के अधीनस्थ कार्यालयों में भी इस प्रकार के पद हैं ।
सरकार के निगमों,
कंपनियों, राष्ट्रीयकृत बैंकों आदि में भी
अनुवाद की समुचित व्यवस्था है, वहाँ
हिंदी कक्ष/राजभाषा कक्ष में हिंदी संबंधी पदों के प्रभारी सामान्यतः प्रबंधक
(राजभाषा), उप प्रबंधक (राजभाषा),
सहायक प्रबंधक (राजभाषा) आदि होते हैं । हिंदी कक्ष न केवल अनुवाद कार्य और उसकी
देख-रेख करते हैं, वे राजभाषा नीति के कार्यान्वयन का
काम भी करते हैं ।
4.2
केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो तथा राजभाषा विधायी
खंड
विभाग के अधीन केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो तथा विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायी
विभाग का राजभाषा खंड किसी एक ही मंत्रालय का अनुवाद कार्य नहीं करते । यहाँ
केंद्रीय सरकार के सभी विभाग/कार्यालयों आदि से विशिष्ट प्रकार का अनुवाद कार्य
आता है जिसका उल्लेख आगे किया गया है । इस कार्य के लिए इनमें निदेशक,
संयुक्त निदेशक, उप निदेशक,
सहायक निदेशक स्तर से लेकर अनुवाद अधिकारी,
वरिष्ठ अनुवादक, कनिष्ठ अनुवादक तथा तकनीकी सहायकों
के पद हैं ।
4.3 अनुवाद कार्य का विभाजन
कार्यालयों में किए जाने वाले अनुवाद कार्य को विषयवस्तु के आधार पर निम्नानुसार
रूप में विभाजित किया जा सकता है :
4.3.1 विधिक दस्तावेज़ों के अनुवाद
विधिक कागजात के अंतर्गत
संविधियाँ, सांविधिक नियम,
विनियम और आदेश जिनमें उनसे संबंधित फ़ार्म भी शामिल हैं,
इनका अनुवाद विधि मंत्रालय का राजभाषा खंड करता है ।
4.3.2 अन्य प्रशासनिक कागजात का अनुवाद
असांविधिक मैनुअलों,
संहिताओं और अन्य कार्यविधि साहित्य तथा उनसे संबंधित प्रशासनिक फार्मों का अनुवाद
राजभाषा विभाग का केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो कर रहा है । यदि किन्हीं मैनुअल आदि में
कुछ अंश सांविधिक है और कुछ अंश असांविधिक है,
तो विधि मंत्रालय के राजभाषा खंड द्वारा इन सांविधिक अंशों का यह अनुवाद पूरा कर
लेने पर असांविधिक अंश का अनुवाद केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो करता है । परंतु तीनों
रक्षा सेनाएँ, रेल मंत्रालय और डाक तार विभाग
अपनी असांविधिक सामग्री का अनुवाद स्वयं करती हैं ।
4.4
अनुवाद प्रशिक्षण की व्यवस्था
के काम, विशेष रूप से अनुवाद के क्षेत्र
में लगे कर्मचारियों को अनुवाद की प्रक्रिया और सिद्धान्त से अवगत कराने के लिए
केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में तीन-तीन महीने
के अनुवाद प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं । इनमें मंत्रालयों,
विभागों, निगमों आदि द्वारा नामित
कर्मचारियों को लिया जाता है। प्रत्येक सत्र में 30-40 प्रशिक्षणार्थी प्रशिक्षण
के लिए बुलाए जाते हैं । केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों को अनुवाद का प्रशिक्षण
देने के लिए केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो का एक कार्यालय मुंबई में,
एक बंगलुरु में और एक कोलकाता में खोला गया है । ब्यूरो का अनुवाद प्रशिक्षण
केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों/विभागों के अनुवाद कार्य से संबंधित सभी कर्मचारियों
के लिए अनिवार्य है ।
5. प्रशासनिक अनुवाद की सामग्री का स्तर एवं
स्वरूप
स्तर की होती है । कुछ होते हैं मामूली रूटीन पत्र जिनका भाव तथा अर्थ समझने में
किसी को कठिनाई नहीं होती । उनका अनुवाद भी सरलता से हो जाता है और उसे वह व्यक्ति
भी कर पाता है जिसे अनुवाद का लंबा अनुभव नहीं है । किन्तु प्रशासनिक क्षेत्र में
कई जटिल मामले भी होते हैं, कुछ नीति
संबंधी गंभीर मसले होते हैं, कुछ में
कानूनी पेचीदगियाँ होती हैं जिनके विवेचन में एक-एक शब्द का अपना महत्व होता है ।
इनमें अनुवाद करते समय केवल भाषा ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है,
सामान्य ज्ञान और विवेक भी आवश्यक है । वैज्ञानिक और तकनीकी सामग्री के लिए भी इन
गुणों का होना जरूरी है । विधिक प्रकृति की सामग्री के अनुवाद में इससे भी अधिक
योग्यता की आवश्यकता है ।
निष्कर्ष
निश्चित उद्देश्य होता है । प्रशासनिक क्षेत्र में वह उद्देश्य स्पष्ट है । यहाँ
उद्देश्य है कि किसी एक भाषा में कही जा रही बात अन्य भाषा के जानकार लोगों की समझ
में आए तथा सही रूप में आए । अनुवादक से अपेक्षा की जाती है कि वह उस उद्देशय की
पूर्ति में सहायक हो । उसे उन अपेक्षाओं के अनुरूप अपनी क्षमता तथा योग्यता में
वृद्धि करनी चाहिए । कुछ व्यक्तियों की धारणा है कि अधिकांश कार्यालयों में अनुवाद
एक औपचारिकता की पूर्ति मात्र है, उसे किसी
को पढ़ना नहीं है, अतः जैसा चाहे वैसा अनुवाद कर दिया
जाए । यह धारणा ठीक नहीं है । अब अनुवाद पढ़ा भी जाता है तथा उसका उपयोग आगे की
कार्रवाई के लिए भी होता है । अतः अनुवाद का स्तर ऊँचा रहे तथा वह अर्थ को सही व
स्पष्ट रूप में व्यक्त करे, यह
अपेक्षा अनुवादक से की जाती है ।

नमस्कार ! मेरा नाम भूपेन्द्र पाण्डेय है । मेरी यह वेबसाइट शिक्षा जगत के लिए समर्पित है । हिंदी भाषा, हिंदी साहित्य और अनुवाद विज्ञान से संबंधित उच्च स्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना मेरा मुख्य उद्देश्य है । मैं पिछले 20 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहा हूँ । मेरे लेक्चर्स हिंदी के छात्रों के द्वारा बहुत पसंद किए जाते हैं ।
मेरी शैक्षिक योग्यता इस प्रकार है : बीएससी, एमए (अंग्रेजी) , एमए (हिंदी) , एमफिल (हिंदी), बीएड, पीजीडिप्लोमा इन ट्रांसलेशन (गोल्ड मेडल), यूजीसी नेट (हिंदी), सेट (हिंदी)
मेरे यूट्यूब चैनल्स : Bhoopendra Pandey Hindi Channel, Hindi Channel UPSC