सामान्यतः भाषा को (जो एक व्यवस्था-रूप में भाषा-भाषियों के मस्तिष्क में होती है तथा उसके प्रयुक्त रूप को (जो बोला और लिखा जाता है) एक मानते हैं, किन्तु वास्तविकता यह है कि दोनों में अंतर है। भाषा विज्ञान में पहली को ‘भाषा’ कहते हैं तो दूसरे को ‘वाक्’ ।
आज हम इसी के संदर्भ में Bhasha Vyavastha aur Bhasha Vyavahar का अध्ययन करेंगे ।
फार्दिनेंड द सस्यूर को आधुनिक भाषाविज्ञान का जनक माना जा सकता है। उनके शिष्यों बैली और सेचेहाये ने Cours de linguistique generale नाम से उनके भाषणों को संपादित कर 1916 ई. में पुस्तक रूप में सबके सामने रखा। सस्यूर की पुस्तक में कुछ सार्थक युग्मों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है जिनमें La langue और La parole प्रमुख हैं।
La langue और La parole को हिंदी में प्रायः ‘भाषा और वाक’ के नाम से जाना जाता रहा है। इसके लिए ‘प्रणालिबद्ध भाषा और प्रक्रियामूलक भाषा’ भी प्रस्तुत किया गया। परंतु अब इसे ‘भाषा व्यवस्था और भाषा व्यवहार’ ही कहा जाता है।
“हिंदी की कुछ पुस्तकों में La langue के लिए ‘भाषा’ और La parole के लिए ‘वाक्’ का प्रयोग मिलता है जिसका आधार अंग्रेजी के शब्द language और speech हैं।
सस्यूर मानते हैं कि भाषा एक सामाजिक वस्तु है परंतु वह गतिशील है। परिवर्तन उसकी अनिवार्य नियति है। इसीलिए उन्होंने भाषा के एक पक्ष को संस्थागत माना तथा उसे ‘भाषा व्यवस्था’ कहा। दूसरी ओर, परिवर्तनशील होने के कारण भौतिक धरातल पर वैयक्तिक स्तर पर ‘भाषा-भेद’ भाषा की अनिवार्य नियति है और इसे ही सस्यूर ‘भाषा-व्यवहार’ कहते हैं ।
भाषा-व्यवस्था (Language System) और भाषा-व्यवहार (Language Behaviour) में निम्नलिखित अंतर होता है :
(1) भाषा-व्यवस्था (भाषा) एक व्यवस्था है जो किसी भाषा के सभी बोलने वालों के मस्तिष्क में भाषिक क्षमता के रूप में होती है, किंतु भाषा-व्यवहार (वाक्) उस भाषा का व्यवहृत या प्रयुक्त रूप है।
(2) इस तरह भाषा-व्यवस्था (भाषा) की सत्ता मानसिक होती तथा वह अमूर्त होती है, तो भाषा-व्यवहार (वाक्) की सत्ता भौतिक होती है, वह बोली और सुनी जाती है, अतः भाषा की तुलना में वह मूर्त होती है।
(3) भाषा-व्यवस्था (भाषा) समाज-सापेक्ष होती है तो भाषा-व्यवहार (वाक्) व्यक्ति सापेक्ष। भाषा-व्यवस्था (भाषा) पूरे समाज की होती है तो भाषा-व्यवहार (वाक्) प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग होता है।
(4) इसीलिए भाषा-व्यवस्था (भाषा) समरूपी होती है, सभी भाषाभाषियों के मस्तिष्क में उसका प्रायः एक ही रूप होता है, किन्तु भाषा-व्यवहार (वाक्) विषम रूपी होता है, प्रत्येक व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त वाक्, दूसरे व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त वाक् से अलग होता है। इस प्रकार किसी भाषा के वे सारे वाक् अलग-अलग होंगे, जो उसके विभिन्न भाषा-भाषियों द्वारा प्रयुक्त होंगे।
(5) भाषा-व्यवस्था (भाषा) सूक्ष्म तथा भावात्मक है जबकि भाषा-व्यवहार (वाक्) स्थूल तथा भौतिक होता है।
(6) भाषा-व्यवस्था (भाषा) स्थायी है जबकि भाषा-व्यवहार (वाक्) अस्थायी है। मुख से उच्चरित होने और श्रोता के सम्मुख होने पर उसके द्वारा ग्रहण किए जाने के बाद उसका अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है।
(7) भाषा-व्यवस्था (भाषा) की सत्ता मानसिक होती है जबकि भाषा-व्यवहार (वाक्) की सत्ता भौतिक अर्थात उच्चारण में होती है। इस दृष्टि से इन्हें स्वनिम और संस्वन के समानांतर माना जा सकता।
(8) भाषा-व्यवस्था (भाषा) सामाजिक होने के कारण संस्थागत है। यह व्यक्ति-निरपेक्ष है। वक्ता की निजी इच्छा इसे प्रभावित नहीं करती। इसके विपरीत भाषा-व्यवहार (वाक्) वैयक्तिक है, व्यक्ति सापेक्ष है। व्यक्ति अपनी इच्छानुसार भी उसमें परिवर्तन का प्रयास करता है अथवा कर सकता है। व्यक्ति के निजी संदर्भ, श्रोता की भूमिका, उनकी शारीरिक एवं मानसिक स्थिति, देश-काल और परिस्थिति का दबाव उसे नियंत्रित एवं प्रभावित करता है । इस प्रकार भाषा-व्यवहार (वाक्) की मूल प्रकृति नव प्रवर्तनकारी होती है।
(9) भाषा-व्यवहार (वाक्), भाषा-व्यवस्था (भाषा) पर ही आधारित होता है, परंतु भाषा-व्यवस्था (भाषा) की जानकारी भाषा-व्यवहार (वाक्) के माध्यम से ही हो पाती है।
(10) भाषा-व्यवस्था (भाषा) प्रकृति में मूल्यपरक होने के कारण अमूर्त एवं रूपपरक होती है। इसे सस्यूर ने शतरंज के खेल का उदाहरण देकर समझाया। उन्होंने कहा कि शतरंज के मोहरे किसी भी धातु के हों, प्यादा एक ही घर चलता है, हाथी सीधा और घोड़ा ढाई घर चलता है। इसी प्रकार किसी भाषा की किसी ध्वनि (क, ख) अथवा उसके रंग नाम (रेड, येलो) की अपनी सार्थकता उसके भौतिक उपादानों में न होकर उस मूल्य में होती है जिसे भाषा की अपनी व्यवस्था उसे प्रदान करती है। इसके विपरीत भाषा-व्यवहार (वाक्) प्रकृति में स्थितिपरक होने के कारण मूर्तमान एवं अभिव्यक्तिपरक होता है।

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