आचार्य भरत मुनि का रस सिद्धान्त | Acharya Bharat Muni Ka Ras Siddhant

acharya bharat muni ka ras siddhant

रस सिद्धान्त ras siddhant यद्यपि भारतीय काव्यशास्त्र में प्राचीनतम सिद्धान्त है, तथापि इसे व्यापक प्रतिष्ठा बाद में प्राप्त हुई। यही कारण है कि अलंकार सिद्धान्त को रस सिद्धान्त से प्राचीन माना जाने लगा। रस सिद्धान्त के मूल प्रवर्तक आचार्य भरत मुनि (200 ई.पू.) माने जाते हैं। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘नाट्यशास्त्र’ में रस के विभिन्न अवयवों … Read more

मनोविश्लेषणवाद क्या है | Manovishleshanvad Kya Hai | मनोविश्लेषणवाद | Manovishleshanvad

मनोविश्लेषण शब्द अंग्रेजी के ‘साइको-एनलसिस’ (Psycho-analysis) शब्द का हिंदी पर्याय है । 19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud, 1856-1939) द्वारा मानसिक रोगियों का इलाज करते हुए स्नायविक व मानसिक विकारों के संबंध में सुझाया गया सिद्धांत व व्यवहार मनोविश्लेषण कहलाता है। चिकित्सा की यह विधि जिन मूल सिद्धांतों पर आधारित है … Read more

विलियम वर्ड्सवर्थ का काव्य-भाषा सिद्धान्त | William Wordsworth ka Kavyabhasha Siddhant

प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि विलियम वर्ड्सवर्थ (1770-1850 ई.) एक कवि के रूप में सुविख्यात हैं। आधुनिक काल के छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पन्त की भांति वईसवर्थ ने भी प्रकृति निरीक्षण से कविता की ओर अपने झुकाव को व्यक्त किया है। बीस वर्ष की अवस्था में वर्ड्सवर्थ ने पैदल ही फ्रान्स, इटली और आल्पस पर्वत श्रृंखला की प्राकृतिक … Read more

मिथक क्या है | Mithak Kya Hai

mithak kya hai

मिथक का अर्थ अर्थ – अंग्रेजी के मिथ (Myth) का समानार्थी शब्द ‘मिथक’ है, जो यूनानी शब्द ‘माइथोस’ से निष्पन्न है। इसका अर्थ है- अतर्क्य आख्यान। हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि हिंदी साहित्य में मिथकों का प्रयोग किस प्रकार किया गया है । बच्चन सिंह इसकी परिभाषा देते हुए कहते हैं कि- “मिथक … Read more

राजभाषा हिंदी का क्रमिक विकास | Rajbhasha Hindi Ka Kramik Vikas | Rajbhasha Kya Hai

rajbhasha hindi ka kramik vikas

राजभाषा से तात्पर्य सरकारी कामकाज की भाषा से है । जब हम राजभाषा की चर्चा करते हैं तो यह  केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में प्रयोग की जाने वाली भाषा है । 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को संघ (केंद्र सरकार) की राजभाषा का दर्ज़ा दिया । इस लेख में हम राजभाषा के … Read more

राम की शक्ति पूजा की व्याख्या भाग-2 | Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya | Part-2

ram ki shaktipuja ki vyakhya

 भाग – (2) अनिमेष राम-विश्वजिद् दिव्य शर-भंग-भाव, विद्धांग-बद्ध-कोदण्ड-मुष्टि खर रुधिर स्राव। रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दल-बल,  मूर्च्छित सुग्रीवांगद-भीषण गवाक्ष गय-नल। वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल-रोध, गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध । उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुः प्रहर, जानकी भीरु उर आशा भर रावण-सम्बर।। सन्दर्भ – प्रस्तुत  पंक्तियां छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ द्वारा … Read more

राम की शक्ति पूजा की व्याख्या | Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya | भाग-1| Part-1

ram ki shaktipuja ki vyakhya

‘राम की शक्ति पूजा’ निराला द्वारा 1936 में रचित एक लम्बी कविता है, जो उनके काव्य संकलन ‘अनामिका’ में संकलित है। 312 पंक्तियों की इस कविता की कथा पौराणिक है, परन्तु निराला ने उसे सर्वथा मौलिक रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रासंगिक बना दिया है। आज हम Ram ki Shakti Puja के प्रारम्भिक 10 पंक्तियों … Read more

जॉन ड्राइडन : युग परिवेश और आलोचना सिद्धांत / John Dryden : Yug Parivesh aur Alochana Siddhant

John Dryden ki alochana drishti

जॉन ड्राइडन (1631-1700) बहुमुखी प्रतिभा के धनी एक ऐसे लेखक थे, जिन्होंने साहित्य की किसी भी शाखा को अछूता नहीं छोड़ा और प्रत्येक क्षेत्र में उत्कृष्ट योग्यता के कार्य किए। वे एक महान कवि और महान नाटककार थे। वे एक महान गद्य-लेखक भी थे और उन्हें आधुनिक गद्य शैली का संस्थापक माना जाता है। वे … Read more

आलोचना का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप और प्रकार | alochana ka arth, paribhasha, swarup aur prakar

alochana ka arth, paribhasha, swarup aur prakar

आलोचना शब्द का प्रयोग किसी कृति के गुण-दोषों के विवेचन के लिए किया जाता है। सामान्यतः आलोचना का अर्थ लोग दोषदर्शन से ही लेते हैं, किन्तु आलोचना के व्युत्पत्तिपरक अर्थ पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आलोचना का अभिप्राय गुण-दोष दोनों पर प्रकाश डालना है। आलोचना को समालोचना अथवा समीक्षा भी … Read more

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