अंधेरे में कविता का सारांश | andhere men kavita ka saransh | andhere men muktibodh

गजानन माधव मुक्तिबोध हिंदी-साहित्य में फैंटेसी-शैली के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं । मुक्तिबोध फैंटेसी को काव्य-शिल्प का अनिवार्य अंग मानते थे । ‘अंधेरे में’ फैंटेसी-शैली की एक अद्भुत रचना है। मुक्तिबोध ने फैंटेसी काव्य-शैली को अनुभव की कन्या कहा है । ‘अंधेरे में’ एक स्वप्न-कथा है । मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ कविता ‘चाँद … Read more

ध्वनि सम्प्रदाय | ध्वनि सिद्धांत Dhwani Sampraday| Dhwani Siddhant | Acharya Anandvardhan | Bhartiya Kavyashastra

भारतीय काव्यशास्त्र में ध्वनि सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण स्थान है। ध्वनि-सिद्धान्त को व्यवस्थित करने का श्रेय आचार्य आनन्दवर्धन को है जिन्होंने अपने ग्रन्थ ‘ध्वन्यालोक’ में ध्वनि सिद्धान्त की स्थापना की। ध्वनि सिद्धान्त से पहले काव्यशास्त्र में तीन महत्वपूर्ण सिद्धान्त अलंकार, रस और रीति का प्रवर्तन हो चुका था। अतः ध्वनि सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रबल एवं पुष्ट … Read more

हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा | Hindi Sahitya Ke Itihas Lekhan Ki Parampara

हिंदी भाषा एवं साहित्य का प्रारम्भ मोटे तौर पर 1000 ई. के आस-पास माना जाता है। तथापि हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन का वास्तविक सूत्रपात 19 वीं शताब्दी से माना जाता है। यद्यपि मध्यकाल में रचित वार्ता साहित्य यथा-चौरासी वैष्णवन की वार्ता (गोसाई गोकुलनाथ-ब्रजभाषा),  दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता (गोसाई गोकुलनाथ-ब्रजभाषा)), भक्तमाल (नाभादास) आदि … Read more

राम की शक्ति पूजा की व्याख्या भाग-3 | Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya | Part-3

  भाग-3 लौटे युग दल। राक्षस-पद-तल पृथ्वी टलमल, बिंध महोल्लास से बार-बार आकाश विकल। वानर-वाहिनी खिन्न, लख निज-पति-चरण-चिन्ह  चल रही शिविर की ओर स्थविर-दल ज्यों विभिन्न,  प्रशमित है वातावरण, नमित-मुख सान्ध्यकमल लक्ष्मण चिन्ता-पल पीछे वानर-वीर सकल, रघुनायक आगे अवनी पर नवनीत-चरण,  श्लथ धनु-गुण है, कटि-बन्ध स्रस्त-तूणीर-धरण,  दृढ़ जटा-मुकुट हो विपर्यस्त प्रतिलट से खुल  फैला पृष्ठ पर, … Read more

नाटक के तत्व | Natak Ke Tatva

हिंदी नाटक के स्वरूप निर्माण में भारतीय और  पाश्चात्य दोनों ही नाट्य दृष्टियों का योगदान रहा है। अतः भारतीय और पाश्चात्य नाट्य तत्वों की संक्षिप्त जानकारी आवश्यक है। भारतीय नाट्य सिद्धांत संस्कृत के नाटकों के आधार पर निर्मित हुए थे तथा पश्चिमी नाट्य सिद्धांतों का आधार यूनानी नाटक थे। भारतीय आचार्यों ने नाटक के तीन अनिवार्य … Read more

प्लेटो का आदर्शवाद | Plato ka Adarshvad

 पाश्चात्य संस्कृति एवं सभ्यता का आदिस्रोत यूनान रहा है। यूनान के दार्शनिकों, विचारकों एवं काव्य-चिन्तकों ने जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन ईसा से चार-पाँच शताब्दियों पूर्व किया था, उन्हीं की अनुगूँज परवर्ती युग में यूरोप के विभिन्न विचारकों की शब्दावली में सुनाई देती है।   यूनान के गौरवशाली चिन्तकों एवं महान् दार्शनिकों में सुकरात के शिष्य प्लेटो (427 … Read more

हिंदी के लोकनाट्य | Hindi Ke Loknatya

लोकनाट्य वे नाट्य हैं जो आम जनता द्वारा किसी मिथक रचित एवं प्रदर्शित होते हैं। लोकनाट्यों के कथानक प्रायः लोक प्रचलित होते हैं, जिनमें पौराणिक और ऐतिहासिक और लोक-वार्तागत प्रसंगों का समावेश होता है । लौकिक एवं किवदंतियाँ और काल्पनिक प्रेमकथाएँ भी इन नाट्यों का विषय बनाई जाती हैं । इनका कथानक प्रायः ढीला-ढाला होता … Read more

‘राम की शक्ति पूजा’ की मूल संवेदना या केंद्रीय संवेदना | Ram ki Shaktipuja ki Mul Samvedana | Ram ki Shaktipuja ki Kendriya Samvedana

 राम की शक्तिपूजा, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala) द्वारा रचित काव्य है। निराला जी ने इसका सृजन 23 अक्टूबर 1936 को पूर्ण किया था। कहा जाता है कि इलाहाबाद (प्रयागराज) से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र ‘भारत’ में पहली बार 26 अक्टूबर 1936 को उसका प्रकाशन हुआ था। बाद में इसका प्रकाशन निराला के कविता संग्रह … Read more

औचित्य सिद्धान्त | औचित्य सम्प्रदाय | Auchitya Siddhant | Auchitya Sampraday | Bhartiya Kavyashastra

ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भ तक भारतीय काव्य-शास्त्र के क्षेत्र में पाँच प्रमुख सम्प्रदाय रस, अलंकार, रीति, ध्वनि और वक्रोक्ति प्रतिष्ठित हो चुके थे, किन्तु फिर भी काव्य के आधारभूत तत्व के सम्बन्ध में कोई एक सर्वमान्य निर्णय नहीं हो सका। इतना ही नहीं, अनेक सम्प्रदायों की स्थापना के कारण ‘काव्य की आत्मा’ सम्बन्धी। … Read more

स्वच्छन्दतावाद क्या है | Swachchhandatavad kya hai | swachchhandatavad | Romanticism kya hai

‘स्वच्छंदतावाद’ ‘रोमांटिसिज़्म’ का हिंदी अनुवाद है । हिंदी में इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कदाचित् आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में पं. श्रीधर पाठक को ‘स्वच्छंदतावाद’ का प्रवर्तक मानते हुए किया है । ‘रोमांटिक’ शब्द को एक काव्य प्रवृत्ति अथवा ‘वाद’ के रूप में सर्वप्रथम प्रयुक्त करने वाले जर्मन आलोचक … Read more

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