छायावाद | Chhayavad

छायावाद (1918 ई. से 1936 ई.) | Chhayavad हिंदी साहित्य में ‘छायावाद’ शब्द का प्रथम लिखित प्रयोग मुकुटधर पाण्डेय ने किया। आइये आज हम chhayavad को समझने का प्रयास करते हैं ।   सन् 1920 में जबलपुर से प्रकाशित पत्रिका ‘श्रीशारदा’ में ‘हिंदी में छायावाद’ शीर्षक से चार चरणों में लेख लिखकर छायावाद की आरंभिक विवेचना … Read more

वक्रोक्ति सिद्धान्त | vakrokti siddhant | acharya kuntak ka vakrokti siddhant

 वक्रोक्ति सम्प्रदाय के प्रवर्तन का श्रेय आचार्य कुन्तक को है। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘वक्रोक्ति जीवित‘ में वक्रोक्ति को काव्य का अनिवार्य तत्व स्वीकार करते हुए इसे काव्य की आत्मा कहा। काव्यशास्त्र में वक्रोक्ति शब्द का प्रयोग कुन्तक से पहले भी उपलब्ध होता है, पर यह उस अर्थ में नहीं मिलता, जिस अर्थ में कुन्तक ने … Read more

राजभाषा हिंदी और अनुवाद का अंतर्संबंध | Rajbhasha Hindi aur Anuvad ka Antarsambandh

भाषा विचारों के आदान प्रदान का माध्यम होती है । भाषा जितनी सुबोध, सहज, सरल होगी भाव सम्प्रेषण उतना ही सफल और सशक्त होगा । भारतीय भाषाओं की परंपरा में या उनके इतिहास में हिंदी का वही स्थान व महत्व है जो प्राचीन काल में संस्कृत का था। हिंदी करोड़ों लोगों की विचारवाहिनी भाषा है … Read more

महादेवी वर्मा की काव्य संवेदना | Mahadevi Verma ki Kavya Samvedana

महादेवी वर्मा छायावाद की एक प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं । छायावाद का युग उथल-पुथल का युग था । कवि अपने समय के वास्तविक यथार्थ से प्रभावित होकर अपनी रचनाओं में उसकी विशिष्ट प्रवृत्तियों को अभिव्यक्ति देता है और उसकी रचनाएँ ही उस युग विशेष की मूल प्रवृत्ति को रूपायित करती हैं । लेकिन महादेवी जी अपनी … Read more

कॉलरिज का काव्यचिंतन | Coleridge ka Kavyachintan

 शाब्दिक अर्थ में काव्य चिंतन का संबंध कविता के विषय में चिंतन से है। कविता क्या है? रस, छंद अलंकार तथा काव्यभाषा का कविता की सृजन प्रक्रिया में क्या योगदान है? काव्य चिंतन के केंद्र मेंऐसे ही बिंदु रहते हैं। एक दृष्टि से काव्य चिंतन वस्तुतः कविता संबंधितसैद्धांतिक समीक्षा है। पश्चिम में काव्य चिंतन की … Read more

‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक की तात्त्विक समीक्षा | Dhruwswamini Natak ki Tatvik Samiksha

बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार माने जाते हैं। ‘ध्रुवस्वामिनी’ (1933 ई.) उनकी बहुचर्चित नाट्यकृति है, जिसकी कथावस्तु गुप्त वंश के यशस्वी सम्राट समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य के काल से सम्बन्धित है। अब हम  नाटक के तत्वों के आधार पर dhruwswamini natak ki tatvik samiksha करेंगे ।    नाटक की … Read more

लघु कथा क्या है | Laghu Katha Kya Hai

 ‘लघु कथा’ शब्द सम्भवतः अंग्रेजी के ‘शार्ट स्टोरी’ (Short Story) शब्द का अनुवाद है। वैसे ‘कहानी’ शब्द भी अंग्रेजी के ‘शार्ट स्टोरी’ के लिये ही प्रयुक्त होता है। ‘लघु कथा’ और ‘कहानी’ में तात्विक दृष्टि से कोई अंतर होता भी नहीं है। व्यावहारिक दृष्टि से ‘लघु कथा’ कहानी के छोटे रूप को अभिव्यक्त करती है। हमारे यहाँ लघुकथाओं की परंपरा बहुत पुरानी है। पुरानी लघु कथाएं वस्तुतः दृष्टांतों के … Read more

अनुसंधान (Research) और आलोचना (Criticism)| Anusandhan aur Alochana

अनुसंधान (शोध) और आलोचना (समालोचना, समीक्षा) को पर्यायवाची समझना सही नहीं है, क्योंकि दोनों में आधारभूत अंतर है। शब्दकोशों में दोनों की अलग-अलग परिभाषा दी गई है । वेब्स्टर की ‘न्यू वर्ल्ड डिक्शनरी’ में ‘अनुसंधान’ को परिभाषित करते हुए ‘इसे व्यवस्थित, सावधानीपूर्वक और संतुलित अन्वेषण (खोज, ढूंढ़ना) कहा गया है, जिसमें ज्ञान के किसी विशेष … Read more

विश्वकोश और उनके प्रकार | Vishvakosh aur Unke Prakar| Encyclopaedia

विश्वकोश या Encyclopaedia में विश्व के अनेक विषयों – धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, इतिहास, भूगोल, ज्ञान-विज्ञान आदि से संबद्ध जानकारी दी जा ती है जिसे विषय के अधिकारी विद्वानों से लिखवाया जाता है। शीर्षकों को इसमें विषयानुसार न रखकर वर्णक्रम से रखा जाता है ताकि अध्येता (fellow or research scholar) किसी भी शब्द को, यह पता … Read more

काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | Kavya men Lokmangak ki Sadhnavastha – Acharya Ramchandra Shukla

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ऐसे काव्यों को, जिनमें मंगल का विधान (कल्याण करने का उद्देश्य) करने वाला भाव ‘करुणा’ बीज रूप में विद्यमान रहता है, श्रेष्ठ घोषित करके ‘लोक मंगल की साधना’ को काव्य-प्रतिमान के रूप में प्रतिष्ठित किया है । उनका तर्क है कि लोक में मंगल का विधान करने वाले दो भाव हैं- ‘करुणा’ और ‘प्रेम’। ‘करुणा’ की … Read more

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