हिंदी के लोकनाट्य | Hindi Ke Loknatya

लोकनाट्य वे नाट्य हैं जो आम जनता द्वारा किसी मिथक रचित एवं प्रदर्शित होते हैं। लोकनाट्यों के कथानक प्रायः लोक प्रचलित होते हैं, जिनमें पौराणिक और ऐतिहासिक और लोक-वार्तागत प्रसंगों का समावेश होता है । लौकिक एवं किवदंतियाँ और काल्पनिक प्रेमकथाएँ भी इन नाट्यों का विषय बनाई जाती हैं । इनका कथानक प्रायः ढीला-ढाला होता … Read more

‘राम की शक्ति पूजा’ की मूल संवेदना या केंद्रीय संवेदना | Ram ki Shaktipuja ki Mul Samvedana | Ram ki Shaktipuja ki Kendriya Samvedana

 राम की शक्तिपूजा, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala) द्वारा रचित काव्य है। निराला जी ने इसका सृजन 23 अक्टूबर 1936 को पूर्ण किया था। कहा जाता है कि इलाहाबाद (प्रयागराज) से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र ‘भारत’ में पहली बार 26 अक्टूबर 1936 को उसका प्रकाशन हुआ था। बाद में इसका प्रकाशन निराला के कविता संग्रह … Read more

औचित्य सिद्धान्त | औचित्य सम्प्रदाय | Auchitya Siddhant | Auchitya Sampraday | Bhartiya Kavyashastra

ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भ तक भारतीय काव्य-शास्त्र के क्षेत्र में पाँच प्रमुख सम्प्रदाय रस, अलंकार, रीति, ध्वनि और वक्रोक्ति प्रतिष्ठित हो चुके थे, किन्तु फिर भी काव्य के आधारभूत तत्व के सम्बन्ध में कोई एक सर्वमान्य निर्णय नहीं हो सका। इतना ही नहीं, अनेक सम्प्रदायों की स्थापना के कारण ‘काव्य की आत्मा’ सम्बन्धी। … Read more

स्वच्छन्दतावाद क्या है | Swachchhandatavad kya hai | swachchhandatavad | Romanticism kya hai

‘स्वच्छंदतावाद’ ‘रोमांटिसिज़्म’ का हिंदी अनुवाद है । हिंदी में इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कदाचित् आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में पं. श्रीधर पाठक को ‘स्वच्छंदतावाद’ का प्रवर्तक मानते हुए किया है । ‘रोमांटिक’ शब्द को एक काव्य प्रवृत्ति अथवा ‘वाद’ के रूप में सर्वप्रथम प्रयुक्त करने वाले जर्मन आलोचक … Read more

छायावाद | Chhayavad

छायावाद (1918 ई. से 1936 ई.) | Chhayavad हिंदी साहित्य में ‘छायावाद’ शब्द का प्रथम लिखित प्रयोग मुकुटधर पाण्डेय ने किया। आइये आज हम chhayavad को समझने का प्रयास करते हैं ।   सन् 1920 में जबलपुर से प्रकाशित पत्रिका ‘श्रीशारदा’ में ‘हिंदी में छायावाद’ शीर्षक से चार चरणों में लेख लिखकर छायावाद की आरंभिक विवेचना … Read more

वक्रोक्ति सिद्धान्त | vakrokti siddhant | acharya kuntak ka vakrokti siddhant

 वक्रोक्ति सम्प्रदाय के प्रवर्तन का श्रेय आचार्य कुन्तक को है। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘वक्रोक्ति जीवित‘ में वक्रोक्ति को काव्य का अनिवार्य तत्व स्वीकार करते हुए इसे काव्य की आत्मा कहा। काव्यशास्त्र में वक्रोक्ति शब्द का प्रयोग कुन्तक से पहले भी उपलब्ध होता है, पर यह उस अर्थ में नहीं मिलता, जिस अर्थ में कुन्तक ने … Read more

राजभाषा हिंदी और अनुवाद का अंतर्संबंध | Rajbhasha Hindi aur Anuvad ka Antarsambandh

भाषा विचारों के आदान प्रदान का माध्यम होती है । भाषा जितनी सुबोध, सहज, सरल होगी भाव सम्प्रेषण उतना ही सफल और सशक्त होगा । भारतीय भाषाओं की परंपरा में या उनके इतिहास में हिंदी का वही स्थान व महत्व है जो प्राचीन काल में संस्कृत का था। हिंदी करोड़ों लोगों की विचारवाहिनी भाषा है … Read more

महादेवी वर्मा की काव्य संवेदना | Mahadevi Verma ki Kavya Samvedana

महादेवी वर्मा छायावाद की एक प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं । छायावाद का युग उथल-पुथल का युग था । कवि अपने समय के वास्तविक यथार्थ से प्रभावित होकर अपनी रचनाओं में उसकी विशिष्ट प्रवृत्तियों को अभिव्यक्ति देता है और उसकी रचनाएँ ही उस युग विशेष की मूल प्रवृत्ति को रूपायित करती हैं । लेकिन महादेवी जी अपनी … Read more

कॉलरिज का काव्यचिंतन | Coleridge ka Kavyachintan

 शाब्दिक अर्थ में काव्य चिंतन का संबंध कविता के विषय में चिंतन से है। कविता क्या है? रस, छंद अलंकार तथा काव्यभाषा का कविता की सृजन प्रक्रिया में क्या योगदान है? काव्य चिंतन के केंद्र मेंऐसे ही बिंदु रहते हैं। एक दृष्टि से काव्य चिंतन वस्तुतः कविता संबंधितसैद्धांतिक समीक्षा है। पश्चिम में काव्य चिंतन की … Read more

‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक की तात्त्विक समीक्षा | Dhruwswamini Natak ki Tatvik Samiksha

बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार माने जाते हैं। ‘ध्रुवस्वामिनी’ (1933 ई.) उनकी बहुचर्चित नाट्यकृति है, जिसकी कथावस्तु गुप्त वंश के यशस्वी सम्राट समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य के काल से सम्बन्धित है। अब हम  नाटक के तत्वों के आधार पर dhruwswamini natak ki tatvik samiksha करेंगे ।    नाटक की … Read more

error: Content is protected !!